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समाज

दूसरों की तुलना में बंगाल में तेजी से बढ़ता समुद्र का जलस्तर

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ जुलाई २०१९

भारत के चार प्रमुख बंदरगाहों में समुद्री जलस्तर वैश्विक औसत के मुकाबले ज्यादा बढ़ा है. इनमें से पश्चिम बंगाल स्थित डायमंड हार्बर पहले स्थान पर है.

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UNESCO Weltkulturerbe Sundarbans
तस्वीर: DW/M. Mamun

विभिन्न अध्ययनों से साफ है कि बीते 40-50 वर्षों के दौरान देश में समुद्री जलस्तर में 1.3 मिमी प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई है, लेकिन डायमंड हार्बर के मामले में यह वृद्धि पांच गुनी यानी 5.16 मिमी प्रति वर्ष रही है. इसके बाद क्रमश कांदला (गुजरात), हल्दिया (बंगाल) और पोर्ट ब्लेयर का स्थान है. इस मामले में वैश्विक औसत 1.8 मिमी प्रति वर्ष है. केंद्र सरकार ने इसी सप्ताह संसद में यह आंकड़ा पेश किया है.

ताजा आंकड़ा

केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पेश आंकडों से साफ है कि बंगाल में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग समेत विभिन्न वजहों से समुद्र का जलस्तर देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले तेजी से बढ़ा है. यह आंकड़ा वर्ष 1950 से 2005 के बीच यानी 55 वर्षों के हैं. इसी दौरान गुजरात के कांदला बंदरगाह में समुद्र के जलस्तर में 3.18 मिमी प्रतिवर्ष की वृद्धि रिकार्ड की गई. पश्चिम बंगाल का हल्दिया बंदरगाह इस मामले में तीसरे स्थान पर रहा. यहां वर्ष 1972 से 2005 के बीच जलस्तर 2.89 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ता रहा.

Indien Sunderbans
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/S. Paul

विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने का ग्लोबल वार्मिंग से सीधा संबंध है. इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की पांचवीं आकलन रिपोर्ट के मुताबिक बीती शताब्दी के दौरान दुनिया भर में समुद्री जलस्तर बढ़ने की औसत दर 1.8 मिमी प्रति वर्ष रही है. केंद्रीय भू-विज्ञान मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि देश के चार बंदरगाहों में जलस्तर में वृद्धि की दर वैश्विक औसत के मुकाबले ज्यादा रही है. इसमें कहा गया है कि चेन्नई व मुंबई में जलस्तर बढ़ने की दर वैश्विक और राष्ट्रीय औसत से काफी कम रही है. चेन्नई के मामले में वर्ष 1916 से 2005 के बीच यह दर 0.33 मिमी प्रति वर्ष रही जबकि मुंबई में 1878 से 2005 के बीच यह 0.74 मिमी प्रति वर्ष रही.

तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय के एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने बताया कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से तूफान, सुनामी, तटवर्ती इलाको में बाढ़, ऊंची लहरें और तटीय इलाको में भूमिकटाव जैसी समस्याएं और गंभीर हो जाती हैं. इसकी वजह से तटीय इलाके धीरे-धीरे समुद्र में समाने लगते हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि ग्लोबल नार्मिंग से एक और जहां ग्लेशियर पिघलते हैं वहीं समुद्र में जल का भी आंतरिक प्रसार होता है. इससे जलस्तर में वृद्धि का सिलसिला तेज होता रहता है.

बंगाल में दुष्प्रभाव

पश्चिम बंगाल के खासकर सुंदरबन इलाके में समुद्री जलस्तर में वृद्धि का दुष्प्रभाव साफ नजर आता है. यहां ताजा व नमकीन पानी मिल कर समुद्री जलस्तर को और बढ़ा रहे हैं. कोलकाता से लगभग डेढ़ सौ किमी दक्षिण में स्थित घोड़ामार द्वीप पहले तीन कस्बों को मिला कर बना था. लेकिन समुद्र के लगातार बढ़ते जलस्तर की वजह से खासीमारा और लोहाचारा नामक दो कस्बे पानी में समा चुके हैं. द्वीप की खेती की जमीन भी तेजी से समुद्र में समा रही है. पर्वारण विज्ञानियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण सुंदरबन इलाके के 54 द्वीपों के अस्तित्व पर खतरा लगातार बढ़ रहा है. इन द्वीपों की जमीन धीरे-धीरे पानी में समा रही है. यह द्वीप नौ वर्गकिलोमीटर के मुकाबले बीते कुछ वर्षों में घट कर आधा रह गया है.

अब सुंदरबन इलाके को दुनिया में डूबते द्वीपों की धरती के नाम से जाना जाता है. इसरो की ओर से उपग्रह से जुटाए गए आंकड़ों से साफ है कि इस इलाके में बीते एक दशक के दौरान 9,900 हेक्टेयर जमीन पानी में समा चुकी है. बंगाल देश में दूसरा सबसे घनी आबादी वाला राज्य है. तटीय इलाके में स्थित मैनग्रोव जंगल वाले सुंदरबन में प्रति वर्गकिमी एक हजार लोग रहते हैं. यह आबादी आजीविका के लिए समुद्र और जंगल पर ही निर्भर है. लेकिन लगातार तेज होते भूमिकटाव और समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से इलाके से लोगों का पलायन तेज हो रहा है.

तीन साल पहले जलवायु परिवर्तन पर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से तैयार एक कार्य योजना में कहा गया था कि वर्ष 2021 से 2050 के दौरान तापमान में 1.8 से 2.4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो सकती है. इसके अलावा चक्रवाती तूफान का सिलसिला तेज होगा और समुद्र के जलस्तर में लगातार वृद्धि होगी. इस अध्ययन रिपोर्ट के नतीजे भयावह हैं. इनमें कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ने की वजह से वर्ष 2100 तक सुंदरबन का पूरा इलाका समुद्र में डूब जाएगा.

जलवायु परिवर्तन की वजह से सुंदरबन इलाके में लगातार बिगड़ते पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने की योजना पर काम कर रहे जाने-माने पर्यावरण विज्ञानी और जादवपुर विश्वविद्यालय में सामुद्रिक विज्ञान अध्यययन संस्थान के प्रमुख डा. सुगत हाजरा कहते हैं, "सुंदरबन के विभिन्न द्वीपों में रहने वाली 45 लाख की आबादी पर खतरा लगातार बढ़ रहा है. इलाके में कई द्वीप पानी में डूब चुके हैं और कइयों पर यह खतरा बढ़ रहा है.” वह बताते हैं कि खतरनाक द्वीपों के 14 लाख लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट करने के साथ ही बाढ़ और तटकटाव पर अंकुश लगाने के लिए मैंग्रोव जंगल का विस्तार करने को प्राथमिकता देनी होगी.

जादवपुर विश्वविद्यालय के सामुद्रिक विज्ञान विशेषज्ञ तूहिन घोष कहते हैं, "इलाके में भूमि कटाव की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए कई उपाय हैं. इनमें सबसे बेहतर उपाय मैंग्रोव पेड़ों की तादाद बढ़ाना है. इस पेड़ की जड़ें मिट्टी को बांध कर कटाव से रोकती हैं.” वह कहते हैं कि इन उपायों से भूमिकटाव की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है.

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