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विश्व व्यापार संगठन के 20 साल

१९ अप्रैल २०१४

कोई आतिशबाजी नहीं होगी और बधाई का संगीत भी धीमे ही रहेगा. विश्व व्यापार संगठन डबल्यूटीओ 20 साल का हो रहा है लेकिन जश्न का कोई माहौल नहीं है. संगठन पहचान के संकट से जूझ रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

वैश्विक व्यापार और वैश्वीकरण की शुरुआत करने वाले संगठन का नाम है विश्व व्यापार संगठन. जब उसे पहली जनवरी को 1995 में शुरू किया गया, उम्मीदें बहुत थीं. उद्देश्य था व्यापार में अड़चनें खत्म करना, संरक्षणवाद पर लगाम कसना और विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने का मौका देना.

लेकिन हुआ कुछ अलग ही. राजनीतिक गुटबाजी, कड़क संरचना, तेज कदम, इन मुद्दों से जुड़े सवालों का संगठन के पास कोई जवाब नहीं था और आखिरकार डबल्यूटीओ पुराने समय का अवशेष बन कर रह गया. डबल्यूटीओ के महानिदेशक रह चुके पास्काल लेमी कहते हैं, "डबल्यूटीओ एक मध्यकालीन संगठन है." संस्थापना के दस साल बाद भी डबल्यूटीओ अपनी ही जगह पैर पटकता रहा, वैश्वीकरण पीछे छूट गया और संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे. आखिर ट्रेन कहीं पटरी से उतर गई."

बड़ी गड़बड़ियां

भले ही 20 साल में संगठन ने काफी कुछ हासिल किया हो लेकिन जो हासिल नहीं कर सका उसकी सूची बहुत लंबी है. अधिकतर समस्याएं खुद की बनाई हैं. अंतरराष्ट्रीय व्यापार अधिकार के प्रोफेसर क्रिस्टियान टीट्ये के मुताबिक, "विश्व व्यापार संगठन के नियम नए समय के हिसाब से ढलते नहीं हैं. और इसका कारण यह है कि सदस्य संगठन की संरचना बदलने को तैयार नहीं हैं." 160 सदस्य देश जब तक सहमति पर नहीं पहुंच जाते, कोई फैसला नहीं लिया जाता और वो कभी एकमत होते ही नहीं हैं.

शायद इसलिए पिछले 20 साल में विश्व व्यापार अधिकारों में कोई विकास नहीं हुआ. लेकिन विदेशों में व्यापार अधिकार के प्रोफेसर आखिम रोगमन का मानना है कि विश्व व्यापार ना बढ़ा हो, ऐसा नहीं हुआ. इसलिए डबल्यूटीओ पैकेट में पहला बड़ा बदलाव करने का समय भी एक तरह से गुजर चुका है. फैसलों में विकासशील देशों को शामिल नहीं करने को रोगमन अन्याय मानते हैं. उनके मुताबिक, "विश्व व्यापार संगठन में अब अधिकतर सदस्य विकासशील देशों के हैं. लेकिन उनके पास अभी जानकारी की कमी है और स्रोत भी नहीं हैं कि वह सौदों के दौरान अपने फायदे के बारे में सोच सकें."

ऐसा लगता है कि बड़े देश ही सिर्फ मानक बना रहे हैं. ब्रोट फ्युर डी वेल्ट नाम के सहायता संगठन के स्वेन हिल्बिग कहते हैं, "पुराने व्यावसायिक अगुआ यूरोपीय संघ और अमेरिका मुक्त व्यापार को तभी हां कहते हैं जब उनका फायदा हो. वह अपने अनाज बाजारों को संरक्षणवाद के जरिए सस्ते अनाज बाजारों से बचाते हैं. विकासशील और गरीब देशों से वह ऐसे सेक्टर में उदारवाद अपनाने को कहते हैं जहां वो खुद काफी मजबूत हैं."

WTO Konferenz auf Bali 2013
बाली की कॉन्फरेंसतस्वीर: picture-alliance/landov

कुछ सफलताएं

हालांकि सिर्फ खराब ही हो ऐसा भी नहीं है, अभी तक विश्व व्यापार संगठन इकलौती संस्था है जहां वैश्विक व्यापार के नियम तय किए जाते हैं. उन्हीं के कारण चीन, रूस या सऊदी अरब जैसे देश एक नाव में सवार हुए हैं. क्रिस्टियान टीट्ये कहते हैं कि विश्व व्यापार संगठन का सफलतम बिंदू है मध्यस्थता करना और यह कि अगर विकासशील देश चाहें, तो वे प्रभावशाली बड़े देशों को भी कटघरे में खड़ा कर सकते हैं. यूरोपीय संघ को कई बार संगठन के नियमों के हिसाब से खुद को ढालना पड़ा है.

वित्त और अर्थसंकट के दौर ने साबित किया कि वह संरक्षणवाद को काबू में रख सकता है. यह संगठन के सबसे अहम कामों में शामिल है. आखिम रोगमन के मुताबिक, "आलोचना के कारण यह हुआ कि अमेरिका ने अपने बाजार को अलग कर लिया."

कहां जा रहा है संगठन

इंडोनेशिया के बाली में हुई बैठक के बाद से उम्मीद मजबूत हुई है. पिछले साल के आखिर में सदस्य देश एक पैकेट पर सहमत हुए. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के समय से यह अब तक किया गया सबसे बड़ा समझौता है. इसे संगठन के लिए जीवनदान माना जा रहा है.

हालांकि सिमोन एवेनेट को भविष्य अच्छा नहीं दिखाई दे रहा, "बाली की सफलता एक आगे बढ़ा हुआ कदम तो था लेकिन जल्द ही साफ दिखाई दिया कि डब्ल्यूटीओ इस दिशा में आगे नहीं जाना चाहता. और अमेरिका वे समझौते करने को तैयार नहीं है जो डबल्यूटीओ को मजबूत बनाते हैं. "

संगठन में विश्वास फिर से मजबूत करने के लिए और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अहम भूमिका निभाने के लिए आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है, नई दिशा और नई संरचना की जरूरत है. फैसला लेने की प्रक्रिया भी ऐसी है कि तेजी से किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता. मूर्खता यह है कि संरचना और संयुक्त राष्ट्र के विशेष संगठन के आंतरिक संविधान में बदलाव सहमति से ही हो सकता है. और यह बहुत ही अव्यवहारिक लगता है. एवेनेट कहते हैं, "सहमति का कोई विकल्प नहीं है, कोई भी ताकतवर देश नहीं चाहेगा कि उसे हरा दिया जाए. "

रिपोर्टः रायना ब्रॉयर/एएम

संपादनः ईशा भाटिया