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विकास और पर्यावरण सुरक्षा के पाट में फंसा भारत

शोभा शमी
२५ अक्टूबर २०१७

भारत के 30 करोड़ लोगों को बिजली नहीं मिल रही है. वहीं उस पर कोयले से बनने वाली बिजली से होने वाले कार्बन उर्त्सजन को कम करने का भी भीषण दबाव बना हुआ है. समाधान अक्षय ऊर्जा में है, लेकिन इस मसले में भारत कहां खड़ा है?

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Solarenergie in Chinas Fujian Provinz
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/Chinatopix

शाम का हल्का धुंधलका है. रात होने में अभी कई घंटों का वक्त है, लेकिन बिहार के एक छोटे से गांव चमथा में बच्चे अभी से सोने लगे हैं. गांव में बिजली नहीं है. जो बच्चे स्कूल जाते हैं उनके लिए रात को, न पढ़ सकने का कोई विकल्प है न किसी दूसरे किसी और खास काम का. महिलाओं में भी खाना बनाने और बाकी काम पूरा कर लेने की जल्दबाजी है, ताकि अंधेरा होने के बाद रोज का कोई जरूरी काम रह न जाये. ये स्थिति सिर्फ एक परिवार की या सिर्फ एक गांव की ही नहीं है, भारत में 30 करोड़ लोग अब भी ऐसे हैं, जिन तक बिजली की पहुंच नहीं है. बिहार के चमथा गांव की तरह भारत के हजारों ऐसे गांव हैं, जो बिजली की उम्मीद में सालों से सरकारों की ओर ताक रहे हैं.

घर को रोशन करने के लिए बिजली की जरूरत के अलावा चाहे कार, बस, रेल या हवाई जहाज हो या बड़े उद्योगों का चलना, हर काम के लिए ऊर्जा की आवश्यकता है. अभी भारत की ऊर्जा उत्पादन की क्षमता मुख्यत: कोयले, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसों और तेल पर टिकी है. लेकिन ऊर्जा के इन स्रोतों से बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है, वहीं दूसरी ओर जिस रफ्तार से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है, वे जल्द ही खत्म हो जायेंगे. इन्हें दोबारा बनने में लाखों साल का समय लगेगा.

China | Illegale Stahlfabriken unterlaufen Chinas Emissionsgesetze
तस्वीर: Getty Images/K. Frayer

इसीलिए पूरी दुनिया नये विकल्पों की तलाश कर रही है. अक्षय ऊर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में मददगार हो सकता है. यानि ऊर्जा के ऐसे स्रोत और तरीके, जो वंचित लोगों और जगहों तक ऊर्जा या बिजली पहुंचायें और दूसरी ओर कार्बन उर्त्सजन को भी कम करे. कार्बन उर्त्सजन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है.

अक्षय ऊर्जा में वे सारे ऊर्जा स्रोत शामिल हैं जो प्रदूषणकारी नहीं हैं. जिनका क्षय नहीं होता मसलन पवन ऊर्जा या सौर ऊर्जा. ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते. इसके अलावा ज्वारीय ऊर्जा, बायोमास आदि भी अक्षय ऊर्जा के कुछ उदाहरण हैं. हालांकि जैव ईंधन की स्वच्छता को लेकर सवाल बने हुए हैं.

अक्षय ऊर्जा मुद्दा क्यों?

अक्षय ऊर्जा की ओर रुख करने के लिये भारत के पास पर्याप्त कारण हैं. इस वक्त 304.76 गीगावाट की क्षमता के साथ भारत ऊर्जा का दुनिया में पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक है. लेकिन कार्बन उर्त्सजन के मामले में भारत दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है. आर्थिक विकास, बढ़ती समृद्धि, शहरीकरण की बढ़ती दर और प्रति व्यक्ति ऊर्जा की बढ़ती खपत ने देश में ऊर्जा की मांग को बढ़ा दिया है. भारत तेल का विश्व में चौथा और पेट्रोलियम पदार्थों का 15वां सबसे बड़ा आयातक है.

