1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

वो दिन जब हिटलर सत्ता में आया

२९ जनवरी २०१३

30 जनवरी 1933, इस तारीख ने जर्मनी को बर्बरता व दूसरे विश्वयुद्ध की राह पर धकेल दिया. 80 साल पहले इसी दिन अडोल्फ हिटलर को जर्मनी का चासंलर बनाया गया. तब बहुत किसी को अंदाजा नहीं था कि हिटलर आतंक बन जाएगा.

https://p.dw.com/p/17Tm6
तस्वीर: Ullstein

नाजी प्रचार ने इसे सत्ता पर कब्जे के रूप में दिखाया. उस दिन बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर मायूसी का माहौल था. नाजी प्रोपेगैंडा प्रमुख गोएबेल्स के लोगों ने नाजी पार्टी के संगठन एसए के सदस्यों को जमा करना शुरू किया. शाम तक इस दस्ते के 20,000 सदस्य वहां जुट गए. शाम को उन्होंने मशाल जुलूस निकाला. कुछ ही घंटे पहले हिटलर अपने लक्ष्य पर पहुंच गया था. राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग ने उसे चांसलर नियुक्त कर दिया था.

बड़ा स्वांग

समर्थकों ने नवनियुक्त राइषचांसलर का जोरदार स्वागत किया. चांसलर कार्यालय की एक खिड़की से हिटलर ने लोगों का अभिवादन स्वीकार किया. गोएबेल्स ने एक बड़े समारोह की योजना बनाई थी, नाटकीय तरीके से वह जर्मनी में नई शुरुआत दिखाना चाहता था. उसे "महान चमत्कार की रात" होना था. उसकी योजना थी कि शहर में मशाल लिए लोगों की एक माला सी बन जाए. लेकिन आम लोगों ने उसकी योजना को बर्बाद कर दिया.

Machtergreifung NSDAP Adolf Hitler Reichskanzler Fackelzug
ब्रांडेनबुर्ग गेट पर मार्चतस्वीर: Ullstein

वह भव्य तस्वीर तैयार करना चाहता था, जो सिनेमा देखने वालों को प्रभावित कर सके. उन दिनों वहां समाचार दिखाए जाते थे. लेकिन पैदल चलने वाले बिना सोचे समझे एसए की कतारों में घुसते रहे और तस्वीर नहीं बनने दी. गोएबेल्स बहुत निराश हुआ, लेकिन उसने यह तस्वीर बाद में बनवाई. प्रसिद्ध यहूदी चित्रकार माक्स लीबरमन ने मशाल जुलूस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सब देखकर उनका 'उल्टी' करने का जी चाहता है.

कैसे सत्ता में आया हिटलर

हिटलर के उत्थान की व्याख्या वाइमार गणतंत्र के साथ साथ होते पतन के जरिए ही की जा सकती है. 1918 में गणतंत्र की स्थापना के बाद से ही वह पैदाईशी गड़बड़ी से जूझ रहा था. वह लोकतांत्रिक लोगों से वंचित लोकतंत्र था. आबादी का बड़ा हिस्सा नए गणतंत्र को अस्वीकार कर रहा था. खासकर उद्यमियों, नौकरशाही और राजनीतिज्ञों का एक हिस्सा. शुरुआत से ही सत्ता पर कब्जे की वामपंथी और दक्षिणपंथी कोशिशें युवा गणतंत्र को परेशान कर रही थीं. पहले पांच सालों में खूब हत्याएं देश को हैरानी में डालती रहीं. उनमें कम्युनिस्ट रोजा लक्जेमबर्ग और यहूदी विदेश मंत्री वाल्टर राथेनाऊ भी थे. हत्यारे उग्रदक्षिणपंथी पृष्ठभूमि के थे.

वाइमार गणतंत्र की राजनीति अस्थिरता का पर्याय थी. 14 साल में 12 सरकारें बनीं. संसद में मौजूद 17 पार्टियों में बहुत सी संविधान विरोधी थीं. हर राजनीतिक और आर्थिक संकट के साथ लोकतांत्रिक पार्टियों में लोगों का भरोसा भी खत्म होता जा रहा था. उधर उग्रपंथी पार्टियों का समर्थन बढ़ता जा रहा था. दक्षिणपंथी नाजी पार्टी और वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव बढ़ रहा था. 1930 में जर्मनी गृहयुद्ध के कगार पर था. नाजियों और कम्युनिस्टों के बीच खुला संघर्ष शुरू हो गया था. 1929 की विश्वव्यापी मंदी ने हालत और खराब कर दी. 1932 में औपचारिक रूप से 56 लाख लोग बेरोजगार थे.

