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रेगिस्तान में हरियाली दूर नहीं

२७ अगस्त २०१३

रेगिस्तान में घूमने वाले कबीलों के पास पानी और खजूर के अलावा खुद को पालने के लिए कम ही चीजें थीं. बंजर इलाकों में कुछ जगहों पर तो टमाटर और स्ट्रॉबेरी भी पैदा हो रही है.

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तस्वीर: Joby Elliott / CC BY 2.0

1930 के दशक में नेगेव रेगिस्तान के बीच इस्राएली वाटर इंजीनियर सिमचा ब्लास ने एक अहम खोज की. उन्होंने देखा कि उनकी जमीन पर एक पौधा आस पास के बाकी पौधों की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. इसकी वजह यह थी कि पानी की एक बारीक नली उस पौधे के पास बन गई थी और उससे बूंद बूंद कर रिस रहा पानी उस पौधे को ज्यादा पोषण दे रहा था. ब्लास को अपना प्रयोग शुरू करने की वजह मिल गई. प्रयोग पूरा हुआ तो उनके पास उनके पास सिंचाई का एक नया तंत्र था जिसे ड्रिप इरिगेशन सिस्टम कहते हैं.

उनके तरीके के पीछे बहुत सरल सोच थी. पानी देने वाली नलियों को भरने और फिर पूरा खाली करने या फिर छिड़काव करने में पूरी जमीन अनियंत्रित रूप से गीली हो जाती है. इसकी बजाय ड्रिप इरिगेशन सिस्टम में बूंद बूंद कर पानी आता है और वो भी वहां, जहां इसकी जरूरत है.

छेद वाला पाइप

1950 के दशक के अंत तक सिमचा ब्लास ने अपने विचार को एक पूरी तरह से काम करने वाले तंत्र में बदल दिया था. 1959 में उन्होंने अपना पहला मॉडल पेश किया जिसमें कई छेदों वाली एक नली थी. छह साल बाद नेटाफिम नाम की एक कंपनी बनाई गई और उसने पूरी दुनिया में इस प्रणाली को पहुंचा दिया. आज 100 से ज्यादा देशों में इसका इस्तेमाल होता है. इस्राएल के नेगेव में बेड गुरियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गिडियॉन ओरॉन कहते हैं, "इसकी खोज महज संयोग से हुई लेकिन आज यह सिद्धांत अफ्रीका से लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इटली, और ग्रीस समेत दुनिया भर में इस्तेमाल हो रहा है."

ओरॉन ने रेगिस्तान के बीच फल, सब्जी और अनाज उगाने के तरीकों के बारे में अध्ययन को अपना करियर समर्पित किया है. वो बताते हैं, "ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के लिए आपको स्प्रिंकलर सिस्टम की तुलना में महज आधे पानी की जरूरत होती है." शुरुआत में इस तरीके के साथ एक दिक्कत थी, नली के आखिर में बहुत कम पानी पहुंचता था लेकिन अब खास तरह की झिल्लियां यह सुनिश्चित करती हैं कि पूरी नली में पानी की मात्रा संतुलित रहे. अब यह नली 500 मीटर तक भी लंबी हो सकती है.

