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मौत की गलत सुई का विवाद

Anwar Jamal Ashraf२ मई २०१४

ओकलाहोमा में मौत की गलत सुई का मामला सामने आने के बाद इसकी जांच हो रही है. वैसे यह तय होना बाकी है कि गलती किसकी है और क्या यह मानवीय भूल है या साइंस की नाकामी.

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Symbolbild - Blutprobe
तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्लेटन लॉकेट नाम के एक अपराधी को ओकलाहोमा सिटी में जहरीली सुई लगा कर खत्म करने की कोशिश की गई, लेकिन इसके बाद भी वह जिंदा रहा और बाद में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई. अब इस बात की जांच हो रही है कि क्या उसकी नस फटने से मौत हुई या सुई गलत तरीके से लगाई गई. अगर ऐसा हुआ है, तो यह इंसानी भूल है, इसमें तकनीक या इंजेक्शन की गलती नहीं है.

इस घटना के एक दिन बाद मौत की सजा पा चुके अपराधियों के वकीलों ने ओकलाहोमा की घटना के आधार पर केस तैयार करना शुरू कर दिया है. कई वकील इस मामले की निष्पक्ष जांच कराना चाहते हैं.

टेक्सास की वकील मॉरी लेविन का कहना है, "हर जेल कह रहा है कि यह उनके नियंत्रण में है और उनका भरोसा किया जाए. यह साफ इशारा है कि हम उन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. जेल को सार्वजनिक करना होगा कि वे किस आधार पर मौत की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं."

38 साल के लॉकेट पर एक महिला को गोली मार कर उसे जिंदा जमीन में गाड़ने का आरोप सिद्ध हो चुका था. उस महिला की बाद में मौत हो गई थी. उसे खास सुई देकर मारने की कोशिश की गई लेकिन कुछ गड़बड़ी होने के कारण वह इंजेक्शन के बाद उठने लगा. वह कुछ बुदबुदा रहा था. डॉक्टरों ने प्रक्रिया रोक दी. करीब 40 मिनट बाद दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई.

उसका पोस्ट मार्टम किया जा रहा है, जिससे मौत की पक्की जानकारी मिल सके. व्हाइट हाउस का कहना है कि इसमें मानवीय पक्ष को ध्यान में नहीं रखा गया. सुप्रीम कोर्ट इस वजह से मौत की सजा पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं है कि एक दोषी को यह सजा देते वक्त संवैधानिक नियमों का पालन नहीं किया जा सका. अमेरिका में 135 साल के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट ने चार फैसलों में मौत की सजा बहाल रखी है, जिनमें गोली मार कर (1879), बिजली के झटके से (1890), पहली बार में नाकाम होने पर दोबारा बिजली के झटके से (1947) और इंजेक्शन से (2008) सजा देना शामिल है. साल 2008 में चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा था कि संविधान इस बात की गारंटी नहीं लेता है कि इन तरीकों को अपनाते हुए किसी तरह की पीड़ा नहीं होगी.

लेकिन अमेरिका में मौत की सजा पर अपनाए जाने वाले तरीकों पर सवाल उठते रहे हैं. ओकलाहोमा, टेक्सास और मिसूरी जैसे राज्य इसके लिए जिन दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं, वे उनके सप्लायर का नाम नहीं बताते. सुप्रीम कोर्ट के वकील थॉमसन गोल्डस्टाइन का कहना है कि मंगलवार की घटना में अगर नस फटने का मामला है, तब तो हाई कोर्ट को दखल देने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी लेकिन अगर इंजेक्शन में इस्तेमाल होने वाले रसायन पर सवाल है, तो "उन पर केस की सुनवाई करने का भारी दबाव होगा."

लॉकेट के बाद चार्ल्स वार्नर को भी मौत की सजा देनी थी. वार्नर के वकील का कहना है कि वह नई अपील करने की सोच रही हैं. वार्नर की सजा को दो हफ्ते के लिए टाल दिया गया है. वकील लॉकेट मामले की निष्पक्ष जांच की भी मांग कर रही हैं. इसी तरह मिसूरी में कॉन्ट्रैक्ट किलर रसेल बक्ल्यू के साथ 21 मई को यह प्रक्रिया अपनाई जानी थी. उसकी वकील चेरिल पीलेट का कहना है कि वह अगले हफ्ते नई अपील दायर करेंगी. पीलेट का कहना है कि उनके मुवक्किल के साथ कुछ गड़बड़ी की आशंका है क्योंकि वह बीमार है और उसकी नसें ठीक ढंग से काम नहीं करती हैं. उनका कहना है, "मौत की प्रक्रिया कोई मेडिकल प्रक्रिया नहीं है. वह इंसानों के शरीर पर प्रयोग है, जिसकी कोई जिम्मेदारी नहीं."

इस घटना के बाद मौत की सजा पर भी सवाल उठ रहे हैं. अपराधियों का बचाव करने वाले वकीलों के राष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष जेरी कॉक्स का कहना है कि ओकलाहोमा की घटना के बाद से वह सदमे में हैं और जो पहले मौत की सजा की वकालत किया करते थे, उन्हें भी दोबारा सोचना चाहिए, "दुनिया में ज्यादातर और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने तो पक्के तौर पर इसे खत्म कर दिया है."

एजेए/एमजे (एपी)