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विरोधियों को कैसे परास्त करती हैं मैर्केल

फोल्कर वागेनर
३० अगस्त २०१७

बात चुनाव प्रचार की हो या आम दिनों की, अंगेला मैर्केल अपने विरोधियों की उड़ायी हवा से बचना ही नहीं बल्कि उन पर काबू पाना भी जानती हैं. चांसलर मैर्केल ने विरोधियों को कभी अपने सामने टिकने नहीं दिया, लेकिन कैसे? 

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Deutschland PK Merkel
तस्वीर: Reuters/F. Bensch

12 साल के शासन में अंगेला मैर्केल ने ना सिर्फ जर्मनी में बल्कि पार्टी के भीतर और देश के बाहर भी अपने विरोधियों को परास्त किया है. उनकी राजनीति को समझने में विरोधियों से ही नहीं विश्लेषकों से भी चूक हो जाती है. मुश्किल परिस्थितियों को हल करने का मैर्केल का अपना तरीका है जो उन्हें अब तक कामयाब बनाता आया है.

परमाणु बिजली घर बंद

चांसलर अंगेला मैर्केल ने 2009 में कहा, "जब मैं पूरी दुनिया में इतने सारे परमाणु बिजली घर बनते देखती हूं तो मुझे लगता है कि इस क्षेत्र से बाहर निकलना शर्मनाक होगा." लेकिन 2011 में मैर्केल ने ठीक यही किया. फुकुशिमा हादसे के बाद उन्होंने जर्मनी के परमाणु बिजली घरों को बंद करने का अंतिम फैसला ले लिया. कई दशकों से ये ग्रीन पार्टी के लिए मुद्दा था. अपने रुख में बदलाव कर मैर्केल ने कहा, "परमाणु ऊर्जा के जोखिम को सुरक्षित तरीके से नियंत्रित नहीं किया जा सकता."

ZDF-Sommerinterview mit Merkel
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Roehr/ZDF

अनिवार्य सैनिक सेवा स्थगित

2011 में ही जर्मन नागरिकों के लिए अनिवार्य सैनिक सेवा भी बंद कर दी गयी. यह उनकी अपनी रुढ़िवादी पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन के लिए कई दशकों से संताप बना हुआ था. कई युवा जर्मन पेशेवर जर्मन सेना को पसंद करते हैं. जर्मन लोगों की मिली जुली राय को देखते हुए मैर्केल ने अनिवार्य सैनिक सेवा को पूरी तरह से खत्म करने की बजाय केवल निलंबित किया.

परिवार की राजनीति

सीडीयू के कई रुढ़िवादी नेताओं को हैरान करते हुए मैर्केल अपनी पार्टी को मध्य की ओर लेकर गयीं, खासतौर से परिवार के लिए नीतियों के मामले में. क्रिश्चियन डेमोक्रैट का पारंपरिक रुख रहा है, "पिता मांस को घर लाते हैं और मां उसे खाने की मेज पर सजाती हैं" लेकिन मैर्केल ने इससे बाहर निकल कर तीन साल से छोटे बच्चों के लिए प्रीस्कूल अनिवार्य कर दिया. कारोबार जगत और समाज इससे खुश हुआ. वामपंथी दल इस मुद्दे पर नियम बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन रुढ़िवादियों के समर्थन ने इसे संभव किया.  

समान सेक्स वालों की शादी

Deutschland Bundeskanzlerin Angela Merkel, Wahlkampfauftritt in Quedlinburg
तस्वीर: Reuters/R. Krause

मैर्केल की राजनीतिक लोच का शायद इससे बड़ा इम्तिहान नहीं हो सकता था. इसी साल जर्मनी के सरकारी टीवी चैनल जेडडीएफ ने एक सर्वे के बाद बताया कि 73 फीसदी जर्मन और सीडीयू के 64 फीसदी वोटर समलैंगिक शादियों को कानूनी रूप से वैध बनाने के पक्ष में हैं. मैर्केल हमेशा इसके खिलाफ रहीं लेकिन सीडीयू की सहयोगी एसपीडी और ग्रीन्स समेत दूसरी पार्टियों ने इसके पक्ष में नारा बुलंद किया. सहयोगी दलों ने तो गठबंधन के लिए इसकी शर्त रख दी. तब मैर्केल ने अपना रुख बदला और सांसदों को पार्टी लाइन की बजाय अपने जमीर के आधार पर वोट डालने को कहा. 

