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वीडियो: विस्फोटक बल्लेबाज से भरोसेमंद फिनिशर तक

ओंकार सिंह जनौटी
५ जनवरी २०१७

भारतीय टीम पाकिस्तान में कभी वनडे सीरीज नहीं जीती थी. तभी 2005 में एमएस धोनी नाम का एक युवा टीम के साथ गया. ये बुलंदी की शुरुआत थी.

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World Cup Cricket 2015 Indien MS Dhoni
तस्वीर: Getty Images/D. Kalisz

छठे नंबर पर बल्लेबाजी करना कितना मुश्किल होता है, दुनिया भर में क्रिकेट खेलने वाले जानते हैं. एक छोर से विकेट गिरने का खतरा बना रहता है. मन में लगातार यह उलझन चलती है कि टुक टुक कर पूरे ओवर खेलूं या इससे पहले कि टीम ऑल आउट हो जाए, ताबड़तोड़ हमला कर दूं. ज्यादातर बल्लेबाज इस दबाव में बिखर जाते हैं. लेकिन बीते 10 साल तक धोनी हर बार ऐसी ही परिस्थितियों में बल्लेबाजी करने उतरे. कभी उनके साथ जडेजा होते थे, तो कभी ईशांत शर्मा.

नौ साल तक बतौर कप्तान टीम इंडिया की बागडोर संभालने वाले महेंद्र सिंह धोनी की एक सर्वश्रेष्ठ पारी का जिक्र करना अन्याय होगा. ऐसे दर्जनों मौके हैं, जब धोनी अपने दम पर टीम को पराजय से जीत की ओर ले गए. नीचे बल्लेबाजी करते हुए 283 वनडे मैचों के बाद भी 51 का औसत बरकरार रखना, ये काम शायद धोनी ही कर सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में धोनी के आगमन से पहले ऑस्ट्रेलिया के माइकल बेवन को सर्वश्रेष्ठ फिनिशर कहा जाता था. लेकिन धोनी ने माइकल बेवन से भी जबरदस्त पारियां खेलीं.

अक्सर दबाव में बिखरने वाली भारतीय टीम को कई मौकों पर वह अकेले संभाल ले गए. 2011 वर्ल्ड कप के फाइनल में युवराज सिंह के बजाए धोनी खुद ऊपर बल्लेबाजी करने आए. वो जानते थे कि श्रीलंकाई गेंदबाज मुरलीधरन युवराज और बाकी के बल्लेबाजों को नचा देंगे. तब अगर एक विकेट और गिरता तो सचिन और सहवाग से सजी टीम का वर्ल्ड कप जीतने का ख्वाब अधूरा रह जाता. धोनी खुद ऊपर आए और गौतम गंभीर के साथ एक जबरस्त साझेदारी कर टीम इंडिया को 1983 के बाद दूसरी बार वनडे का वर्ल्ड चैंपियन बना गए.

बतौर कप्तान धोनी विपक्षी टीम को धीरे धीरे कसना जानते थे. 200, 230 या 240 रन बनाने के बाद भी वो स्कोर को बचाने में माहिर थे. यह धोनी ही थे जिनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने दूसरे देशों में जाकर वनडे सीरीज जीतने की आदत डाल ली.

लेकिन अब एमएस जान चुके हैं कि विराट टीम इंडिया को आगे ले जाने के लायक हो गए हैं. लिहाजा एक बुजुर्ग सेनापति की तरह वह टीम की कमान विराट के हाथ में सौंप चुके हैं.