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रेत की कमी से कराहता पर्यावरण

८ दिसम्बर २०१७

दुनिया भर महासागरों रेत की भूख सता रही है. लेकिन इंसान इतनी रेत खोद रहा है कि पूरा इकोसिस्टम चरमराने लगा है. तटीय इलाकों में इसका असर साफ दिखने लगा है.

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Neuseeland Strand Ripiro in Kaipara, West Coast
तस्वीर: picture-alliance/All Canada Photos/R. Hicker

पुद्दुचेरी का समुद्र तट हो या मोरक्को का तटीय शहर तंजीर. दोनों जगहों पर कभी सुनहरी रेत से भरा खूबूसरत बीच हुआ करता था. समुद्र की लहरें हर वक्त उस रेत के साथ खेला करती थीं. लेकिन अब ये तस्वीरें सिर्फ अतीत का हिस्सा हैं. पुद्दुचेरी और तंजीर में अब सुनहरी रेत से सजे बड़े बीच नहीं हैं बल्कि पत्थरों से टकराता समुद्र है.

तंजीर का बीच रेत की अधांधुंध चोरी से बीच उजड़ गया. लेकिन रेत चुरायी किसने और क्यों? जर्मन एनवॉयरन्मेंट एजेंसी (यूबीए) के हेरमान केसलर देते हैं, "हमारे पास बहुत ज्यादा रेत है लेकिन उसकी बहुत ज्यादा मांग भी है." टूथपेस्ट से लेकर स्टोन वॉश जींस तैयार करने में रेत का इस्तेमाल होता है. मिट्टी के बर्तनों, किचेन के सिंक, टॉयलेट सीट, वॉशबेसन और कांच समेत कई चीजें रेत की मदद से ही बनाई जाती हैं. रेत में मौजूद सिलिकन कंप्यूटर और स्मार्टफोन की चिप में भी मौजूद होता है. दुनिया भर में जो सिलिकन वैली खड़ी है, उसके लिए ज्यादातर सिलिका, रेत से ही निकलता है.

लेकिन रेत की सबसे ज्यादा मांग निर्माण उद्योग में है. इमारतें और पुल बनाने के लिए रेत अहम कच्चा माल है. ईंट, असफाल्ट और कंक्रीट में भी रेत लगती हैं. एक आम घर के निर्माण में ही करीब 200 टन रेत इस्तेमाल होती है. एक किलोमीटर लंबा हाईवे बनाने के लिए 30,000 टन रेत की जरूरत पड़ती है. एक परमाणु बिजली घर बनाने में करीब 1.2 करोड़ टन रेत इस्तेमाल होती है.

Pohnpei Mikronesien Pacifik Strand
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/M. Runkel

संयुक्त राष्ट्र एनवॉयरन्मेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल रेत की खपत करीब 40 अरब टन हो चुकी है. रिसर्चन किरन परेरा कहती हैं, "रेत एक जीवाश्म संसाधन है. रेत बनने में लाखों साल लगते हैं, लेकिन खनन के जरिये कुछ दशकों में इसे खत्म किया जा सकता है." परेरा के मुताबिक रेत को लेकर जागरूकता की सख्त जरूरत है.

और ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक या दो देश ही इस समस्या से जूझ रहे हैं. सिंगापुर रेत का सबसे बड़ा खरीदार है. कई छोटे द्वीपों वाले इस देश ने बीते 40 साल में समुद्र में रेत भर जमीन का विस्तार किया. खरबों टन रेत झोंकने के बाद भी सिंगापुर सिर्फ 130 वर्गकिलोमीट जमीन ही हासिल कर सका. सिंगापुर के लिए ज्यादातर रेत इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम और कंबोडिया से आई. लेकिन अब चारों देशों ने अपने बीचों से रेत का निर्यात बैन कर दिया है. प्रतिबंध के चलते एक मीट्रिक टन रेत का दाम 2.55 यूरो से बढ़कर 161 यूरो हो चुका है.

ज्यादातर देशों में रेत बजरी के खनन का काम भ्रष्टाचार और अपराधों से जुड़ा है. केसलर कहते हैं, "जो लोग इसके खनन में हैं वे धमकियों और हत्याओं से भी नहीं घबराते." जमैका से नाइजीरिया तक रेत के खनन में अपराधी छाये हुए हैं. भारत में रेत माफिया अपनी क्रूरता के लिए बदनाम हैं. कहीं तटों से रेत चुराई जा रही है तो कहीं नदियां रेत से महरूम कर दी गई हैं. एक ही रात में दुनिया भर में अरबों टन रेत चोरी की जाती है. ज्यादातर रेत आस पास हो रहे निर्माण में ही खप जाती है.

Dromedar, Einhoeckriges Kamel
रेगिस्तान की रेत काम की नहींतस्वीर: picture-alliance /W. G.Allgoewer

यह चोरी दोधारी तलवार साबित हो रही है. तट पर मौजूद रेत समुद्र की लहरों को सीधे जमीन से टकराने से पहले ही सोख लेती है. लेकिन इसके अभाव में समुद्र का पानी जमीन काटता जा रहा है. नदियों से रेत चुराने के चलते तटों तक नयी बालू भी समुद्र तक नहीं पहुंच रही है और दोहरी मार पड़ रही है. रेत पानी को साफ करने के काम भी करती है. नदी की रेत में कई बैक्टीरिया होते हैं जो समुद्र में घुलने के बाद एक नए इकोसिस्टम में सक्रिय हो जाते हैं. लेकिन रेत अगर समुद्र तक पहुंचेगी ही नहीं, तो यह प्रक्रिया भी रुक जाएगी.

रेत के अंधाधुंध खनन पर लगाम लगानी होगी. इसके अलावा और कोई चारा नहीं है. रेगिस्तान की रेत बहुत बारीक होती है और उसमें मिट्टी भी बहुत होती है, लिहाजा वह बहुत अच्छी नहीं मानी जाती. ऐसे में ले देकर समुद्र और नदी की रेत ही बचती है जो लगातार घटती जा रही है. रेत खंगालता इंसान अभी इस काबिल नहीं हुआ है कि वह लैब या फैक्ट्री में कुदरत जैसी रेत बना सके. केसलेर कहते हैं, "हमें रेत चाहिए, इसका कोई और विकल्प नहीं है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम पर्यावरण का ख्याल न रखें."

(सबसे ज्यादा द्वीपों वाले देश)

हेराल्ड फ्रांत्सन/ओएसजे