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चेतन चौहान की मौत पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

समीरात्मज मिश्र
२६ अगस्त २०२०

यूपी जैसे बड़े राज्य में कोरोना संक्रमण को रोकने और संक्रमित लोगों के बेहतर इलाज के तमाम दावे किए जा रहे हैं लेकिन राज्य सरकार के दो कैबिनेट मंत्री दो हफ्ते के भीतर संक्रमण से अपनी जान गंवा बैठे हैं.

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Indien Neu Delhi BJP Politiker und Priester Yogi Adityanath
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Yadav

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, यह सभी को मालूम है लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान देश के विभिन्न राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई सामने आ गई है. दो अगस्त को यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री कमला रानी वरुण की लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में कोरोना संक्रमण के इलाज के दौरान मौत हो गई, तो 16 अगस्त को पूर्व क्रिकेटर और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान अपनी जान गंवा बैठे. इससे पहले भी यूपी सरकार में करीब एक दर्जन मंत्री संक्रमित हो चुके हैं.

पिछले हफ्ते यूपी विधानसभा के संक्षिप्त सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायक सुनील सिंह साजन ने विधानसभा परिषद में यह कहकर सबको चौंका दिया कि कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान न सिर्फ अस्पताल की बदहाली के शिकार हुए, बल्कि उनके साथ डॉक्टरों और अस्पताल कर्मियों ने बहुत ही अपमानजनक व्यवहार किया. सपा विधायक सुनील का कहना था कि वे भी चेतन चौहान के साथ ही कोरोना वॉर्ड में भर्ती थे और उनके पास वाले बेड पर ही थे. उनका आरोप था, "चेतन चौहान कोरोना से नहीं, बल्कि सरकार की अव्यवस्था से हम सब को छोड़ कर गए."

सरकारी अस्पताल से प्राइवेट में ट्रांसफर

लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में कई दिन रहने के बाद चेतन चौहान की हालत जब गंभीर होती गई तो उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां दो दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई. लखनऊ पीजीआई के निदेशक डॉक्टर आरके धीमान ने सपा विधायक के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इलाज के दौरान मंत्री चेतन चौहान के साथ उनकी कई बार बातचीत हुई लेकिन उन्होंने कभी इस घटना का जिक्र नहीं किया और वह पारिवारिक मामलों का हवाला देते हुए खुद गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल गए थे. हालांकि पीजीआई निदेशक ने कहा है कि बावजूद इसके वे इस पूरे मामले की जांच कराएंगे.

लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में से एक है. इसके अलावा भी यहां कुछ बेहतरीन अस्पताल हैं जहां सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा किया जाता है. लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान इन अस्पतालों की बदहाली और इंफ्रास्ट्रकचर की कमजोरी की पोल खुल गई. अस्पताल के डॉक्टरों और कर्मचारियों के अशिष्ट व्यवहार की भी चर्चा इसलिए हुई क्योंकि कई ‘वीआईपी' लोग बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आए और अभी आ भी रहे हैं. आम लोगों के साथ ऐसा अक्सर होता रहता है लेकिन तब यह मुद्दा नहीं बन पाता है.

सामने आई अस्पतालों की बदहाली

दो दिन पहले ही लखनऊ में एक वरिष्ठ पत्रकार राधेश्याम दीक्षित ने अस्पतालों की बदहाली और कर्मचारियों की बेअदबी से संबंधित एक वीडियो पोस्ट किया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद उन्हें कोई डॉक्टर देखने तक नहीं आया और न ही लोग उन्हें होम आइसोलेशन के लिए घर जाने की अनुमति दे रहे थे. उनका कहना था, "विरोध करने पर या सवाल उठाने पर मुझे मारा पीटा गया, अस्पताल से बाहर फेंक दिया गया और मुझे पागल घोषित करने की कोशिश की गई. यहां तक कि एक मनोवैज्ञानिक के साथ मुझे घंटों सवाल जवाब में लगाए रखा गया. यह तो शुक्र है कि मनोवैज्ञानिक ने अपनी पेशागत ईमानदारी का परिचय दिया और अपनी रिपोर्ट में मुझे सामान्य व्यक्ति बताया.”

स्वास्थ्य सेवाओं और कोरोना के नाम पर लोगों को अस्पतालों में कथित तौर पर परेशान करने के ये कुछ नमूने हैं. सरकार इनके इलाज पर अच्छी-खासी धनराशि खर्च कर रही है, टेस्ट किए जा रहे हैं लेकिन हर जगह अव्यवस्था और भ्रष्टाचार का बोलबाला है. आश्चर्यजनक बात यह है कि कोरोना पॉजिटिव आने वाले व्यक्ति को उसकी रिपोर्ट तक नहीं दिखाई जाती और ऐसे न जाने कितने मामले सामने आ चुके हैं जबकि एक ही व्यक्ति का एक ही सैंपल, एक लैब में पॉजिटिव और दूसरे में निगेटिव बताया जा चुका है.

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परिवार की अपील विवाद बनाएं

पिछले दिनों इलाहाबाद संसदीय सीट से बीजेपी की सांसद रीता बहुगुणा जोशी के पति पूरन चंद्र जोशी की निगेटिव रिपोर्ट को पॉजिटिव बता दिया गया. जब परिवार के लोग उन्हें भर्ती कराने दिल्ली ले जाने लगे तो पता चला कि रिपोर्ट निगेटिव है, स्वास्थ्य विभाग ने गलती से उसे पॉजिटिव बता दिया था. जहां तक चेतन चौहान की कोरोना संक्रमण से मृत्यु का सवाल है तो उनकी पत्नी और परिजन सरकारी लापरवाही की बात नहीं मानते लेकिन सपा विधायक सुनील साजन के साथ ही दूसरे राजनीतिक दल और अन्य लोग भी इस मामले की जांच की मांग कर रहे हैं.

चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान ने दो दिन पहले मीडिया से बातचीत में अपने पति के निधन पर विवाद न खड़ा करने का अनुरोध किया है. उनका कहना था, "चेतन जी ने कभी भी यह नहीं बताया कि उन्हें कोई स्वास्थ्य समस्या है. परिवार के सुझाव पर हमने उन्हें पीजीआई से मेदांता शिफ्ट कर दिया. योगी जी और राज्य मंत्री ने हमारी मदद की. डॉक्टर हर्षवर्धन उनके स्वास्थ्य पर एक दैनिक अपडेट लेते थे. चूंकि चेतन कोरोना वॉर्ड में थे, इसलिए हम उनसे नहीं मिल सके.”

लेकिन राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके सरकारी सहयोगियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए लखनऊ के पुलिस आयुक्त सुजीत पांडे को एक शिकायत सौंपी है, जिसमें आरोप लगाया गया कि राज्य सरकार की लापरवाही के कारण चेतन चौहान की मृत्यु हुई है. वहीं शिवसेना ने पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान की मौत की सीबीआई जांच की मांग की है और इस संबंध में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को एक ज्ञापन सौंपा है. चेतन चौहान उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री थे और उनके पास सैनिक कल्याण, होमगार्ड, नागरिक सुरक्षा और प्रांतीय रक्षक दल जैसे विभाग थे.

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