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भूटान में लोकतंत्र का दूसरा इम्तिहान

१३ जुलाई २०१३

भूटान में पांच साल पहले आए लोकतंत्र का दूसरा इम्तिहान है. चुनाव का दूसरा और आखिरी दौर है और संभावनाओं के साथ आशंकाएं भी हैं. जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि वहां लोकतंत्र अभी आया नहीं, आ रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

लंबी दूरी तय कर, बारिश और भूस्खलन के बीच जोखिम उठा कर भी भूटान के बहुत से नागरिक मई में पहले दौर के चुनावों के लिए वोट डालने पहुंचे. पांच साल पहले लोकतंत्र की राह पकड़ने वाले हिमालयी देश में नए राजनीतिक तंत्र के लिए इसे भारी उत्साह माना गया. हालांकि वोटों की गिनती के बाद पता चला कि 2008 की तुलना में लोगों की लोकतंत्र में हिस्सेदारी घटी है. जो देश अपनी कामयाबी लोगों की खुशी में ढूंढने के लिए ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस, जीएनपी की गणना करता है वहां राजनेताओं को झगड़ालू और बेईमान तक कहा गया और शांतिपूर्ण बौद्ध देश में अविश्वास फैलाने और परंपराओं को तोड़ने के लिए उनकी आलोचना की गई.

भूटान में सदियों से चली आ रही राजशाही से देश को लोकतंत्र की तरफ ले जाने की शुरूआत तत्कालीन राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने शुरू की. अब उनके 33 साल के बेटे और वर्तमान राजा जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक इसे आगे बढ़ा रहे हैं. देश में मुक्त मीडिया संवैधानिक संस्थाओं को विकसित करने का काम उन्हीं की देखरेख में हो रहा है. बदलाव के दौर में राजा अभी भी देश के संवैधानिक प्रमुख हैं लेकिन उन्हें 65 साल की उम्र में रिटायर होना है और उन्हें संसद की दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास कर भी हटाया जा सकता है.

बदलावों के बावजूद देश में शाही परिवार काफी लोकप्रिय है. लंबे समय तक अलग थलग रहे देश ने 1971 में संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता ली और खुद को खोलना शुरू किया. इस सदी की शुरूआत में देश ने टीवी और इंटरनेट को भी अपने घर में जगह दे दी. करीब साल लाख की आबादी और 38,394 वर्ग किलोमीटर भूभाग वाला देश भारत और चीन के बीच घिरा है.

शनिवार को 47 सदस्यों वाली नेशनल एसेंबली या संसद के निचले सदन के लिए चुनाव होना है जिसके लिए 20 जिलों में फैले 865 मतदान केंद्रों पर वोट डाले जाएंगे. रविवार सुबह तक चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे. चुनाव में मुकाबला राजभक्त भूटान पीस एंड प्रॉस्पेरिटी पार्टी या डीपीटी और विपक्षी पीपुल्स डमोक्रैटिक पार्टी के बीच है. विपक्षी पार्टी भी राजशाही की समर्थक है. 31 मई को जब पहले दौर के चुनाव में दो नई पार्टियों को करारी हार मिली जबकि तीसरी पार्टी को चुनाव लड़ने की अनुमति ही नहीं मिली.

Bhutan Wahlen
भूटान में चुनाव, प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले (बाएं) थिंपू में भाषण देते हुएतस्वीर: AFP/Getty Images

इन चुनावों में भ्रष्टाचार से जुड़े विवाद, रोजगार की कमी और मुद्रा की तरलता की मुश्किल से पैदा हुई आर्थिक दिक्कतें मुद्दा हैं. 2008 के चुनावों में डीपीटी ने जबरदस्त जीत हासिल कर 45 सीटों पर कब्जा किया और इस बार भी उसी के सत्ता में लौटने की उम्मीद की जा रही है. ग्रामीण वोटरों में यह पार्टी काफी लोकप्रिय और बहुसंख्यक जनता गांवों में ही रहती है. लोग नए प्रशासन में बेहतर हुई सड़कों, बुनियादी ढांचे और मोबाइल फोन नेटवर्क जैसी सुविधाओं से प्रभावित हैं.

हालांकि कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि लोगों का भ्रम टूट रहा है मई के चुनावों में केवल 55 फीसदी मतदाता ही वोट देने आए जबकि 2008 में यह तादाद 80 फीसदी थी. भूटान में लोकतंत्र पर किताब लिखने वाले राजनीतिक विश्लेषक ग्याम्बो सिदे का कहना है, "पिछले पांच सालों में राजनीतिक भ्रष्टाचार और चुनाव में एक दूसरे पर कीचड़ उछालने जैसे गतिविधियों के कारण लोग हतोत्साहित हुए हैं." सिदे के मुताबिक लोगों को लग रहा है कि राजनेता किसी भी कीमत पर जीतना चाहते हैं और उन्हें देश के हित और पारंपरिक मूल्यों की कोई परवाह नहीं. सिदे तो यहां तक कहते हैं, "लोकतंत्र भूटान पर डाल दिया गया लेकिन बहुत से लोग चाहते हैं कि देश वापस राजशाही में चला जाए. वो लोग लोकतंत्र को अभी अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं."

हालांकि आशंकाएं 2008 में थीं जब लोगों ने लोकतांत्रिक देशों का उदाहरण देकर वहां भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता की बात कही. राजधानी थिंफू में 25 साल के कारोबारी भीषम राय कहते हैं, "चुनावी ड्रामे के साथ वो सब कुछ सच हो रहा है. पार्टियां बड़े बड़े वादे कर रही हैं और लोगों को संदेहजनक स्थिति में छोड़ दे रही हैं."

चुनाव आयोग के अधिकारी भी मान रहे हैं कि इस बार भी चुनाव में 50 फीसदी के करीब ही लोग वोट देंगे हालांकि तीन नई पार्टियों के इन चुनावों में शामिल होने को वह लोकतंत्र में लोगों की रुचि बढ़ने का संकेत मान रहे हैं. चुनाव आयोग के प्रवक्ता शेराब जांगपो का कहना है, "लोग यह महसूस कर रहे हैं कि संसद जैसी संस्थाएं उनके लिए कितनी अहम हैं. वो अपनी चिंताओं के बारे में बात कर रहे हैं जो शासन के मानकों में बदलाव ला रही हैं."

बहुत से लोगों के लिए वोट देना अधिकार से ज्यादा कर्तव्य मानते हैं. दो दिन का सफर तय कर वोट देने के लिए अपने गृहनगर पहुंचे 29 साल के खेम क्षेत्री कहते हैं, "लोकतंत्र हमारे राजा का दिया एक तोहफा है. एक अच्छे नागरिक होने के कारण हमें वोट देना है." दिल्ली की संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज से जुड़े विश्लेषक कुंखेन दोरजी कहते हैं कि भूटान में लोकतंत्र अभी बनने की राह पर है. दोरजी के मुताबिक फिलहाल, "यह नियंत्रित लोकतंत्र है जिसमें असली ताकत संसद की बजाए राजमहल के पास है." हालांकि इस बारे में क्षेत्री कहते हैं, "भारत में लोकतंत्र 60 साल पुराना है लेकिन तब भी युवा ही कहा जाता है. हमारा तो अभी नया लोकतंत्र है, इसे विकसित और परिपक्व होने में वक्त लगेगा."

एनआर/एएम (डीपीए)

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