1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

राजनीतिक दलों को सबक देते चुनावी नतीजे

कुलदीप कुमार१९ मई २०१६

पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे हैं. कुलदीप कुमार का कहना है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों को दूसरी पांत का नेतृत्व बनाने पर ध्यान देना होगा.

https://p.dw.com/p/1IqMy
Indien Wahlen Ergebnis Menschen feiern auf den Straßen Trinamool Congress TMC
तस्वीर: Reuters/R. deChowdhuri

विधान सभा चुनाव नतीजों का विभिन्न राजनीतिक दलों और राज्यों एवं देश की राजनीति के लिए बड़ा महत्व है. लगता है भाजपा का ‘कांग्रेसमुक्त भारत' का नारा सफल हो रहा है क्योंकि इस समय उत्तराखंड और कर्नाटक के अलावा कांग्रेस कहीं भी सत्ता में नहीं है. केरल में उसकी हार इतनी अप्रत्याशित नहीं है जितनी असम में. दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी लेकिन जहां केरल का इतिहास बताता है कि वहां एक बार कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन और दूसरी बार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन जीतता है, वहीं असम में ऐसा नहीं है. वहां तरुण गोगोई के नेतृत्व में पिछले पंद्रह साल से कांग्रेस की सरकार थी. यदि इस बार कांग्रेस 82 वर्षीय गोगोई की जगह किसी युवा नेता को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करती, जैसा कि भाजपा ने उनके पूर्व सहयोगी सरबानन्द सोनीवाल को पेश करके किया, तो शायद उसे मतदाताओं का अधिक समर्थन मिलता. इसी तरह पश्चिम बंगाल में माकपा का प्रदर्शन कांग्रेस से भी खराब रहा है. इसका कारण यह बताया जा रहा है कि जहां माकपा का प्रतिबद्ध वोट कांग्रेस को मिला, वहीं कांग्रेस का वोट माकपा के बजाय तृणमूल कांग्रेस या भाजपा को गया. वह भी तब जब पुराना बैरभाव भुला कर कांग्रेस और माकपा ने ‘महागठबंधन' की रणनीति अपनाई थी.

इन नतीजों के आने के बाद भी यदि कांग्रेस और माकपा आत्मनिरीक्षण, विश्लेषण और नीतियों एवं कार्यशैली में सुधार नहीं करते, तो इन दोनों ही पार्टियों का भविष्य बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता. कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार की छत्रछाया से बाहर निकल कर वैकल्पिक और दूसरी पंक्ति का नेतृत्व विकसित करना होगा और घिसी-पिटी राजनीति की जगह नए किस्म का राजनीतिक आख्यान रचना होगा ताकि मतदाता को उसमें नई सोच, नए सपने और नया भविष्य नजर आ सके. कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी जमीनी स्तर पर संगठन में बिखराव है. अगले साल उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव हैं. यदि इस बीच उसने अपना संगठन मजबूत नहीं किया और नवोन्मेषकारी राजनीति की शुरुआत नहीं की, तो उसका सफाया लगभग तय है. आज के नतीजों के बाद अन्य दल उसके साथ गठबंधन करने में भी हिचकिचाएंगे.

माकपा भी अब केवल केरल और त्रिपुरा में सिमट कर रह गई है. उसे भी गंभीर आत्मविश्लेषण की जरूरत है. मायावती, मुलायम सिंह यादव और अन्य पार्टियों के नेताओं को भी कांग्रेस से सबक लेने की जरूरत है क्योंकि इनमें भी दूसरी पंक्ति का नेतृत्व नहीं है. यह लोकतंत्र के लिए अच्छी स्थिति नहीं है.

विपक्षी दलों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि पहले जितनी आकर्षक भले ही न रह गई हो, लेकिन फिर भी आज भी उसमें काफी कशिश बरकरार है और अभी तक उन्हें चुनौती दे सकने वाला कोई भी नेता राष्ट्रीय राजनीति में उभर कर नहीं आ सका है. राहुल गांधी यह भूमिका निभाने में सक्षम नहीं हैं, अब अधिकांश लोग यह मानने लगे हैं. अगले लोकसभा चुनाव तक यदि कोई राष्ट्रीय स्तर का विकल्प उभर कर नहीं आ सका तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का 2019 में फिर से जीतना लगभग निश्चित है.