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समाज

मोदी सरकार में खूब कटा लोगों का इंटरनेट

१८ सितम्बर २०१७

पिछले कुछ समय से इंटरनेट शटडाउन के मामले सुर्खियों में आये हैं. आंकड़े बताते हैं कि भारत में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद इंटरनेट शटडाउन के मामलों में इजाफा हुआ है.

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तस्वीर: Copyright: ©Autentic Distribution

हर्ष मंडोख जयपुर शहर में अपना कपड़े का कारोबार करते हैं. 9 सितंबर को वह अपने दोस्तों को व्हाट्सऐप पर मैसेज कर रहे थे लेकिन कोई मैसेज नहीं गया. इतना ही नहीं, हर्ष की दुकान के क्रेडिटकार्ड रीडर ने भी काम करना बंद कर दिया और टैक्सी और अन्य राइड शेयरिंग ऐप भी ऑफलाइन मोड में चले गये. हर्ष को एक मिनट तो इंटरनेट का इस तरह बंद हो जाना समझ ही नहीं आया लेकिन जल्द ही वह समझ गये कि यह उनके फोन की तकनीकी खराबी नहीं बल्कि इंटरनेट शटडाउन है.

हर्ष ने अखबारों में देश के अन्य राज्यों में किये गये इंटरनेट शटडाउन के बारे में पढ़ा था लेकिन उनके लिए यह पहला अनुभव था. हर्ष बताते हैं, "यह बहुत ही निराशाजनक होता है क्योंकि उस वक्त आपको समझ ही नहीं आता कि आसपास क्या हो रहा है."

अब सवाल उठता है कि यह इंटरनेट शटडाउन क्या है? आम बोलचाल की भाषा में कहें तो इंटरनेट सुविधा को सर्वर से काट देना शटडाउन की स्थिति कहलाती है.

राजधानी दिल्ली के एक ऑनलाइन एडवोकेसी ग्रुप सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के डाटा के मुताबिक सरकारी अधिकारियों के आदेश पर साल 2017 में जनवरी से अगस्त के बीच लगभग 42 बार शटडाउन के आदेश दिये गये. साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद शटडाउन के आदेशों में छह गुना की बढ़ोतरी हुई है. साल 2017 में ही अब तक इंटरनेट शटडाउन के आदेश 11 राज्यों में दिये गये लेकिन साल 2012 में यह आदेश महज एक राज्य के लिये दिया गया था.

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तस्वीर: DW

इस तरह से कनेक्शन काटने पर राज्य सरकारों का तर्क है कि यह व्यवस्था बनाये रखने के लिए अहम हैं लेकिन असल में ऐसा निर्णय करने से पहले कोई भी राज्य आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं देता है. देश के एक दैनिक अखबार मिंट ने जुलाई में अपने संपादकीय में सवाल उठाते हुए कहा था कि अगर लोग इंटरनेट का इस्तेमाल एक-दूसरे से जुड़ने, संगठित होने के लिए कर रहे हैं तो इंटरनेट शटडाउन करना उनकी आवाज को दबाने से कितना अलग है? क्योंकि सरकार भी आंतरिक सुरक्षा का हवाला देकर लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन नहीं कर सकती. 

इस साल अगस्त में संचार मंत्रालय की ओर से अधिक स्पष्ट नियम जारी किये गये, जो राज्यों और केंद्र सरकार को औपचारिक रूप से इंटरनेट ब्लॉक करने की शक्ति देते हैं. दुनिया भर में डिजिटल अधिकारों के लिए काम कर रही अमेरिकी संस्था एक्सिसनाउ से जुड़े रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "ये नियम किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी तरह के पहले अधिकार होंगे लेकिन अब इनका उपयोग कैसे होता है और इसके पैमाने क्या होंगे, वहीं ब्लॉकिंग का कानूनी दायरा तय करेंगे." 

उच्चतम न्यायालय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मामलों को उठाने वाले वकील अपर गुप्ता कहते हैं, "मेरे हिसाब से जो बदला है वह यह है कि अब अधिकारियों को अपनी शक्ति के इस्तेमाल का ज्ञान अधिक हो गया है." मिस्र जैसे अन्य देश भी इंटरनेट शटडाउन का इस्तेमाल करते हैं वहीं चीन में तो फायरवॉल के जरिए ऑनलाइन जानकारी के प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है. हालांकि चीमा जैसे विश्लेषक भारत में इंटरनेट शटडाउन की बढ़ती दर को लेकर चिंता जाहिर करते हैं जो साल 2014 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से तेजी से बढ़ी है.

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) के रिकॉर्ड मुताबिक जनवरी 2012 में पहली बार शटडाउन का आदेश दिया गया और मई 2014 तक कांग्रेसनीत गठबंधन की ओर से स्थानीय, राज्य और केंद्र स्तर पर कुल मिलाकर 12 बार शटडाउन के आदेश दिए गये थे. लेकिन मई 2014 के बाद स्थिति बदली. एसएफएलसी के डाटा मुताबिक भाजपा सरकार के सत्ता संभालने के बाद केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर अब तक तकरीबन 89 बार शटडाउन के आदेश दिये गये. हालांकि अब तक इन शटडाउन पर विरोध की आवाज कम ही उठी है लेकिन हर्ष जैसे लोग अब ऑनलाइन सर्विसेज की रोक पर गुस्सा दिखाने लगे हैं. बैंगलुरु के थिंकटैंक तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के सह-संस्थापक नितिन पई कहते हैं, "शटडाउन को लेकर अभी सवाल इसलिए नहीं उठ रहे हैं क्योंकि अब तक इसे हित में देखा जा रहा है."

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली के मुताबिक "शटडाउन ऐसे मामलों में स्वीकार्य है जहां अफवाहें और गलत सूचनाओं के चलते हिंसा भड़कने की आशंका होती है, लेकिन यह भी एक स्थिति है कोई नियम नहीं है." 9 सितंबर को जयपुर में लागू हुआ शटडाउन दो दिन बाद खत्म हुआ था. 

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने जून में जारी अपने बयान में कहा था, "प्रशासन ने साल 2016 में जम्मू और कश्मीर क्षेत्र की इंटरनेट सेवाओं को जुलाई से नवंबर के दौरान निलंबित कर दिया था."

साल 2016 में वकील अपर गुप्ता ने एक लॉ स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय में इस मसले को उठाया था. इस मसले पर छात्र ने गुजरात हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर करते हुये इंटरनेट शटडाउन पर रोक लगाने की बात कही थी. उच्च न्यायालय ने शटडाउन को खारिज करने से इनकार करते हुए कहा था कि अधिकारियों ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल अधिक जिम्मेदारी से किया है. उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए इस मसले पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.

एए/एके (रॉयटर्स)