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कंटेनर में कटती जिंदगी

हाइनर कीजेल/आईबी१ मई २०१५

बीवी बच्चा पीछे छोड़ एक व्यक्ति सीरिया से खतरनाक रास्ता तय कर जर्मनी आता है. जहां उसे अब एक कंटेनर में जीना है. यह जिंदगी पहले से बेहतर है या बुरी, उसे खुद ही तय करना है.

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Flüchtlinge in Berlin
तस्वीर: DW/H. Kiesel

ऐयास बियासी अपने नए घर पहुंचे हैं. उनके करीब सूटकेस और पेटियों का ढेर लगा पड़ा है. अधिकारियों ने अभी सामान का पूरा कंटेनर यहां खाली कर कंपाउंड में रख दिया है. रंगों में ढकीं तीन नई इमारतें. 480 शरणार्थियों के लिए यह उनका नया बसेरा होगा, बर्लिन के एक कोने में. सीरिया के ऐयास इन्हीं इमारतों के बीच बने बगीचे में खड़े हो कर 70 मीटर लंबे ब्लॉक की ओर देख रहे हैं. कोसोवो और फलीस्तीन से आए लोगों के बच्चे भी आस पास खेल रहे हैं.

सीरिया के शहर बनियास से बर्लिन तक का रास्ता लंबा था. 37 वर्षीय ऐयास पहले सीरिया से मिस्र गए, फिर तुर्की और फिर एक नाव में सवार हो कर इटली के सिसिली पहुंचे. वहां से चार दोस्तों के साथ गाड़ी में बैठ कर जर्मनी आए, "मैं यहां गैरकानूनी तरीके से आया हूं. रास्ता खतरनाक था और हमें काफी डर भी लगा. लेकिन समुद्र के रास्ते जहाज में सवार हो कर आने से बेहतर था." हाल ही में भूमध्य सागर में हुई दुर्घटनाओं के बारे में वे जानते हैं. ऐयास बताते हैं कि वह रास्ता चुना होता तो दस दिन जहाज में बंद रहना पड़ता. अपनी पत्नी और तीन महीने की बेटी को वे पीछे छोड़ आए हैं. कहते हैं कि उनके साथ जोखिम नहीं ले सकते थे. लेकिन इस सब के बाद भी उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. "मैं आशावादी हूं और मुझे जर्मनी से प्यार है."

Flüchtlinge in Berlin
सीरिया से बर्लिन पहुंचे 37 वर्षीय ऐयास.तस्वीर: DW/H. Kiesel

निवासी परेशान

लेकिन शरणार्थी स्थल के आसपास जो हालात हैं, उनसे शायद इस प्यार को धक्का पहुंचे. यह जगह बर्लिन के बीचों बीच नहीं है. यह वह बर्लिन नहीं है जो टूरिस्ट ब्रोशरों में देखने को मिलता है. यह तो एक कोने में स्थित बर्लिन का बूख इलाका है, जहां अब तक कभी प्रवासी देखने को नहीं मिला करते थे. अब यहां शरणार्थियों का यह निवास बन गया है. चारों तरफ बाड़ लगी है, वह भी एक नहीं, दो दो क्योंकि शरणार्थियों को सुरक्षित रखना है.

आसपास रहने वाले भी समझ नहीं पा रहे कि आखिर यहां शरणार्थी स्थल क्यों बना दिया गया है, क्यों वे पहले की तरह बाग से गुजरते हुए बस स्टॉप तक नहीं पहुंच सकते. वहां कुछ इस तरह की बातें हो रही हैं, "हमें शरणार्थियों से सच में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन यहां तो एक पार्क हुआ करता था ना." अधिकारियों ने शायद निवासियों को ठीक से सूचित नहीं किया था. इसलिए शरणार्थी स्थल में जब पहले 75 लोग पहुंचे तो नारेबाजी हुई, उन पर बोतलें फेंकी गयीं. अब हर वक्त बाहर पुलिस की गाड़ी तैनात रहती है और कुछ बॉडीगार्ड चारों तरफ चक्कर लगाते रहते हैं. बर्लिन में इस तरह के दो और शरणार्थी स्थल खोलने की योजना है. कुल खर्च 4.3 करोड़ यूरो.

बेहतरीन मेहमाननवाजी

इस बीच ऐयास जर्मन लोगों की मेहमाननवाजी के कायल हो गए हैं. एक बड़े से कमरे में सबका स्वागत किया जा रहा है. मेज पर खाने की कई चीजें लगी हैं. वे ब्रेड से शुरुआत करते हैं. पास ही में एक छोटी सी बच्ची सैंडविच खा रही है. शरणार्थियों की जरूरतों का ध्यान रखने के लिए 150 लोग यहां काम कर रहे हैं. इन्होंने खुद को दस अलग अलग ग्रुपों में बांटा हुआ है और इनमें से अधिकतर स्वयंसेवी हैं. कोई ग्रुप भाषा सिखाने के काम में लगा है, कोई बच्चों की देखभाल कर रहा है, तो कोई शहर दिखाने की जिम्मेदारी उठा रहा है. चर्च ने भी बच्चों के हाथों बनी पेंटिंग भेजी हैं जिस पर स्वागत संदेश लिखे हुए हैं. बस अगर आसपास के निवासियों की नाराजगी ना होती, तो बर्लिन में यह नई शुरुआत और भी सुखद हो जाती.

ऐयास को अब शरणार्थी स्थल में रहने के तौर तरीके सीखने होंगे. कमरों में धूम्रपान की अनुमति नहीं है. हर कमरा एक कंटेनर जैसा है. 15 वर्गमीटर की जगह में दो बिस्तर और एक अलमारी लगी है. लेकिन दीवारें पतली हैं. जैसे जैसे और लोग आने लगेंगे यहां शोर भी बढ़ेगा. परिवारों को एक साथ कमरे दिए जाएंगे. ऐयास यहां एक और व्यक्ति के साथ रहेंगे. चादर और बर्तन भी मिल गए हैं. ऐयास ने बिस्तर लगाना भी शुरू कर दिया है. शायद किसी दिन वे अपने परिवार के साथ यहां रह सकेंगे.