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समाज

राजस्थान में दो एचआईवी जोड़ों की शादी

जसविंदर सहगल
३० नवम्बर २०१८

आम तौर पर एचआईवी संक्रमित लोग अपनी बीमारी को छिपा कर रखते है, लेकिन भरतपुर जिले के दो जोड़ों ने अपने एचआईवी स्टेटस को सार्वजानिक करते हुए अपने एचआईवी साथी के साथ विवाह कर मिसाल पेश की है.

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Indien HIV-Patienten heiraten
तस्वीर: DW/J. Sehga

भारत में आम तौर पर लोग एड्स रोग को चरित्र के साथ जोड़कर देखते हैं और रोगी के साथ बहुत भेदभाव होता है. यही कारण है कि एचआईवी संक्रमित लोग अपने बारे में दूसरे को खुलकर बताने से हिचकिचाते हैं और शादी हो जाने के बाद जब दूसरे जीवनसाथी को इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

लेकिन राजस्थान में भरतपुर नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी संस्था से जुड़े दो जोड़े किसी से कुछ नहीं छिपाना चाहते. वे एचआईवी के साथ कई बरसों से जी रहे हैं. नेटवर्क की 12वीं वर्षगांठ पर उनका विवाह समारोह हुआ जिसमें बड़ी संख्या में एचआईवी संक्रमित और प्रभावित लोगों ने भाग लिया.

भरतपुर की एड्स सोसायटी ने तय किया कि एचआईवी संक्रमितों का आपस में विवाह करा समाज को संदेश दिया जाए कि एड्स रोगी भी समाज का ही हिस्सा हैं और उन के पारस्परिक विवाह भी संभव है. यह संस्था पहले भी ऐसे 11 विवाह करा चुकी है और सभी जोड़ों के बच्चे हो चुके हैं जिन्हें एचआईवी संक्रमण नहीं है.

भरतपुर की एड्स सोसायटी ने तय तो कर लिया कि यह विवाह समारोह धूमधाम से होगा लेकिन संस्था की आर्थिक बदहाली और दोनों ही जोड़ों की वित्तीय स्थिति को देखते हुए यह काम आसान नहीं था.

ऐसे में, सोसाइटी ने विवाह समारोह और भावी दंपतियों को भेंट देने के लिए एक लिखित अपील जारी की जिस पर रोटरी क्लब जैसे कुछ सामाजिक संगठन आगे आए और एक विवाह समारोह, दो शादियों की मिसाल बन गया.

Indien HIV-Patienten heiraten
तस्वीर: DW/J. Sehga

समारोह में मौजूद एचआईवी के साथ जी रहे लोग सरकार और सिस्टम से खासे नाराज नजर आए. बृजेश दुबे पिछले 18 साल से एड्स से लड़ रहे हैं और जाने माने एड्स एक्टिविस्ट है. वह एड्स के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आई स्वयंसेवी संस्थाओं की आलोचना करते हैं.

उनका कहना था कि 'ग्लोबल फंड' नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था एड्स रोगियों के लिए काफी पैसा ऐसी संस्थाओं को दे रही है जो कभी ऑडिट ही नहीं कराती और एड्स रोगियों की बजाय अपनी सुख सुविधाओं पर ज्यादा खर्च करती हैं.

उनका कहना था कि सरकार को चाहिए कि वह तत्काल ऐसी संस्थाओं की सोशल आडिट करवाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके. उन्होंने आरोप लगाया कि राजस्थान हाई कोर्ट ने भी इस बारे में जो जानकारी मांगी थी, वह भी सरकारी एजेंसियों ने आज तक उपलब्ध नहीं करवाई है.

उनका कहना था कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन 'नाको' के अनुसार भारत में हर साल 69 हजार से ज्यादा लोग एड्स के कारण मर जाते है जबकि एचआईवी संक्रमितों की कुल संख्या 21 लाख से ज्यादा है. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि अकेले राजस्थान में ही रोजाना पांच से आठ लोग एड्स के कारण मारे जाते हैं.

देश की संसद ने पिछले वर्ष ही एचआईवी/एड्स बिल पारित कर दिया था लेकिन बृजेश दुबे कहते हैं कि एक साल बीत जाने के बाद भी इस बारे में कोई नियम कायदे नहीं बनाए गए है जिससे आज तक यह बिल कानून की शक्ल नहीं ले पाया है.

भरतपुर नेटवर्क की सचिव कुसुम सोनी का कहना था कि विवाह के समय पुरुष अपना एचआईवी स्टेटस नहीं बताते हैं जिससे उनकी पत्नियां भी अनजाने में संक्रमण की चपेट में आ जाती हैं. इसके अलावा उन्होंने बताया कि एड्स के कारण होने वाली अकाल मौतों के कारण छोटी उम्र में विधवा हो रही महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. कुसुम का कहना था कि सामाजिक भेदभाव के कारण एचआईवी संक्रमित महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.

भरतपुर नेटवर्क के अध्यक्ष गजेंदर सिंह का कहना है कि भारत के विभिन्न राज्यों में एचआईवी संक्रमितों को दी जा रही सुविधाओं में बहुत अंतर है जबकि वायरस के साथ जीने वाले सभी समान हैं. उन्होंने कहा कि नए भर्ती किए जा रहे डॉक्टरों, स्वास्थ कर्मियों और नर्सों को एचआईवी के बारे में पर्याप्त ट्रेनिंग भी नहीं दी जा रही है जिस पर सरकार को त्वरित रूप से ध्यान देना चाहिए.

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