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वो दिन जिसने दुनिया बदल दी

अलेक्जांडर कूदाशेफ/एमजे१० अक्टूबर २०१४

1989 में सोमवार की रैलियों से साम्यवादी जीडीआर के खात्मे की शुरुआत हुई. 9 अक्टूबर की रैली पहली नहीं थी पर तब तक की सबसे बड़ी रैली थी. डॉयचे वेले के मुख्य संपादक अलेक्जांडर कुदाशेफ के मुताबिक उसने इतिहास की धार बदल दी.

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लाइपजिग में 1989 में प्रदर्शनतस्वीर: picture-alliance/dpa

9 अक्टूबर का दिन जर्मनी और यूरोप की आजादी का एक ऐतिहासिक दिन है. इस सोमवार को लाइपजिग शहर में जीडीआर की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी एसईडी के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए 70,000 लोग इकट्ठा हुए. कम्युनिस्ट शासकों के खिलाफ उनका नारा था, हम जनता हैं. नीचे के लोगों का ऊपर वालों के खिलाफ जनप्रदर्शन. ऊपर यानि पार्टी की पॉलितब्यूरो और केंद्रीय समिति के सदस्य जिन्हें पता नहीं था कि जनता क्या चाहती है... आजादी. जिंदगी में आजादी, समाज में आजादी और यात्रा करने की आजादी और उससे भी अहम देश छोड़ने की आजादी. एक ओर लोग लाइपजिग, हाले और आइजेनहुटेनश्टाट में निगरानी में रखने वाली सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे तो दूसरी ओर दसियों हजार लोग शासन व्यवस्था से निराश होकर अवैध रूप से देश छोड़ रहे थे. यह पैरों के जरिए किया जाने वाला प्रदर्शन था, जीडीआर में और जीडीआर के बाहर.

जर्मनी के 1989 के आजादी के इतिहास में 9 अक्टूबर पहला मील का पत्थर था. यह वह दिन था जब 70,000 लोगों ने खुलकर जीडीआर को नहीं कहने का साहस दिखाया. यह शांतिपूर्ण विद्रोह का पहला दिन था जिसका नतीजा चार हफ्ते बाद 9 नवम्बर को सामने आया जब बर्लिन की दीवार गिरी, चार हफ्ते में जिसने जर्मनी और यूरोप का इतिहास बदल दिया. यह वह दिन था जब जर्मन, जिनके बारे में लेनिन ने कहा था कि जब वे क्रांति के दौरान स्टेशन पर हल्ला बोलते हैं, तो टिकट खरीद कर स्टेशन पर जाते हैं, साम्यवाद और एकदलीय तानाशाही के खिलाफ मध्य और पूर्व यूरोपीय देशों में हुए विद्रोह में शामिल हो गए. जिस विद्रोह की शुरुआत 1980 के दशक में पोलैंड में स्वतंत्र ट्रेड यूनियन सोलिदारनोस्क के उदय के साथ हुई थी, वह उन चार हफ्तों में पूर्वी जर्मनी, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया और हंगरी में भी भड़क उठा. जनता जाग उठी और साम्यवादी तानाशाहियां चरमरा गईं.

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अलेक्जांडर कुदाशेफतस्वीर: DW/M. Müller

9 अक्टूबर के दो दिन पहले जीडीआर ने सैनिक परेड के साथ धूमधाम से अपनी स्थापना की 40वीं वर्षगांठ मनाई थी. लेकिन पार्टी और सरकार के नेता समय की मांग को नहीं पहचान पाए. पहले उन्हें शांतिपूर्ण चुनौती मिली और फिर उन्हें सत्ता से खदेड़ दिया गया. 9 अक्टूबर को पूर्वी जर्मन लोगों ने इतिहास लिखना शुरू किया. चार शांतिपूर्ण हफ्ते शुरू हुए हमेशा नए प्रदर्शनों और रैलियों के साथ और उसके बाद जर्मनी और यूरोप का बंटवारा मिट गया. 9 अक्टूबर 9 नवम्बर की राह पर मील का पत्थर साबित हुआ. एक दिन जिस पर लाइपजिग के लोग नाज कर सकते हैं. यह वह दिन था जिस दिन जनता के मन से तानाशाही का डर मिट गया.