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कानून और न्याय

"राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए राष्ट्रगान की जरूरत नहीं"

शोभा शमी
२४ अक्टूबर २०१७

सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य करने के अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार को इस आदेश से प्रेरित हुये बिना विचार करना होगा. कोर्ट ने कहा है कि देशभक्ति बांह पर पट्टा लगाने की कोई चीज नहीं है.

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Indien Oberstes Gericht Supreme Court
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/T. Topgyal

सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य करने के लगभग 11 महीने बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में परिवर्तन करने के संकेत दिये हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र तय करे कि इस बारे में नियम क्या होंगे. साथ ही यह भी कहा कि यह मामला सरकार के अधिकार क्षेत्र का है और उसे इन मामलों में फैसला लेने के लिए कोर्ट से नहीं पूछना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश भर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज संहिता में संशोधन करने पर विचार करे. इस मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि भारत एक विविधता वाला देश है और एकरूपता लाने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना आवश्यक है.

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने संकेत दिया कि वह एक दिसंबर, 2016 के अपने आदेश में सुधार कर सकती है. इसी आदेश के तहत देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के मकसद से सिनेमाघरों में फिल्म के प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान बजाना और दर्शकों के लिए इसके सम्मान में खड़ा होना अनिवार्य किया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय बाद सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाए जाने के बारे में अपने आदेश में सुधार करते हुए शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने से छूट दे दी थी.

इस मामले में न्यायधीश चंद्रचू़ड़ ने कहा, "लोग मनोरंजन और आराम के लिए सिनेमा देखने जाते हैं. कल को कोई कह सकता है कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजता है इसलिए लोगों को शॉर्ट्स और टी-शर्ट में नहीं आना चाहिए. फिर हम कहां लकीर खींचेंगे. यह मॉरल पुलिसिंग कहां रुकेगी?"

सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य करने का अंतरिम आदेश न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पारित किया गया था. बाद में वे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश बने और उन्हें इस संबंध में कई याचिकायें मिलीं, जिसमें स्कूल, सरकारी दफ्तरों और कोर्ट को भी इस आदेश में शामिल करने की बात कही गयी थी.

इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था. उन्होंने कहा था कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान का बजना लोगों में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना को बढ़ाएगा. सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश में भी न्यायधीश चंद्रचूड़ ने आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि देशभक्ति के नाम पर नैतिक पहरेदारी की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

उन्होंने कहा था कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि जो राष्ट्रगान नहीं गाते वे राष्ट्रभक्त नहीं होते? आपकी अपनी राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए राष्ट्रगान गाने की जरूरत नहीं है. एक व्यापक सामाजिक और राजनीतिक संस्कृति में मूल्यों को ध्यान में रखा जाता है, लोगों के भीतर राष्ट्रभक्ति का भाव सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नहीं आ सकता.