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रूस और चीन का एंटी गठबंधन

२ सितम्बर २०१५

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन चीन के दौरे पर हैं. हाइनरिष बोएल फाउंडेशन के मॉस्को ब्यूरो प्रमुख येंस जीगर्ट का कहना है कि यह सहयोग पूरी तरह स्वैच्छिक नहीं है. उनका कहना है कि पश्चिम विरोध दोनों देशों को जोड़ता है.

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पुतिन और लीतस्वीर: picture-alliance/dpa/Tass

जीगर्ट ने जर्मनी के राष्ट्रीय रेडियो चैनल डीएलएफ के टोबियास आर्मब्रुस्टर को बताया कि दोनों देशों के कोई साझा मूल्य नहीं हैं. वे मॉस्को और बीजिंग के बीच नकारात्मक पार्टनरशिप की बात करते हैं जिसका मकसद पश्चिमी देशों से दूरी बनाना है.

आर्मब्रुस्टर: अब जब पुतिन बीजिंग की ओर साफ संदेश भेज रहे हैं तो क्या इसे यूरोप के साथ संबंधों का तोड़ समझा जाना चाहिए?

जीगर्ट : यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि कई साल से चल रही राजनीति की पुष्टि है. रूस और चीन के बीच गैस पाइपलाइन की वार्ता दस साल से चल रही थी और रुकी हुई थी, लेकिन क्रीमिया पर कब्जे के बाद पिछले साल आनन फानन में इसे पूरा किया गया, भले ही उसमें अब रुकावट हो. इस साल 9 मई को मॉस्को में दूसरे विश्व युद्ध में जीत के समारोह में चीन के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि थे. चीन कुछ समय से रूसी मीडिया में नियमित स्थान पा रहा है और उसे पश्चिम के साथ संबंधों के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

Russland Frühstück Putin und Medwedew
पुतिन और मेद्वेद्वेवतस्वीर: picture-alliance/dpa/Ria Novosti/E. Shtukina

क्या इस सहयोग को चीन में भी इसी तरह देखा जाता है?

मुझे ऐसा नहीं लगता. मेरी समझ में चीन रूसी सहयोग रूस के नजरिए से स्वैच्छिक नहीं बल्कि जबरन है. कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है. यदि पश्चिम के साथ संबंध जैसा कि इस समय है, खराब हों और आपको कुछ और करना पड़े तो चीन के अलावा बहुत कुछ नहीं है. लेकिन चीन के लिए सबसे महत्वपूर्ण संबंध पहले की ही तरह अमेरिका के साथ है. सबसे अहम आर्थिक संबंध अमेरिका, दूसरे एशियाई देशों और यूरोप के साथ हैं.रूस उसमें कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाता.

अब यदि रूस, जैसा कि आप कह रहे हैं, पिछले सालों में चीन के करीब जा रहा है, तो इसे रूस की जनता किस तरह देख रही है? क्या वे स्वीकार कर सकते हैं कि उनका देश भविष्य में यूरोपीय नहीं एशियाई तरीके से चलेगा?

मैं यहां दो पहलुओं में अंतर करूंगा. एक पहलू पश्चिम के साथ मौजूदा टकराव है जो अत्यंत खराब संबंधों के साथ जुड़ा है. यहां क्रेमलिन का प्रोपेगैंडा काम कर रहा है. पुतिन को क्रीमिया के अधिग्रहण पर व्यापक समर्थन मिला है और बहुत से लोग देख रहे हैं कि चीन यहां एक विकल्प है और इसलिए इसका समर्थन कर रहे हैं. दूसरा पहलू यह है कि कहीं न कहीं असहजता है. भले ही लोग कहें कि हम यूरोप नहीं हैं, लेकिन वे सांस्कृतिक तौर पर यूरोपीय हैं और एशियाई या चीनी पराया है. साथ ही यह डर भी है कि चीनी साइबेरिया को छीन सकते हैं. साइबेरिया में इस समय साठ सत्तर लाख लोग रहते हैं जबकि चीनी हिस्से में 20 करोड़ लोग हैं. इसकी एक भूमिका है.

Gaspipeline von Russland nach China
रूस चीन पाइपलाइनतस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Valery

इस नजदीकी की क्या सीमा होगी?क्या ऐसे मुद्दे हैं जिनपर दोनों देशों के बीच कोई सहमति नहीं हो सकती?

इस समय ऐसे मुद्दे कम ही हैं. अगर आप कहें तो यह एक बड़ा विरोधी गठबंधन है. यह दो देशों का गठबंधन है जो पश्चिमी देशों से दूरी बनाना चाहता है और लोकतांत्रिक बर्ताव तथा मानवाधिकारों का पालन करने की पश्चिमी मांगों से भी. फिलहाल इस बारे में बहुत से साझा हित हैं. रूस की पश्चिम से सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि वह कहता रहा है तुम हमें पाठ पढ़ाते रहते हो, तुम बराबरी का सहयोग नहीं चाहते. चीनी इस समय इस मामले में थोड़े चालाक हैं. वे ऐसा कुछ नहीं कर रहे कि लगे कि वे रूस को पाठ पढ़ा रहे हैं. लेकिन इस सहयोग को भी बराबरी का सहयोग नहीं कहा जा सकता.

तो क्या चीन की निरंकुश सरकारी व्यवस्था पुतिन के लिए आदर्श है? क्या वे अपने देश को वहीं ले जाना चाहते हैं?

इसका फायदा यह है कि वहां से पश्चिम की तरह यह नहीं सुनना पड़ता कि विपक्ष का दमन नहीं करो. इंटरनेट को आजाद करो, लोगों को जेल में मत डालो, स्वतंत्र चुनाव कराओ. वहां एक जैसे हित हैं. दोनों ही देशों में ऐसी व्यवस्थाएं हैं जो निरंकुश तरीके से देश के भविष्य का फैसला कर रही हैं. अब रूस में भी प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम किया जा रहा है और एक नकारात्मक सहयोग बनाया जा रहा है.

अब अगर यह नकारात्मक सहयोग करीबी बनता जा रहा है तो पश्चिम को, यूरोप को क्या करना चाहिए?

मैं समझता हूं कि शांत रहना चाहिए और समझना चाहिए कि चीन और रूस के बीच आर्थिक संबंध सामान्य हैं और उस तरह नहीं चल रहे हैं जैसा रूस चाहता था. दूसरी ओर मैं नहीं समझता कि दूरगामी रूप से चीन की आकर्षण शक्ति रूस के लिए शक्तिशाली है. असमानताएं बड़ी हैं और मध्य एशिया में तनाव भी है जिसे चीन अपना पिछवाड़ा समझता है और रूस अपना प्रभाव क्षेत्र. वहां उसी तरह का तनाव पैदा हो सकता है जैसा पश्चिम के साथ यूक्रेन में हुआ है.


इंंटरव्यू: टोबियास आर्मब्रुस्टर/एमजे