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राजनीतिक और आर्थिक बलात्कारों का गढ़

३ दिसम्बर २०१०

बलात्कार सिर्फ जुर्म नहीं हथियार भी है. इसकी वजह आर्थिक और राजनीतिक भी होती है. निशाना बनाकर और बड़े पैमाने पर बलात्कार किए जा सकते हैं. म्यांमार इन सबकी मिसाल बनता जा रहा है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

जून 2008 में संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव के जरिए तय किया कि हिंसक विवादों में महिलाओं का बालात्कार युद्ध अपराध है. जबसे म्यांमार में 1962 में सैन्य सरकार ने सत्ता अपने हाथों में ली तबसे देखा गया है कि वहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं और खासकर बड़े पैमाने पर राजनीतिक और आर्थिक कारणों की वजह से महिलाओं पर यह जुल्म हो रहा है.

Alltag in Birma
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अल्पसंख्यक शान समुदाय की महिला संस्था स्वान के मुताबिक म्यांमार में महिलाओं का बलात्कार करने वालों में से 60 प्रतिशत सैनिक हैं. ऐसी हर तीसरी महिला नाबालिग है और 25 फीसदी महिलाओं की मौत हो जाती है. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब महिलाओं का अपहरण किया गया और उन्हें महीनों तक सैनिक अड्डों पर रखा गया और उनके साथ यौन शोषण किया गया. दुख की बात है कि सिर्फ एक प्रतिशत अपराधियों को इसकी सजा मिलती है.

स्वान के लिए काम करने वाली महिला कार्यकर्ता हसेंग नुओंग लिंतनर ने 1996 से 2001 तक के आंकड़े इकट्ठा किए हैं. वह बताती हैं कि मामले बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन आंकड़े जमा करना और उन्हें प्रकाशित करना भी कम मुश्किल काम नहीं. हसेंग कहती हैं, "आज भी पूरे देश पर सैनिक सरकार का कब्जा है. हर दिन मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है. यह भी स्पष्ट है कि ऐसा जानबूझ कर किया जाता है. उदाहरण के लिए यदि सैनिक एक महिला का बलात्कार करते हैं तब इसका अंजाम होता है कि उसका पूरा परिवार शर्म की वजह से इलाके को छोडकर भाग जाता है. इसी तरह कई इलाकों को खाली किया गया है. मैं एक ऐसे मामले को जानती हूं जहां एक पूरे परिवार को सूचना मिली कि उन्हे कहीं और बसाया जाएगा. तब एक रात को सैनिक आए और उन्होने मां और बेटी के साथ बलात्कार किया."

Bürgerkrieg in Birma
तस्वीर: AP

विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं पर यह जुल्म इसलिए भी एक क्रूर अपराध है क्योंकि यह एक खामोश हथियार है, लेकिन इसका सदमा जिंदगी भर रहता है. इसके साथ पुरुषों का भी अपमान होता है क्योंकि उनके ऊपर इल्जाम लगता है कि वह अपने ही घर के महिलाओं की रक्षा नहीं कर पाए हैं. फ्रांस की मशहूर महिला कार्यकर्ता वेरोनिक नहूम-ग्राप का कहना है, "ऐसी हालत में महिला अपने महिला होने की पहचान खो बैठती है. ऐसा अपराध करने वाले जानते हैं कि उन्हें किसी की जान लेने की जरूरत नहीं. इस अपराध के साथ ही वह उस महिला और उसके परिवार और समाज को खत्म कर सकते हैं."

रिसर्च से पता लगता है कि ऐसी महिलाएं जिन्दगी भर डरी रहती हैं. वह समझती हैं कि उन पर कलंक लग गया है और कई बार तो उन्हें समाज से अलग थलग कर दिया जाता है. पति छोड़ देता है या उनकी शादी नहीं हो पाती है. इसके विपरीत देखा गया है कि यह अपराध करने वालों की हिम्मत बढ़ जाती है.

कहा जाता है कि यह एक सोचा समझा हुआ जुर्म है और सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक कारणों से भी महिलाओं को हथियार बनाया जा रहा है. 4.8 करोड़ की आबादी वाले म्यांमार में 135 अलग अलग जातियों के लोग रहते हैं. उदाहरण के लिए म्यांमार में गैस की नई पाइप लाइन बिछ रही है और बड़ी नदियों पर बांध बनाने की योजनाएं हैं ताकि चीन तक बिजली सप्लाई हो सके.

मिशेल रॉय महिलाओं से जुड़े इस अत्याचार की अंतरराष्ट्रीय जांच करने वाली संस्था से जुड़े हैं. वह बताते हैं, "महिलाओं पर हो रहे इस जुल्म के पीछे आर्थिक कारण बढ़ गए हैं. उदाहरण के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों को पाने कि इच्छा. सिर्फ म्यांमार ही नहीं, कोलंबिया, कांगो और दूसरे देशों में भी ऐसा देखने को मिलता है. अकसर इस अपराध का मकसद लोगों को दबा कर जमीन हथियाना होता है."

संयुक्त राष्ट्र के विशेष मानवाधिकार राजदूत थोमास क्विंताना की मांग है कि म्यांमार जैसे देशों में लगातार बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं की जांच होनी चाहिए. महिला कार्यकर्ता हसेंग नुओंग लिंतनर का कहना है कि तभी ऐसे अपराधों दुनिया भर में निंदा हो सकेगी और इन पर लगाम कसी जा सकेगी. वह कहती हैं, "इस मकसद को पाने के लिए हमें अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत है. हमें वह रास्ता निकालना है, जिसके जरिए हम सैनिक सरकार का सामना कर सकें. हम राजनीतिक इच्छा शक्ति पर भरोसा करते हैं जिसे म्यांमार के पडोसी देशों को और साथ ही दुनिया के दूसरे देशों को भी दिखाने की जरूरत है."

रिपोर्टः एजेंसियां/प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः वी कुमार

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