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लंदन मेट्रो के 150 साल

९ जनवरी २०१३

मकड़ी के जाल जैसी लाइनें और दसियों साल सफर के बाद भी मैप की जरूरत. लंदन मेट्रो भले ही पेचीदा हो पर इसने रोजाना सफर में ऐसी क्रांति लाई कि आज भी नए मेट्रो की तैयारी के लिए लंदन अंडरग्राउंड पर नजर डाली जाती है.

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तस्वीर: picture-alliance/Jane Legate/Robert Harding

ट्यूब, अंडरग्राउंड या मेट्रो रेल. चाहे जिस नाम से पुकारो, इसके बिना लंदन की पहचान अधूरी है. दर्जन भर से ज्यादा रूट और 270 स्टेशनों के बीच चलने वाली लंदन की ट्रेनों का पहला सफर 150 साल पहले नौ जनवरी, 1853 को शुरू हुआ. इसके अगले दिन यानी 10 जनवरी को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया. पहली बार पैडिंगटन से फैरिंगडॉन स्ट्रीट स्टेशनों के बीच ट्रेन चली, जो मेट्रोपोलिटन लाइन पर थी. डेढ़ सौ साल बाद ब्रिटेन के अखबारों ने उन दिन की तस्वीरें छापी हैं, जब उत्साही लोग इस सवारी का लुत्फ उठाने पहली बार घरों से निकले थे.

लंदन मेट्रो लाल डिब्बों वाली अपनी पुरानी ट्रेनों के लिए मशहूर है. कई पटरियों पर अब भी 100 साल पुराने डिब्बे दौड़ रहे हैं. पिछले साल लंदन 2012 ओलंपिक के दौरान इस पुरानी लेकिन कामयाब रेल तंत्र की जम कर तारीफ हुई.

Großbritannien Olympische Sommerspiele 2012 in London Verkehr U-Bahn
तस्वीर: dapd

कैसे हुई शुरुआत

लंदन की शक्ल बढ़ने के साथ लोगों को रोजाना काम पर जाने में ज्यादा यातायात झेलनी पड़ रही थी. कुछ दशकों की लॉबिंग के बाद 19वीं सदी के दूसरे हिस्से में इस पर तेज काम शुरू हुआ. रेलवे अस्तित्व में आ चुका था और यह भारत तक फैल चुका था. लंदन प्रशासन की पहल पर लंदन मेट्रो लाइन का प्रस्ताव रखा गया और कहा गया कि किंग्स क्रॉस स्टेशन से होते हुए पैडिंगटन स्टेशन से फैरिंगडॉन स्ट्रीट के बीच मेट्रो लाइन की ट्रेन चलेगी.

करामाती इंजीनियर सर जॉन फॉलर को 1853 में इस काम में लगाया गया. चीफ इंजीनियर फॉलर की देख रेख में मेट्रोपोलिटन रेलवे ने ढांचे और तंत्र पर काम शुरू किया, जो 10 साल के अंदर काम करने लगा. उस वक्त फॉलर को डेढ़ लाख पाउंड से ज्यादा की कमाई होती थी. अनुमान लगाया जाता है कि इतना महंगा दूसरा कोई इंजीनियर नहीं हुआ. रेलवे लाइनों के अलावा रेल पुल और दूसरी बुनियादी चीजों के डिजाइन भी फॉलर ने तैयार किए. लंदन के मशहूर विक्टोरिया स्टेशन का डिजाइन भी उन्होंने ही तैयार किया.

ब्रिटेन के बाद फॉलर ने अल्जीरिया, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, पुर्तगाल और अमेरिका को भी मेट्रो और ट्रेन से संबंधी सलाह दिए. भारत सरकार ने भी फॉलर से छोटी गेज की रेलवे लाइन पर सलाह मांगी. 1870 की इस सलाह के बाद ही भारत में छोटी गेज पर हल्की ट्रेनें चलीं.

British railroad
तस्वीर: picture-alliance/Ton Koene

अलग अलग लाइनें

लंदन के अलग अलग हिस्सों को अंडरग्राउंड ट्रेन से जोड़ने के लिए 11 अलग अलग लाइनें तैयार की गईं. शुरू में इन लाइनों को एक दूसरे से मिलाने में काफी दुश्वारी थी लेकिन कई स्टेशनों पर उनके जंक्शन बना दिए गए ताकि मुसाफिर अलग अलग लाइनों में सवार होने के बाद भी कहीं भी जा सकें. इन्हें बेकरलू, सेंट्रल, विक्टोरिया, मेट्रोपोलिटन और जुबली लाइन जैसे नाम दिए गए. इनकी पहचान अलग अलग रंगों से होती है.

सभी लाइनों को एक साथ मैप पर देखने से थोड़ी उलझन होती है क्योंकि वे कई जगह एक दूसरे से मिलते नजर आते हैं. पर मुसाफिरों के लिहाज से यह बहुत अच्छा है. दुनिया के पहले मेट्रो ट्रेन की देखा देखी अलग अलग शहरों ने भी धीरे धीरे इस तरह की यातायात व्यवस्था शुरू की.

दुनिया भर में मिसाल

लंदन का अंडरग्राउंड सिस्टम दुनिया की पहली मेट्रो व्यवस्था थी, लिहाजा दूसरे बड़े शहरों के मेट्रो रेल के लिए यह आदर्श बना. इसकी कामयाबी से भी लोग इसकी तरफ ज्यादा आकर्षित हुए. लंदन मेट्रो चलाने का 86 फीसदी खर्च आज भी यात्रियों के टिकट से निकाल लिया जाता है. लंदन अंडरग्राउंड के अलग अलग रूटों को अलग अलग रंग देकर मैप में तब्दील करने का काम 1933 में किया गया. अब दुनिया भर के मेट्रो रेल इसी की नकल करते हुए अपने मैप तैयार करते हैं.

लाल और नीले रंग का लोगो भी लंदन और ब्रिटेन तो क्या, पूरी दुनिया में पहचाना जाता है. कई दूसरे शहरों के ट्रेनों ने भी इससे मिलते जुलते लोगो ही तैयार किए. ब्रिटेन और भारत में रेलवे लगभग एक ही समय में शुरू हुआ लेकिन भारत के पहले मेट्रो (कोलकाता) की शुरुआत लंदन अंडरग्राउंड से 120 साल बाद 1984 में हुई. दिल्ली का मेट्रो तो 2002 में ही शुरू हो पाया.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा