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ये कैसे पेंशनभोगी?

शिवप्रसाद जोशी५ फ़रवरी २०१६

उत्तर प्रदेश सरकार में पेंशन के आवेदकों में क्रिकेटर सुरेश रैना, अभिनेता राज बब्बर और मालिनी अवस्थी जैसे जानेमाने लोगों का नाम आने से इस मामले पर एक बहस छिड़ गई है. शिव जोशी पूछते हैं कि मदद तो बड़े उद्यमी भी ले रहे हैं.

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Indien Raj Babbar Schauspieler
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan

बहस इस बात पर है कि. क्या सेलीब्रिटीज और धनपति लोगों को इस तरह से सरकारी मदद लेना शोभा देता है? क्या ये अनैतिक और अनुचित नहीं है? क्या उनका फर्ज नहीं बनता कि वे इससे इनकार कर दें? उत्तर प्रदेश सरकार, अपने यहां के मूल निवासी जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में नाम कमाया है, उन्हें यश भारती सम्मान देती है और ऐसे ही पुरस्कार प्राप्त लोगों से 50 हजार रुपये की मासिक पेंशन के लिये आवेदन मांगे गए थे. इसके लिये कुल 108 लोगों ने आवेदन किया है. बताया जाता है कि इन्हें इस साल अप्रैल से पेंशन दी जाएगी और इस वजह से राज्य सरकार के खजाने पर प्रति माह 54 लाख रुपये का भार आएगा. ध्यान देने की बात ये है कि यश भारती सम्मान के तहत इन्हें 11 लाख रुपये की पुरस्कार राशि पहले ही दी जा चुकी है.

एक राय ये हो सकती है कि सेलीब्रेटीज को इस तरह से सरकारी पैसे पर दावा नहीं करना चाहिए और उनसे ये उम्मीद की जाती है कि संवेदशीलता का परिचय देते हुए गरीबी और भूखमरी से जूझ रहे लोगों के लिये इस तरह की मदद छोड़ दें या इस पैसे को कल्याणकारी योजनाओं के लिये बांट दें. लेकिन ये सवाल फिर यहीं तक सीमित नहीं रहता. इस तर्क से देखा जाए तो हर उस व्यक्ति को जिसके पास पर्याप्त पैसा है, पेंशन और सरकारी सुविधाएं नहीं लेना चाहिए जबकि प्रभावशाली लोगों द्वारा सरकारी पैसे और सुविधाओं के दुरुपयोग की खबरें यहां आए दिन सुर्खियां बनती हैं. धनी-मानी सरपंच और प्रधान अपने परिवार और परिजनों के लिये बीपीएल और मनरेगा के कार्ड बनवा लेते हैं, सांसद, विधायक और अफसर रेलवे और हवाई पास और चिकित्सा के कार्ड से हजारों-लाखों रुपये की हेरफेर कर देते हैं. यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल तक के बारे में सूचना के अधिकार के तहत ये खुलासा हुआ था कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को सरकारी पैसे पर विदेशी दौरे करवाए.

यहां घरेलू गैस की सब्सिडी छोड़ने के लिये सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान का उल्लेख जरूरी है. पर्याप्त धनी लोगों से ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वे किसी कथित गरीब के हक में अपनी सब्सिडी छोड़ दे. लेकिन ये उम्मीद मध्यवर्गीय या निम्न मध्यमवर्गीय लोगों से ही क्यों की जा रही है. इसके पहले तो अंबानी, अदानी, टाटा और बिड़ला जैसी ख्यात कॉरपोरेट कंपनियों को सरकारी रियायतें नहीं लेनी चाहिए. क्या वे ऐसा करती हैं? आगामी बजट में संभावना जताई जा रही है कि कॉरपोरेट को पांच लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाएगी. भले ही इसे नाम इंसेटिव का दिया जा रहा हो लेकिन हकीकत में तो ये सरकारी मदद ही है.

महात्मा गांधी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया था कि प्रभु वर्ग को वंचितों के हित में अपने संसाधनों का वितरण कर देना चाहिये. आज जिस तरह से अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ रही है इस पर अमल किए जाने की जरूरत है लेकिन इस दिशा में सोचने वाले कम हैं. सरकारी पेंशन, पैसे की सुविधा और रियायत का लाभ उठाने का फैसला निजी और अंतरात्मा की आवाज पर है. हां ये जरूर है कि सुरेश रैना और राज बब्बर जैसे स्टार इसे छोड़ कर एक नजीर तो कायम कर ही सकते हैं. दूसरी बात ये भी है कि सरकारें सम्मान को एक कृपा की तरह या एक खैरात की तरह न देखें, न बांटें. उस पर पेंशन का भी ऐलान कर देना जैसे एक तरह की कृपा का विस्तार ही है. ये प्रतिभा को ठेस पहुंचाने जैसा भी लगता है.

सरकारों को बेशक कला और अन्य क्षेत्रों की प्रतिभाओं को प्रश्रय और प्रोत्साहन देना चाहिए लेकिन इसमें किसी तरह के लोकप्रियतावाद और पब्लिसिटी से बचना चाहिए. अगर आप प्रतिभाओं का सम्मान कर रहे हैं तो उनकी माली हालत देखिए, उन्हें अच्छे अवसर दीजिए और उनके लायक समाज में अनुकूल पर्यावरण बनाने में मदद कीजिए. पेंशनवाद और पुरस्कारधर्मिता से बचे जाने की जरूरत है.