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यहां सब फिक्स है

११ जून २०१३

क्रिकेट वैसे तो दुनिया के बहुत से मुल्कों में खेला जाता है लेकिन बीते कुछ दशकों में यह खेल भारत की पहचान बन गया है. इस पहचान में स्याह धब्बे भी हैं.

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तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP/Getty Images

पहचान के ऊपर जड़ते कामयाबी के तमगे क्रिकेट को शोहरत की बुलंदी पर ले गए, वहीं बीते कुछ समय में इसकी पहचान पर लगती कालिख, इसमें लोगों की दिलचस्पी के ग्राफ को तेजी से नीचे भी ले जा रही है.

खेल की कहानी

नेपोलियन वाटरलू की लड़ाई में हारा था, इतिहास की यह घटना एक कहावत बन गयी. लेकिन नेपोलियन के हारने का भारतीय क्रिकेट से क्या ताल्लुक है? ताल्लुक है, कभी आपने सोचा है कि सन 1815 में नेपोलियन की हार इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गयी लेकिन उसे हराने वाला कौन था और वह इतिहास के नेपथ्य में क्यों चला गया? आइये तारीख के इस धुंधले तथ्य को यहां साझा करते है. वाटरलू की लड़ाई में जीत हासिल करने वाला कोई और नहीं बल्कि भारत में क्रिकेट का जनक लॉर्ड आर्थर वेलेस्ली था. ब्रिटिश सेना के इस जांबाज सेनापति को 1798 में दक्कन के विद्रोह को दबाने के लिए भारत भेज गया था. श्रीरंगपट्टनम में मैसूर के टीपू सुलतान को हरा कर केरल में जश्न मनाने गए वेलेस्ली ने वेल्लूर में क्रिकेट मैच खेल कर भारत की धरती पर इस खेल का आगाज किया था. खैर, जिस दक्कन के विद्रोह को दबा कर वेलेस्ली ने भारत में क्रिकेट के जनक का तमगा हासिल किया, आज उसी दक्कन की जमीन से उपजे श्रीसंत पर क्रिकेट की साख को बट्टा लगाने की तोहमत जड़ी गयी है.

खेल का सफर

बीते दो सदियों की दास्तान अपनी आगोश में समेटे ये खेल तमाम उतार चढाव देखने के बाद अब भारत की जिन्दगी का अहम हिस्सा है. आजादी के बाद क्रिकेट सिर्फ कुलीन तबके से ही जुड़ा रहा. यह सिलसिला 1980 के दशक में टीवी के प्रादुर्भाव तक रहा. जब भारत में टीवी 1990 के दशक में अपने पैर पसार रही थी, तब रामायण और महाभारत के प्रसारण के समय छोटे और बड़े शहरों में सड़कों पर कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता था. रविवार को शहर और कस्बों के बाजार सुबह 9 बजे के बाद खुलने लगे क्यूंकि ये समय रामायण या महाभारत देखने का होता था. यह गुजरे जमाने की बात है, लेकिन आपाधापी से भरी आज की तेज जिंदगी अगर टीवी स्क्रीन के सामने कभी थमती है तो सिर्फ क्रिकेट के नाम पर.

पतन की दास्तान

यह तो हुई क्रिकेट के उत्थान और चरम पर पहुंचने की बात लेकिन लगता है कि अर्थशास्त्र का सीमांत उत्पादकता का सिद्धांत अब क्रिकेट में भी लागू हो ही गया है. जो यह बताता है कि उत्पादकता के किसी भी साधन का एक चरम बिंदु है और इसे हासिल करने के बाद उत्पादकता में गिरावट अवश्यंभावी है. इसे क्रिकेट के लिए दीवानगी का चरमोत्कर्ष ही कहा जायेगा कि भारत जैसे शर्मो हया वाले मुल्क में यहां की मॉडल क्रिकेट के नाम पर कपड़े उतारने को उतावली हो जाएं.

बाजारवाद की अंधी दौड़ को हवा देने में लगी देसी और विदेशी कंपनियों को भारतीय जनमानस की रगों में बह रहे भावनाओं के खून को परखने में तनिक भी देर न लगी. बीते 15 सालों में क्रिकेट का जिस तरह से बाजारीकरण किया गया उसकी आग में भारत के राष्ट्रीय खेल सहित तमाम दूसरे खेल खाक हो गये. आईपीएल ने तो देश के दुलारे खिलाडियों को सलाखों के पीछे भेज कर रही सही कसर भी पूरी कर दी.

परदे के पीछे सब फिक्स है-

आईपीएल के नाम पर काले धन को सफेद बनाने का जो गोरखधंधा 6 साल पहले शुरू हुआ उसमें दुबई की डी कंपनी भी देर सबेर शामिल होगी, इसका शक शुरू में ही जाहिर हो गया था. मगर इस फटाफट क्रिकेट की भेंट एक होनहार पुलिस अफसर चढ़ जायेगा इसका अंदेशा शायद किसी को नहीं होगा. धीरे धीरे सच्चाई सामने आ रही है. याद कीजिये 10 मई को गुड़गांव में दिल्ली पुलिस के सबसे काबिल इन्स्पक्टेर बद्रीश दत्त अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मृत पाए गए. उनकी मौत को आत्महत्या बताया गया लेकिन तीन दिन बाद आईपीएल के मैच फिक्स होने का मामला सामने आया और श्रीसंत की गिरफ्तारी भी हुई. फिर 19 मई को खुलासा हुआ कि बद्रीश ने अपनी मौत के ठीक एक दिन पहले ही स्पॉट फिक्सिंग की एफआईआर दर्ज करायी थी.

दिल्ली पुलिस की जांच में यह भी पता चला कि बद्रीश अपनी जासूस गर्लफ्रेंड के माध्यम से ही सटोरियों के जाल को पकड़ सके थे. वह काफी समय से इस खुफिया मिशन में लगे थे और सटोरियों से खिलाडियों की फोन पर हुई बातचीत को भी टेप कर लिया गया था.  लेकिन इन दोनों की मेहनत रंग लाती और इनके जुटाए सबूतों की कड़ियां जुड़ पातीं, इसके पहले ही अंडरवर्ल्ड तक फैले आईपीएल के जाल ने इन दोनों को अपनी जकड में लेकर हमेशा के लिए खामोश कर दिया. अपने अफसर को खोने की कीमत चुका रही दिल्ली पुलिस ने जल्द ही इन कड़ियों को जोड़ कर करोड़ों लोगों के जज्बातों से खेल रहे कथित बड़े लोगों पर शिकंजा कस दिया लेकिन मुंबई पुलिस ने मामले में दखल देकर दिल्ली पुलिस की मेहनत से रोपी गयी जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया.

4 जून को मुंबई पुलिस के कमजोर केस की बुनियाद पर बिंदु दारा सिंह और बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन के दामाद मैयप्पन को जमानत मिली उससे यह समझने में देर नहीं लगी कि बेल के इस खेल में भी शायद अंडरवर्ल्ड का असर काम कर गया. मगर इसके अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने केस में फिर से जान फूंकते हुए श्रीसंत समेत सभी आरोपियों पर मकोका लगा कर इनकी जमानत के रास्ते बंद कर दिए. अंदरखाने बात तो ये है कि दिल्ली पुलिस को अपने इंस्पेक्टर को खोने का मलाल इस हद तक है कि अब वह इस मामले में किसी दबाव में न आने का पक्का इरादा कर चुकी है.

उसके अब तक के रवैये से तो यही लगता है कि दिल्ली पुलिस अपने होनहार अफसर को फिर से हासिल तो नहीं कर सकेगी लेकिन इस मामले की जड़ों को उजागर कर क्रिकेट की साख पर लगते काले धब्बों को शायद साफ जरुर कर पायेगी.

ब्लॉगः निर्मल यादव

संपादनः निखिल रंजन

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