अच्छी बात यह है कि भारत में बहुत बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा के स्रोत हैं, जिसका इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है. अगर भारत अक्षय ऊर्जा के अधिक उत्पादन में सफल होता है तो इस बात की भी संभावना है कि भारत की तेल और पेट्रोलियम के आयात पर निर्भरता में कमी आएगी और बहुत सारा आर्थिक संसाधन बचेगा, जिसकी उसे गरीबी और भूखमरी जैसी समस्याओं से निबटने के लिए जरूरत है.

भारत की चुनौतियां 

भारत काफी समय तक पिछड़ा होने के नाम पर पर्यावरण संरक्षण के सख्त कदम उठाने से बचता रहा. लेकिन कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक कमी उसके योगदान के बिना संभव नहीं. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का विकास कर ही वह कार्बन उत्सर्जन में कमी वाले विकास मॉडल को आगे बढ़ा सकता है. इस समय भारत 44.812 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है, जिसमें 27.441 गीगावॉट पवन ऊर्जा और 8.062 गीगावॉट सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी है.

इस समय भारत की एक बड़ी समस्या बिजली के वितरण की प्रक्रिया में होने वाली बर्बादी है. ग्रीनपीस में काम कर रहे अविनाश कहते हैं, "बिजली की सारी आपूर्ति नेशनल ग्रिड से की जा रही है. उसे घरों तक पहुंचाने की पूरी प्रकिया में काफी बिजली का नुकसान भी होता है. फिलहाल हमारे पास बिजली का एक केंद्र है. इसका विकेंद्रीकरण होना जरूरी है." वे बताते हैं कि सोलर पैनल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होना शुरू हुआ है और कई गांवों में लोग अब बिजली के लिए ग्रिड पर निर्भर नहीं है. "सरकार का रवैया भी काफी सकारात्मक है लेकिन हमारे सामने तमाम जमीनी चुनौतियां हैं. ज्यादा से ज्यादा ऐसे प्रोजेक्ट्स का शुरू होना और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना इतना भी आसान नहीं है."

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में धीरे-धीरे औद्योगिक आधार बन रहा है. आगामी वर्षों के दौरान इसमें तेजी लाने की जरूरत है. रिन्युएबल एनर्जी के क्षेत्र में कई सालों से काम कर रहे स्वतंत्र उद्यमी अर्जुन वेंकटरमन की शिकायत है कि छोटे छोटे उपकरण और सेटअप आसानी से बाजार में नहीं मिलते. "कोक, पेप्सी और पेट्रोल नुक्कड़ के किनारे कोई भी बेच देता है लेकिन रिन्युएबल एनर्जी के लिए चीजें मिलती ही नहीं."


मुश्किलें लेकिन विकास भी

इसके अलावा रिन्युएबल एनर्जी के लिए बड़े प्लांट लगाने के लिए जमीन खरीदने और आसान शर्तों पर कर्ज पाने की भी मुश्किलें हैं. सोलर पॉवर प्लांट की तरफ निवेशकों का रुझान बढ़ा है, वहीं रूफटॉप सोलर पैनल से बिजली उत्पादन जैसी योजना अपेक्षित तेजी नहीं पकड़ पाई है. हाल में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा सम्मेलन में पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 31 दिसंबर 2016 तक रूफटॉप योजना के तहत सिर्फ 1,247 मेगावॉट की क्षमता विकसित हो पाई है जो 2022 तक 40,000 मेगावॉट क्षमता विकसित करने के लक्ष्य का महज तीन फीसदी है.

इस असंतुलन के बावजूद भारत में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की कोशिशें काफी हद तक रंग लाती दिख रही हैं. ब्रिज टू इंडिया द्वारा जारी इंडियन सोलर हैंडबुक-2017 के मुताबिक अगले साल तक 8,800 मेगावॉट की अतिरिक्त क्षमता जोड़कर भारत सौर ऊर्जा उत्पादन में जापान से आगे निकलकर दुनिया में तीसरे स्थान पर आ जाएगा.

अक्षय ऊर्जा स्रोतों से लगी उम्मीदों के सिलसिले में ग्रीनपीस से जुड़े अविनाश चंचल कहते हैं कि हाल ही में सोलर पैनल से पूरे गांव में बिजली आई है. वो बताते हैं कि चमथा गांव में भी पिछले साल तक जो बच्चे शाम को सो जाते थे, अब बिजली आने से उनमें बहुत सी खुशी और उम्मीद दिखती है.