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रूसी वैक्सीन ने कितने टेस्ट पास किए?

ओंकार सिंह जनौटी
१२ अगस्त २०२०

कोरोना महामारी के खिलाफ कम टेस्ट हुई वैक्सीन से लोगों को फौरी मदद दी जाए या फिर मृतकों की संख्या को नजरअंदाज कर पूरी तसल्ली के बाद वैक्सीन उतारी जाए? रूसी वैक्सीन ने यह बहस छेड़ दी है.

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Coronavirus | Russland Impfstoff zugelassen
तस्वीर: AFP/Russian Direct Investment Fund

रूस की कोरोना वैक्सीन, अंतरराष्ट्रीय पावर गेम को भी सुई चुभोती दिख रही है. 11 अगस्त को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एलान किया कि रूस कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने वाला पहला देश बन गया है. वैक्सीन को स्पुतनिक-5 नाम दिया गया है. पुतिन ने यह भी दावा किया कि वैक्सीन के दो इंजेक्शन खुद उनकी एक बेटी को लगाए जा चुके हैं और नतीजे अच्छे रहे.

पुतिन के इस एलान से पहले कई विशेषज्ञ मॉस्को की जल्दबाज रुख की आलोचना कर रहे थे. वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन के आधिकारिक एलान के बाद तो आलोचना और मुखर हो गई.

कोरोना वायरस के खिलाफ बेहद असरदार रणनीति बनाने वाले जर्मनी ने भी पुतिन के दावों पर आशंका जताई है. बुधवार को जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री येंस स्पान ने कहा, "जो कुछ हमें पता है उसके आधार पर मैं कहता हूं इसका पर्याप्त टेस्ट नहीं किया गया है.” स्पान ने कहा, "यह किसी तरह पहले आने की होड़ नहीं है, यहां बात एक सुरक्षित टीके की हो रही है.”

जर्मन स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक, "लाखों लोगों को बहुत जल्द टीका लगाना खतरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर ये गलत साबित हुआ तो लोगों का टीकाकरण से भरोसा उठ जाएगा.”

कैसे टेस्ट हुई वैक्सीन स्पुतनिक-5

रूस कोरोना के खिलाफ तैयार वैक्सीन को पहले और दूसरे फेज के ट्रायल में इंसानी कोशिकाओं, बंदरों और इंसानों पर टेस्ट कर चुका है. इस टेस्ट के दौरान रूसी अधिकारियों ने दवा के असरदार साबित होने का दावा किया. लेकिन वैक्सीन का तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल अभी पूरा नहीं हुआ है.

Coronavirus | Russland Impfstoff zugelassen
रूस ने किया वैक्सीन का रजिस्ट्रेशनतस्वीर: AFP/Russian Direct Investment Fund

मॉस्को स्थित एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल ट्रायल्स ऑर्गेनाइजेशन (एक्टको) ने भी रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय से मांग करते हुए कहा कि फेज-3 ट्रायल तक वैक्सीन को मंजूरी न दी जाए. एक्टको की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर स्वेतलाना जाविडोवा ने रूसी वेबसाइट मेडपोर्टल से बातचीत में कहा कि पहले और दूसरे चरण में इस वैक्सीन को 76 लोगों पर टेस्ट किया गया. इतने कम लोगों पर टेस्ट के बाद दवा को असरदार कहना संभव नहीं है.

क्या है फेज-3 ट्रायल

किसी भी दवा या वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन के लिए फेज-3 ट्रायल सबसे अहम माना जाता है. इस चरण में फेज वन और टू के नतीजों और दवा हर तरह के असर को विस्तार से टेस्ट किया जाता है. फेज-3 ट्रायल जितने ज्यादा लोगों पर और जितनी लंबी अवधि के लिए होगा, नतीजे उतने सटीक आते हैं. आम तौर पर इस चरण में दवा को 1,000 से 3,000 लोगों पर टेस्ट किया जाता है. टेस्ट में हिस्सा लेने वाले लोग अलग अलग उम्र, आदतों और मेडिकल हिस्ट्री वाले होते हैं. प्रतिभागियों को नियमित चेकअप करके दवा दी जाती है. दवा के बाद फिर हर दिन टेस्ट किए जाते हैं. और फिर दवा दी जाती है.

फेज-3 के आगे

फेज-3 के इम्तिहान में अगर दवा या वैक्सीन पास हो गई तो फिर चौथा फेज आता है, जिसमें दवा को हजारों लोगों पर टेस्ट किया जाता है और उसके बुरे असरों का मूल्यांकन किया जाता है. इस दौरान उन साइड इफेक्ट्स पर ध्यान दिया जाता है जो पहले तीन चरणों में स्पष्ट नहीं थे. दवा या वैक्सीनों के पैकेट के भीतर मौजूद कागज में जो साइड इफेक्ट्स लिखे जाते हैं, वे इसी चरण में सामने आते हैं.

Brasilien Sao Paulo | Coronavirus: Corona-Impfstoff wird in Brasilien getestet
ब्राजील सहित बहुत से देशों में हो रहा है टेस्टतस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Lucas

प्रीक्लिनिकल ट्रायल से लेकर फेज-4 तक बढ़िया नतीजे मिले तो ही वैक्सीन या इंजेक्शन को बाजार में उतारने की अनुमति मिलती है. दवा कंपनियों के मुताबिक 90 फीसदी वैक्सीन अनुमति न मिलने के कारण बाजार में नहीं आ पाती हैं.

विरोध के कई आयाम

विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा मेडिकल कारणों का हवाला देकर रूसी वैक्सीन का विरोध कर रहे हैं. लेकिन विरोध सिर्फ मेडिकल कारणों के हवाले से ही नहीं है. दुनिया भर में करीब आठ लाख लोगों की जानें ले चुकी ये महामारी बड़ा बाजार भी है. हर देश वैक्सीन बनाने में जुटा हुआ है. जिसकी वैक्सीन सबसे भरोसेमंद होगी और समय पर आएगी वो पूरी दुनिया को इसकी सप्लाई देगा.

अमेरिकी मीडिया के मुताबिक अगर रूसी वैक्सीन सफल हुई तो ये रूस के भूराजनैतिक दबदबे को मजबूत करेगी. शीत युद्ध के सोवियत संघ दुनिया के कई देशों को सस्ती दवाएं निर्यात किया करता था.

रूस में वैक्सीन विकसित करने वाले गामालेया इंस्टीट्यूट के मुताबिक उन्हें 20 देशों से एक अरब खुराकों के ऑर्डर मिल चुके हैं. इंस्टीट्यूट का यह भी कहना है कि इस वैक्सीन को ब्राजील, भारत, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब और क्यूबा में बनाने की योजना पर भी विचार चल रहा है.

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