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वुलर झील के लिए कटेंगे 20 लाख पेड़

२९ सितम्बर २०१७

एक शानदार क्रिकेट के बल्ले का जिक्र हो तो नाम आता है विलो की लकड़ी का. कश्मीर की वुलर झील के आसपास एक समय बड़ी संख्या में इसी विलो के पेड़ लगाये गये थे. मुनाफे के लिए उठाया गया यह कदम बहुत महंगा पड़ा.

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Indien Weidenbaum
तस्वीर: Reuters/A. Parvaiz

वुलर झील एशिया में ताजे पानी की सबसे बड़ी झीलों में से एक है. श्रीनगर के उत्तर पश्चिम में स्थित वुलर झील की लंबाई लगभग 34 किलोमीटर है, जो अपने गहरे और साफ पानी के लिए जानी जाती है. लेकिन हाल के दशकों में यह झील लगातार सिकुड़ती चली गयी.

वेटलैंड इंटरनेशनल के 2007 में हुये एक अध्ययन के मुताबिक यह झील असल में 218 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैली थी, लेकिन पिछले 100 सालों में यह झील 45 प्रतिशत सिकुड़ चुकी है. जो झील 1911 में 158 वर्ग किलोमीटर में फैली थी, वह 2007 में मात्र 87 वर्ग किलोमीटर की बची. रिपोर्ट के मुताबिक इसका बड़ा हिस्सा खेती के लिए सुखा दिया गया और बाकी विलो के पेड़ों ने इस झील को बहुत नुकसान पहुंचाया.

अब जम्मू और कश्मीर की सरकार लगभग 21 लाख विलो के पेड़ काटने की तैयारी कर रही है. इस योजना के तहत लगभग 2 करोड़ घन मीटर के हिस्से से गाद और काई भी हटायी जाएगी. माना जा रहा है कि इस योजना से झील का आकार और पानी बेहतर होगा, जिससे पर्यटन में भी बढ़ावा होगा.

वुलर झील में विलो के पेड़ों का लगाया जाना 1924 में शुरू हुआ था. उस वक्त इसका मुख्य मकसद जलाऊ लड़की का इंतजाम करना था. लेकिन बाद में 1980 और 1990 के दशक में विलो के पेड़ मुख्यत: किक्रेट के बल्लों और फलों के पेटी बनाने के लिए लगाये जाने लगे. लेकिन हाल के सालों में विशेषज्ञों ने पाया है कि झील में विलो के पेड़ों के कारण कई तरह की समस्यायें हो रही हैं. झील में बड़ी मात्रा में गाद जमा हो गयी है. पानी और मछलियों की संख्या लगातार कम हो रही है और झील का आकार लगातार सिकुड़ता जा रहा है.  

वुलर संरक्षण की इस योजना में काम कर रहे इरफान रसूल वानी कहते हैं कि विलो के पेड़ों का यह इलाका लगभग 27 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. विलो के पेड़ जहां भी उगते हैं वहां भारी मात्रा में गाद इकट्ठा होती है. इससे झील की पानी इकट्ठा करने की क्षमता पांच गुना कम हो गयी है. उन्होंने कहा कि 2 करोड़ घन मीटर की गाद को हटा देने के बाद झील की गहराई 3.5 मीटर यानी लगभग 11.5 फीट तक बढ़ जायेगी.

हालांकि, विशेषज्ञों के सामने कुछ नुकसान और चुनौतियां भी हैं. इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 4.24 अरब रुपये खर्च होंगे इसके अलावा पेड़ों के गिरने पानी में शैवाल बनेगी जिसे हटाना भी आने वाले वक्त के लिए एक काम होगा. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इन कुछ चुनौतियों की तुलना में आगे होने वाला फायदा काफी बड़ा है.

कश्मीर विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रमुख शकीन रोमशू का कहना है कि इस कुल मिलाकर इस पूरी प्रक्रिया का असर सकारात्मक ही होगा. क्रिकेट के बैट बनाने वालों पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि उसके लिए कश्मीर के दूसरों हिस्सों से विलो की लकड़ी पहुंचायी जा सकती है. उन्होंने कहा, वुलुर झील से विलो के पेड़ों को वैज्ञानिक सिफारिशों के आधार पर हटाया जाना चाहिए, जब पानी का स्तर सबसे कम हो. कुछ इस तरह कि मिट्टी की खाद और अन्य जरूरी तत्वों को नुकसान न हो.

स्थानीय लोगों का रुख

वुलर झील को एक बार फिर जिंदा करने की इस योजना को लेकर स्थानीय लोग काफी खुश हैं. यहां आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों में लगभग 32 हजार लोग अपनी आय के लिए वुलर झील पर निर्भर हैं.

65 वर्षीय मोहम्मद सुभान दार एक मछुआरे हैं. वह पूर्वी किनारे पर सादेरकोट पिरान गांव में रहते हैं. उन्होंने अपनी आंखों से झील को सिकुड़ते हुए देखा, "अब यह सिर्फ बसंत में ही झील की तरह दिखती है, जब बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है. साल के बाकी समय, इसका ज्यादातर हिस्सा सूखा ही रहता है. पानी इतना कम होता है कि हमें अपनी नाव को एकदम ढोना पड़ता है." 

वह कहते हैं कि इसका आकार उससे बिल्कुल अलग हो चुका है. सुभान को उम्मीद है कि आखिरी सांस लेने से पहले शायद वो अपनी प्यारी झील को उसके पुराने सौंदर्य में देख पाएंगे.

शोभा शमी (रॉयटर्स)