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यादें ताजा हुई

२१ अक्टूबर २०१४

"हर लम्हा आपके होठों पे मुस्कान रहे, हर गम से आप अनजान रहे, जिसके साथ महक उठे आपकी जिन्दगी, हमेशा आपके पास वो इंसान रहे" यह पंक्तियां लिख भेजी हैं डॉ हेमंत कुमार ने. हमारे और पाठक क्या लिखते हैं, पढ़िए यहां..

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तस्वीर: DW

विज्ञान, तकनीक और लाइफस्टाइल के खास शो मंथन के 107वें एपिसोड पर पाठकों से मिली प्रतिक्रियाएं :

पश्चिम बंगाल से आतिश भट्टाचार्य को मंथन का यह एपिसोड अच्छा लगा. लिखते है "मेरा एलसीडी टीवी बहुत दिनों से ख़राब होने के कारण मैंने एक पुराने ब्लैक एंड वाइट टीवी पर मंथन देखा. सभी रिपोर्ट्स अच्छी लगी. ब्रह्मांड पर चर्चा बहुत ही पसंद आयी क्योंकि यह मेरा पसंदीदा विषय है."

बिहार से रेशमा खातुन लिखती हैं "आज का मंथन बेहद अच्छा था. ऋतिका राय द्वारा प्रस्तुत सभी रिर्पोटें ज्ञानवर्धक और नई खोज से भरी थी. बर्लिन टैक्सी पर रिपोर्ट दिल को छू गई. मार्टिन टैक्सी ड्राईवर से बर्लिन यात्रा की जानकारी भरी वार्ता बहुत अच्छी लगी. मुझे पूरा विश्वास है आगे भी आप लोग ऐसा ही प्रोग्राम प्रस्तुत करते रहेगे."

बिहार से ही बेलाल खान लिखते हैं "बर्लिन शहर में टैक्सी यात्रा, मार्टिन के साथ बातचीत और ऊर्जा पर विशेष रिर्पोट, प्रोजेक्ट रेगसा पर ऋतिका राय और अनवर जमाल अशरफ द्वारा विस्तार पूर्वक जानकारी पसंद आयी. मुझे हमेशा आपके इस प्रोग्राम का इंतजार रहता है. हर शनिवार को हम मंथन देखा करते हैं और साइंस के छात्रों को देखने को कहा करते हैं. ऐसा शो टीवी चैनलों पर बहुत ही कम देखने को मिलता है."

अजय प्रामाणिक और साहब सिंह ने भी मंथन की सराहना की है. कहते हैं कि हो सके तो इस शो को हफ्ते में दो बार शनिवार और रविवार को दिखाया जाये. सईद जारी आबिदी लिखते हैं कि डीडी नेशनल पर मंथन शो बहुत अच्छा शो है. इससे हमें बहुत तरह तरह की जानकारियां मिलती है और हम कभी भी इसे मिस नहीं करते. यशपाल दाधीच लिखते है प्लीज इस शो का समय बदल दीजिये ताकि सभी स्टूडेंट्स इस शो को देख सकें.

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दक्षिण एशिया में बाल मज़दूरी पर मनोज कोटनाला और साहब सिंह लिखते हैं "बाल मजदूरी सिर्फ दक्षिण में ही नहीं है, पूरी दुनिया में शोषण, कुपोषण, बल मज़दूरी और महिलाओं पर अत्याचार यह दुनिया भर में हो रहा है. भारत में तो गांवों में जा कर देखे, बाल मज़दूरी कम नहीं है."

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दिल्ली में हुए बलात्कार आरोपियों को हुई सजा के बारे में स्मार्ट योगी लिखते हैं "शर्म की बात है हमारे देश में ऐसे लोग भी रहते है. ऐसे लोगों के कारण हमारे देश का नाम ख़राब हो रहा है. इन लोगों को उम्र कैद या फांसी की सजा सुनानी चाहिए. ऐसे लड़के देश पर बोझ तो है ही लेकिन मां बाप पर भारी बोझ हैं जिन्होंने जन्म दिया उन्हीं का नाम खराब करते है. मैं अपने देशवासी लोगों को यह कहना चाहता हूं अपने आप को बदलो देश अपने आप बदल जायेगा."

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महाराष्ट्र से मुक्तानंद कुलकर्णी लिखते हैं आज फोटो फीचर पर्दे के पीछे में पूरी हिन्दी सेवा की टीम को देख कर बहुत अच्छा लगा. कुछ साल पहले आपकी तरफ से खत आते थे उसमें भी फोटो हुआ करते थे वो यादें आज ताजा हो गयी.

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संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः आभा मोंढे