समलैंगिक शादी का कानून 30 जून को पास हुआ. मैर्केल ने इसके खिलाफ वोट दिया लेकिन अब इस चुनाव के लिये ये मुद्दा खत्म हो गया और साथ ही गठबंधन पर बातचीत के लिये भी. इसके साथ ही मैर्केल ने अपनी रुढ़िवादी पार्टी के सदस्यों को भी समझा दिया कि उन्होंने अपनी वास्तविक स्थिति से समझौता नहीं किया है.

विदेशियों का घर जर्मनी

Deutschland Thüringen - Merkel als Malerei Ausstellung "Bildnisse der Kanzlerin"
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Welz

जर्मनी के लिए विदेशियों का मुद्दा कई सालों से दबा हुआ था. मैर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन पार्टी इस विचार के साथ सहज नहीं थी. पार्टी में यह आमराय थी कि विदेशी लोगों को जर्मनी में केवल अस्थायी कामगार के रूप में ही आना चाहिये. इस मामले पर राजनीतिक दलों और वास्तविकता में काफी फर्क था क्योंकि औद्योगिक, आर्थिक और जनसंख्या के आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी को कम जन्मदर के चलते ज्यादा लोगों को अपने देश में बुलाने की जरूरत है. करीब चौथाई सदी से जर्मनी में रह रहे प्रवासी इस बात का सबूत हैं कि जर्मनी वास्तव में प्रवासियों का देश है, भले ही अनाधिकारिक सही. दुनिया में अमेरिका के बाद जर्मनी प्रवासियों का सबसे पसंदीदा देश है. मैर्केल ने बदलते वक्त की नब्ज को महसूस किया और तुरंत स्थितियां बदल दी. मैर्केल के रुख में इस बदलाव ने वामपंथी दलों के हाथ से एक और मुद्दा छीन लिया.

"इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है"

यह बयान जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की सहमति से 2010 में सीडीयू के क्रिश्चियन वुल्फ ने दिया था जो उस वक्त जर्मनी के राष्ट्रपति थे. वह जर्मनी के सबसे बड़े ओहदे पर बैठे शख्स थे जिन्होंने जर्मन समाज में इस्लाम की मौजूदगी को माना था. इस बयान को सीडीयू में चुनौती दी गयी. वुल्फ के बयान का समर्थन कर मैर्केल ने रुढ़िवादियों के प्रिय एक और मुद्दे को वामपंथियों की पसंद में ढाल दिया. 

शरणार्थियों का स्वागत

Bundeskanzlerin Angela Merkel
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Ostrop

मैर्केल के राजनीतिक कदमों में शायद सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोलना. इसके बाद 2015 के आखिरी महीनों में बड़ी संख्या में शरणार्थी जर्मनी आऩे लगे. करीब 10 लाख लोग जर्मनी आये और इनमें से ज्यादातर बिना किसी नियम कायदे के. यह सिर्फ चांसलर की उदारता का नतीजा था. जर्मन लोग पहले तो हतप्रभ हुए, विपक्षी वामपंथी दल खुशी से उछल पड़े जबकि सीडीयू के कई नेताओं की आंखें खुली की खुली रह गयीं. मैर्केल एक बार फिर पलट गयी थीं. सरकारी अधिकारी अभिभूत थे और शरणार्थियों के स्वागत को आतुर लोगों का उत्साह फीका पड़ने लगा था.

मैर्केल शरणार्थियों की संख्या पर संवैधानिक रूप से रोक लगाने का अब भी विरोध करती हैं. हालांकि इसके बाद उन्होंने शरण मांग रहे अफगान लोगों को वापस भेजने का फैसला किया. इसके साथ ही उन्होंने तुर्की और दूसरे देशों के साथ विवादित शरणार्थी समझौतों को भी खत्म कर दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि यूरोप में शरणार्थियों की तादाद काफी बढ़ गयी.

जलवायु परिवर्तन से जंग

जलवायु में बदलाव को धीमा करने पर लंबे समय से ध्यान देकर मैर्केल ने खुद को पर्यावरण का रक्षक साबित किया है. चुनावी सर्वे बता रहे हैं कि जर्मन लोगों में ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के मुद्दे पर समर्थन बढ़ रहा है. ऐसे में मैर्केल ना सिर्फ अपने लिए जर्मनी के भीतर समर्थन जुटा रही हैं बल्कि दुनिया भर में नाम कमा रही हैं. खासतौर से डॉनल्ड ट्रंप के पेरिस समझौते से बाहर आने के बाद यह और भी तेजी से हुआ है. यह एक और मुद्दा है जो ग्रीन्स पार्टी के दिल के करीब है और वहां भी चांसलर मैर्केल ने सेंध लगा कर अपने विरोधियों को कमजोर कर दिया है.