Paul von Hindenburg
पॉल फॉन हिंडेनबुर्गतस्वीर: picture-alliance/empics

ताकतवर नेता का इंतजार

बहुत से जर्मन इस हालत में देश को संकट से निकालने के लिए एक ताकतवर नेता की चाह करने लगे. राष्ट्रपति पॉल फॉन हिंडेनबुर्ग ऐसे ताकतवर शख्स थे, बहुत से लोगों के लिए वे सम्राट जैसे थे. सचमुच भी वाइमार संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली था. वह संसद भंग कर सकता था और अधिनियम के जरिए कानून लागू कर सकता था. इन अधिकारों का हिंडेनबुर्ग ने अक्सर इस्तेमाल भी किया लेकिन वे जर्मनी के रक्षक की भूमिका निभाने की हालत में नहीं थे. 1933 के शुरू में उनकी उम्र 85 साल की थी.

कई अस्थिर सरकारों के बाद वे राष्ट्रवादी अनुदारवादी ताकतों की स्थिर सरकार बनाना चाहते थे. शुरू में वे हिटलर को चांसलर बनाने के पक्ष में नहीं थे. बहुत समय तक वे हिटलर को बोहेमिया का कॉरपोरल कहते थे. हिंडेनबुर्ग का इशारा इस बात की ओर रहता था कि वे स्वयं पहले विश्व युद्ध में लड़ने वाले जनरल फील्ड मार्शल थे, जबकि हिटलर एक साधारण सैनिक था.

लेकिन 1933 आते आते हिंडेनबुर्ग ने अपनी राय बदल ली. उनके विश्वासपात्रों ने उन्हें बताया कि वे हिटलर को नियंत्रण में रखेंगे. पीपुल्स पार्टी के अल्फ्रेड हुगेनबर्ग ने कहा था, "हम हिटलर को घेर कर रखेंगे." नाजी पार्टी को कैबिनेट में सिर्फ दो सीटें दी गईं. बदले में हिटलर और उसके समर्थकों ने शुरू में जानबूझकर नरमी दिखाई और ज्यादा हो हल्ला नहीं किया.

Drittes Reich Konzentrationslager Oranienburg
नाजी यातना शिविरतस्वीर: Ullstein

परीलोक जैसा

सचमुच 30 जनवरी को हिटलर और उसके साथियों के लिए एक सपना पूरा हो गया था. गोएबेल्स ने खुश होकर अपनी डायरी में लिखा था, "हिटलर राइषचांसलर बन गए हैं. हम परीलोक में हैं." बिना सोचे समझे गणतंत्र की कब्र खोदने वाले को देश का चांसलर बना दिया गया था. उसने अपनी जीवनी माइन कम्प्फ में अपनी योजनाएं साफ कर दी थी. उसने लिखा था कि यहूदियों को मिटा दिया जाएगा और तलवार की मदद से नया इलाका जीता जाएगा.

इतिहास में 30 जनवरी 1933 को सत्ता हथियाने के दिन में याद किया जाता है. यह शब्द भी नाजी प्रचार की उपज है. इतिहास का कितना बड़ा मजाक है कि हिटलर की नियुक्ति संविधान सम्मत तरीके से हुई थी. हिंडेनबुर्ग ने हिटलर को चांसलर पद की शपथ दिलाने के बाद कहा था, "अब श्रीमान भगवान की मदद से आगे बढ़ें." वे खुद यह नहीं देख पाए कि हिटलर का रास्ता जर्मनी को नरसंहार और विश्व युद्ध की ओर ले गया. 1934 में उनकी मृत्यु हो गई.

हिटलर ने बहुत ही जल्द दिखा दिया कि उसे घेरने, कमजोर या नियंत्रित करने का इरादा कितान बचकाना था. उसके चांसलर बनने के कुछ ही दिनों के अंदर पूरे देश में नाजियों के एसए संगठन के गुंडों का आतंक शुरू हो गया. कम्युनिस्टों, सोशल डेमोक्रैटों और ट्रेड यूनियनिस्टों पर अत्याचार शुरू हुआ. कुछ ही दिनों बाद पहले यातना शिविर बने जहां एसए के लोग अपने विरोधियों को सताते थे. उनके बाद यहूदियों और विरोधियों की बारी आई. कुछ ही महीनों के अंदर उसने वाइमार लोकतंत्र की कब्र खोदकर उसके ऊपर अपनी तानाशाही कायम कर ली.

रिपोर्ट: मार्क फॉन लुबके/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी