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योग का एक दिन कितना सार्थक

१२ दिसम्बर २०१४

भारत की पहल पर 175 देशों के समर्थन से संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है. घोषणा से भारत में बीजेपी और मोदी समर्थकों में जीत की लहर तो दौड़ी ही है. योग से जुड़े संगठन भी खुश हैं.

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तस्वीर: Fotolia/detailblick

भारत में बीजेपी समर्थित हल्कों में तो ऐसा दिखाया जा रहा है कि मानो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बहुत ही अभूतपूर्व बाजी जीत ली है और दुनिया में भारत का परचम लहरा दिया है. शुक्रवार को देश के कई अखबारों में योग मुद्राओं के रेखांकनों के बीचों बीच मोदी की बड़ी सी तस्वीर वाले सरकारी विज्ञापनों को देखकर तो कम से कम यही आभास होता है. अपनी पीठ थपथपाने का ये मौका जाहिर है बीजेपी और मोदी भला हाथ से कैसे जानें देंगे.

योग से जुड़े शिक्षक, प्रशिक्षु, छात्र और पेशेवर भी योग दिवस के एलान से खुश हैं. योग के उद्योग से जुड़े कारोबारी भी निश्चित ही प्रसन्न होंगे. क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के एलान का जितना सांस्कृतिक और सामाजिक आशय होता है उतना ही उसका संबंध विषय की आर्थिक तंत्र से भी है. ये आर्थिकी और चमकेगी. योग अब पूरी दुनिया में एक फलाफूला उद्योग है. इस लिहाज से देखें तो बीजेपी के लोग राजनैतिक कारणों से दिवस के एलान पर भले ही इतराएं लेकिन तथ्य ये है कि योग को लेकर आकर्षण का एक पुराना इतिहास रहा है. और दिनों दिन इसके प्रति लोगों में चाहत बढ़ती जा रही है. योग साधना, ध्यान और अध्यात्म के साथ मिलकर अफरा तफरी, अशांति, हिंसा और भीषण सामाजिक-सांस्कृतिक कोलाहल के बीच खुद को फंसा महसूस करते लोगों के लिए एक आत्मिक शांति का जरिया रही है.

भारत से लेकर अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तक योग का अरबों डॉलर का कारोबार है. अमेरिका में बाकायदा योग स्टूडियो हैं. और कई योगा स्टाइल विकसित की गई हैं. योग से जुड़ी चीज़ों का कारोबार भी तेज़ी से पनप रहा है. योगा क्लॉथ, योगा मैट्स, योगा बैंड, योगा एक्सेसरीज़, योगा स्टूडियोज़ की डिजाइनिंग और निर्माण भी एक कौशलपूर्ण पेशा है. योग सीखना अब एक महंगा सौदा है. भारत की योग नगरी कहे जाने वाले ऋषिकेश के एक मशहूर योग केंद्र में एक महीने के कोर्स की फ़ीस दो हज़ार डॉलर है और पश्चिमी देशों में तीन सौ से पांच सौ घंटे तक के लिए तीन हज़ार से पांच हज़ार डॉलर की फीस ली जाती है. इसके अलावा मशहूर योग विशेषज्ञों के वर्कशॉप उनके नाम से बिकते हैं.

DW Mitarbeiter Shiv Prasad Joshi
शिवप्रसाद जोशीतस्वीर: DW

उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र के एलान से दुनिया में योग के प्रति और चेतना विकसित होगी और ज्यादा से ज्यादा लोग योग अभ्यास से जुड़ेंगे. लेकिन डर भी हैं. सबसे पहला डर तो यही है कोई अति आकांक्षी बिजनेस मॉडयूल उसकी गरिमा और अहमियत को धराशायी न कर दे. योग अगर दुनिया में और लोगों की निजी जिंदगियों में शांति लाता है तो उसकी वो भूमिका भी हमेशा प्रासंगिक और रेखांकित रहे. एक डर ये भी है कि कहीं योग का सरलीकरण न कर दिया जाए. ये एक अलग और जटिल अभ्यास है जहां बहुत आंतरिक स्वच्छता, पारदर्शिता और ईमानदारी की जरूरत है.

क्या भारत में और दुनिया में योग के झंडाबरदार ये सब महफूज रख पाएंगें. एक बड़ा डर प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है. योग के नाम पर जब कई स्कूल, संस्थान, धाराएं और शैलियां आएंगी तो पेटेंट के सवाल कैसे हल होंगे. अमेरिका में तो पेटेंट को लेकर झगड़े कुख्यात हैं. योग गुरु विक्रम चौधरी के विक्रम योग के पेटेंट का विवाद पुराना नहीं पड़ा है.

योग दिवस के एलान से एक नये किस्म की आपाधापी योग उद्योग में भी शुरू हो जाने की आशंका है. भारत में भी कई योग गुरु अपने अपने दावों और उपलब्धियों के साथ सामने आएंगें. आरोपों और विवादों की नई मुद्राएं दिखेंगी. कहीं ऐसा न हो कि श्रेय लेने की होड़ और प्रशस्तिगान में योग की सच्ची पहचान धुंधली पड़ जाए. योग दिवस तो ठीक है लेकिन ये कहीं योग राजनीति की लड़ाई का अखाड़ा न बन जाए- ये सुनिश्चित करना भी जरूरी है.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी