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पहली इलेक्ट्रॉनिक स्कूल बुक

२ सितम्बर २०१३

एक टीचर और एक मीडिया विशेषज्ञ अपने बच्चों की स्कूली किताबों से संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने एक खास इंटरनेट प्रोजेक्ट शुरू किया. इसमें से निकली एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक स्कूल बुक, जिस पर सब काम कर सकते हैं.

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तस्वीर: Fotolia/contrastwerkstatt

शूलबूख ओ माट नाम के इस प्रोजेक्ट का दिल तो बर्लिन में धड़कता है लेकिन इसका दिमाग जर्मनी भर में फैला हुआ है. यह जर्मनी की पहली ऐसी इलेक्ट्रॉनिक स्कूल बुक है जो सबके लिए खुली है. हर राज्य इस किताब में जानकारी भरेगा. बर्लिन में 53 वर्षीय हंस वेडेनिष कहते हैं, "सब इस पर काम कर सकते हैं." वेडेनिष मीडिया कंसेप्ट तैयार करते हैं. जीवविज्ञान के शिक्षक हाइको प्सेहोद्निक के साथ मिलकर उन्होंने ने ये आयडिया विकसित किया है.

प्सेहोद्निक कहते हैं, "हमें इस बात से नाराजगी थी कि महंगी स्कूली किताबें आधी तो ऐसी ही रह जाती हैं. उन्हें पूरा नहीं पढ़ा जाता." उसके अलावा एक शिक्षक के तौर पर भी वह इन किताबों से नाराज हैं. "अगर स्कूल के आसपास कोई तालाब नहीं है तो मैं किताब में दिए किसी तालाब का प्रयोग नहीं कर सकता." इसलिए उन्हें और उनके साथी शिक्षकों को खुद रिसर्च करनी पड़ती है. जर्मनी में आलेन्सबाख शोध संस्थान के सर्वे के मुताबिक जर्मनी में 75 फीसदी से ज्यादा शिक्षक अपने प्रयोगों के लिए इंटरनेट पर निर्भर होते हैं. अब इस नए प्लेटफॉर्म से शिक्षक आपसी काम साझा कर सकेंगे. और स्कूल के बच्चे भी.

खुला संपादन

पहले प्रोजेक्ट के तौर पर शूलबुख ओ माट बर्लिन के हाईस्कूलों के लिए सातवीं और आठवीं कक्षा की बायोलॉजी की सामग्री साझा कर रहा है. इसके बाद ही शिक्षकों के लिए बाकी विषयों की सामग्री सभी राज्यों के लिए ऑनलाइन की जाएगी. इसके पीछे की तकनीक ऑनलाइन एनसाइक्लोपीडिया विकिपीडिया जैसी है. इसका सभी इस्तेमाल कर सकते हैं और इसे एडिट कर सकते हैं.

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जीवविज्ञान के पाठतस्वीर: Schulbuch-O-Mat

वेडेनिंग बताते हैं, "हम इसके शिक्षकों को कॉपीराइट की समस्या से भी बचाते हैं. लेखक अपने लेख फ्री में सबके लिए यहां डालता है. इसलिए कॉपीराइट की कोई समस्या नहीं होती." ई बुक पर साथ ही साथ काम भी होता है ताकि यह हमेशा ताजी बनी रहे. अगर कहीं गलती होती है तो कोई भी बेहतरी की सलाह दे सकता है.

हाइको प्सेहोद्निक फाइनल एडिटिंग करते हैं. ऑनलाइन जाने से पहले वे हर आर्टिकल को देखते हैं, उसमें दिए गए तथ्यों को जांचते हैं. इस खुले सिस्टम से फोटोग्राफर केर्स्टिन मुलर भी प्रभावित हैं. वह मीडिया इन्फॉर्मेटिक्स भी पढ़ाई कर रही हैं. इस प्रोजेक्ट के बारे में उन्हें इंटरनेट में ही पता चला. थोड़े समय से वह इस ई स्कूल बुक के लिए लिख रही हैं और कोशिका नाम के पाठ के लिए इंटरएक्टिव लर्न क्विज तैयार कर रही हैं. "मुझे यह बात अपील करती है कि आप विकिपीडिया की तरह पूरे प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं."

अंतरराष्ट्रीय मॉडल

इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे क्राउडफंडिंग के जरिए इकट्ठा किए जा रहे हैं. स्टार्टनेक्सट.डीई नाम के वेब प्लेटफॉर्म पर कई लोगों ने इसके लिए चंदा दिया. हाइको प्सेहोद्निक बताते हैं, "दूसरे देशों में लोग काफी आगे चले गए हैं." इस तरह का एक प्लेटफॉर्म सीके12 अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में है. यहां शिक्षकों को पढा़ने के लिए सिर्फ मैटेरियल ही नहीं मिलता बल्कि वे यहां अपनी किताबें भी दूसरों के लिए रख सकते हैं.

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शूलबूख ओ माट के हाइको प्सेहोद्निक (बाएं) और हंस वेडेनिषतस्वीर: Tim Wiese

अमेरिका के आदर्श पर ही शूलबूख ओ माट बनेगा. अलग अलग विषयों का विज्ञान एक दूसरे से जोड़ा जा सकेगा. जैसे अगर बायोलॉजी की किताब में प्रकाश संश्लेषण पर कोई पाठ होगा तो उसे केमिस्ट्री की इलेक्ट्रॉनिक किताब से जोड़ दिया जाएगा. यहां छात्र पेड़ में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाओं से रुबरू हो सकेंगे. अभी हालांकि यह भविष्य की बात है. ऐसा प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए बहुत सारे सक्रिय कार्यकर्ता चाहिए. हंस वेडेनिष कहते हैं, "कई लोग बहुत उत्साहित हैं लेकिन हमें और लेखकों की जरूरत है."

रिपोर्टः टिम वीजे/आभा मोंढे

संपादनः महेश झा

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