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मोलाह की फांसी बरकरार

१२ दिसम्बर २०१३

बांग्लादेश के उच्चतम न्यायालय ने कट्टरपंथी नेता अब्दुल कादर मोलाह की मौत की सजा बरकरार रखी है. फैसले के बाद बांग्लादेश में एक बार फिर माहौल तनावपूर्ण हो गया है. मोलाह को लेकर समाज दो धड़ों में बंटा दिखता है.

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तस्वीर: Reuters

सुप्रीम कोर्ट के पुनर्विचार याचिका रद्द करने के बाद अटॉर्नी जनरल महबूबे आलम ने कहा अब बस सरकार को तय करना है कि फांसी कब दी जानी है. उन्होंने कहा, "अब मोलाह की फांसी में कोई अड़चनें नहीं हैं. किसी तरह के भ्रम की भी गुंजाइश नहीं है."

65 साल के मोलाह को मंगलवार रात फांसी दी जानी थी, लेकिन आखिरी समय से कुछ देर पहले इसे टाल दिया गया. अगले ही दिन मोलाह ने सुप्रीम कोर्ट से फांसी रद्द करने की याचना की. गुरुवार को कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी. फैसले के बाद मोलाह के वकील ने कहा, "मेरे मुवक्किल को इंसाफ नहीं मिला है. लेकिन क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय अपना फैसला सुना चुका है, हमारे पास कहने के लिए और कुछ नहीं है."

जमात ए इस्लामी के शीर्ष नेता रहे मोलाह को 1971 में पाकिस्तान से आजादी के संघर्ष के दौरान मानवता के खिलाफ अपराध करने का दोषी करार दिया गया है. उसे एक छात्र और 11 लोगों के परिवार को मारने का दोषी पाया गया. इसके अलावा उसे 369 अन्य लोगों को मारने में पाकिस्तानी सेना की मदद करने का भी दोषी करार दिया गया. इस साल फरवरी में मोलाह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. इसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ. धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर इसके खिलाफ प्रदर्शन किए और कहा ये सजा कुछ भी नहीं, मोलाह को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए. सितंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे फांसी की सजा में बदल दिया.

Proteste gegen Wahl in Bangladesh
बांग्लादेश में अक्टूबर से जारी विरोध में 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैंतस्वीर: Reuters/Andrew Biraj

"मीरपुर का कसाई"

1971 में पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच नौ महीने तक संघर्ष चला. बाद में ये भारत पाकिस्तान युद्ध में बदल गया और बांग्लादेश बना. बांग्लादेश सरकार के मुताबिक संघर्ष के दौरान कुछ स्थानीय कट्टरपंथियों ने पाकिस्तानी सेना का साथ दिया, इन्होंने 30 लाख लोगों की हत्या की और उस दौरान दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया गया. मीरपुर में हुई बर्बरता के लिए मोलाह को जिम्मेदार ठहराया जाता है, अभियोजन पक्ष उसे "मीरपुर का कसाई" भी कहता है.

1971 के संघर्ष में आसिफ मुनव्वर के पिता भी मारे गए थे, जो कि यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे. मुनव्वर ने कहा, "हम इस फैसले से खुश हैं क्योंकि इंसाफ हुआ है. यहां बात बदले की नहीं, इंसाफ की है." फैसला आने के बाद ढाका में कई हजार सरकार समर्थक युवाओं ने जश्न मनाया और मोलाह को जल्द से जल्द फांसी पर चढ़ाने की मांग की.

अगले साल जनवरी में होने वाले आम चुनाव से पहले मोलाह को फांसी दिए जाने से कई राजनीतिक उलझनें पैदा हो सकती हैं. मोलाह की पार्टी जमात ए इस्लामी ने चेतावनी दी है कि अगर फांसी हुई तो इसके खराब परिणाम होंगे. इस समय बांग्लादेश में आम चुनाव को लेकर माहौल वैसे ही तनावपूर्ण है.

साजिश का आरोप

युद्ध अपराधों के मामलों में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2010 में आरोपियों पर मुकदमे शुरू करवाए. इन मामलों में मोलाह फांसी पर चढ़ने वाले पहले शख्स होंगे. आजादी के बाद भी बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने काफी कुछ बदलने की कोशिश की.1975 में बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर रहमान की परिवार समेत हत्या कर दी गई. हत्याकांड में सिर्फ उनकी एक ही बेटी जान बचा सकी. वही बेटी शेख हसीना आज बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं.

मुकदमों में ज्यादातर आरोपी विपक्ष से हैं. जमात ए इस्लामी और बांग्लादेश नेशनल पार्टी का कहना है कि इन मुकदमों के जरिए विपक्ष और इस्लामी पार्टियों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है. सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है.

बांग्लादेश में विपक्ष बीते कई महीने से सरकार विरोधी धरने और प्रदर्शन करता आ रहा है. उनकी मांग है कि 5 जनवरी को होने वाले आम चुनाव एक स्वतंत्र कार्यकारी सरकार की निगरानी में हों, ना कि शेख हसीना की सरकार की देखरेख में.

सरकार ने विपक्ष की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. ऐसे में बीएनपी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व में विपक्ष ने आम चुनाव में हिस्सा ना लेने का एलान किया है. अक्टूबर से जारी विरोध में 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

एसएफ/ओएसजे (एपी, डीपीए)

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