समुद्री पानी का इस्तेमाल

बड़ी बात यह है कि पानी को कहीं से आना होगा. मरूस्थल के बीच हरी भरी जगह या रेगिस्तान में खेती लायक निकाली गई जमीन में कई बार पर्याप्त पानी होता है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन क्रॉप्स फॉर फ्यूचर(सीएफएफ) के निदेशक और कृषि अर्थशास्त्री मिषाएल हरमन कहते हैं कि यह इतना सरल नहीं. उनका संगठन ऐसे चीजों की खेती को बढ़ावा देता है जिनकी लंबे समय से अनदेखी हो रही है ताकी दुनिया में कृषि विविधता बनी रहे. उनका कहना है, "सहारा रेगिस्तान में बड़ी मात्रा में जीवाश्म जल मौजूद है लेकिन इसका इस्तेमाल इतना ज्यादा होता रहा है और अभी भी हो रहा है कि यह खत्म हो जाएगा." रेगिस्तान में पानी हासिल करने के दूसरे तरीके भी हैं. कुछ देश शहरों से गंदा पानी जमा कर उसे साफ करते हैं और फिर उसका इस्तेमाल रेगिस्तान में फसलों की सिंचाई के लिए करते हैं. इथियोपिया में स्थानीय समुदायों ने ऊंची ऊंची जगहों पर छतें बनाई हैं और उन्हें गहरे कुएं से जोड़ रखा है. इसकी मदद से वर्षा का पानी जमीन की गहराई में जाता है और भूजल का स्तर बढ़ता है. उधर ऑस्ट्रेलिया में एक जर्मन कंपनी ने "सनड्रॉप फार्म्स" बनाए हैं जो समुद्री पानी का इस्तेमाल कर खीरा, टमाटर और काली मिर्च जैसी फसलें दुनिया के सूखे इलाकों में उगा रहे हैं.

रेगिस्तान का फल

गिडियॉन ओरॉन का कहना है कि खारा पानी भी रेगिस्तान में खेती के लिए इस्तेमाल हो सकता है. इसके लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के नए मॉडल की जरूरत होगी जिसमें नलियों को जमीन और पौधों की जड़ों में बहुत गहरे नीचे ले जाना होगा. प्रयोग के लिए ओरॉन की टीम ने जमीन के नीचे 30 से 60 सेंटीमीटर की गहराई तक नलियां पहुंचाई. ताजे पानी में 30 सेंटीमीटर गहरे पाइप से जहां सिंचाई की गई वहां एक साल में प्रति वर्ग मीटर 70 किलोग्राम तक नाशपाती उगी. समुद्री पानी में इस गहराई पर प्रति वर्ग मीटर 63 किलोग्राम नाशपाती ही पैदा हुई.

इन प्रयोगों से पता चला कि किसान खारे पानी से भी सिंचाई कर सकते हैं और ताजा पानी बचा सकते हैं. हालांकि ओरॉन का कहना है कि यह ध्यान देना जरूरी है कि मिट्टी बहुत ज्यादा लवण वाली न हो, नहीं तो पौधों को नुकसान हो सकता है. अगर खारे पानी को सीधे बूंध बूंद कर जमीन के भीतर पहुंचाया जाए तो पौधों से कुछ दूरी पर एक नमक की परत बन जाती है जो उसे नुकसान से बचाती है.

मिषाएल हरमन कहते हैं, "फल, सब्जियां और अनाज उगाने के लिए रेगिस्तान शानदार जगह हो सकती है. यह पानी के बगैर नहीं होगा और अगर तापमान लगातार 35 डिग्री सेल्सियस के ऊपर रहा तो इलाके में न उगने वाले पौधों को गर्मी से नुकसान हो सकता है. वो प्राकृतिक रूप से खुद को अनुकूलित नहीं कर पाते." हालांकि तेज गर्मी का फायदा यह है कि फोटोसिंथेसिस तेजी से होता है. सूखा मौसम फफूंद और कीटों को पनपने से रोकता है. काली मिर्च और टमाटर के लिए यह आदर्श स्थिति है.

चावल, गेहूं और दूसरे अनाज यहां आसानी से रखे जा सकते हैं, ऐसे में स्थानीय समुदाय दूर से आने वाली दूसरी चीजों के बारे में सोच सकते हैं. वे फ्रिज में रखी फल सब्जियों की तुलना में स्थानीय टमाटर, खीरा और दूसरी पत्तेदार सब्जियां खरीदना पसंद करते हैं.

ऐसे में स्थानीय किसान टमाटर और इस तरह के दूसरी चीजों को उगाने के बारे में सोचते हैं, जिनमें ज्यादा कमाई है. इस राह पर चलते रहे तो एक दिन रेगिस्तान फल और सब्जियों से हरे भरे हो जाएंगे.

रिपोर्टः फ्रांसिस्का बाडेनशायर/एनआर

संपादनः आभा मोंढे

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