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शिखर सम्मेलन और खाड़ी देशों का रंज

कैर्स्टेन क्निप्प/एमजे१४ मई २०१५

अमेरिका ने खाड़ी सहयोग परिषद के देशों को शिखर भेंट के लिए बुलाया है. लेकिन अरब देश दूरी दिखा रहे हैं. डीडब्ल्यू के कैर्स्टेन क्निप का कहना है कि यह दिखाता है कि उन्हें भविष्य में अमेरिका के समर्थन की कितनी जरूरत है.

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तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images

वे बीमार हैं, यमन में संघर्षविराम की वजह से बाध्य हैं या नाराज हैं? अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के निमंत्रण को ठुकराने की सऊदी शाह सलमान के फैसले की वजह जो भी रही हो, उनके इरादों पर चल रही अटकलें दिखाती हैं कि अमेरिका और उसके सबसे करीबी अरब साथी के संबंधों पर गहरा साया है.अरबों का भरोसा खत्म हो गया है, दशकों की सहमति की जगह अगर बढ़े हुए संशय ने नहीं तो निराशा ने तो ले ही ली है. रियाद, मनामा और अबु धाबी में यह सवाल पूछा जा रहा है कि अमेरिका क्या चाहता है, ओबामा क्या चाहते हैं? या यह कि ओबामा दरअसल क्या चाहते हैं?

क्या चाहते हैं ओबामा

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने खाड़ी सहयोग परिषद के देशों को बता दिया है कि वे क्या चाहते हैं. यानि कि खाड़ी देशों के कट्टर दुश्मन ईरान के साथ एक नया बेहतर रिश्ता. ये इरादा तेहरान के साथ पहली सफल परमाणु वार्ता में भी झलकता है और जिहादी आतंक के खिलाफ सामरिक संबंध में, जिसमें अमेरिका तेहरान की महत्वपूर्ण भूमिका स्वीकार करता है. लेकिन खाड़ी के देश ओबामा से यह भी जानना चाहते हैं कि वे ईरान के साथ संबंधों की क्या कीमत चुकाने को तैयार हैं.

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खाड़ी देशों पर, खासकर सऊदी अरब पर बहुत से आरोप लगाए जा सकते हैं; उसकी उग्र धार्मिक नीति पर, सलाफियों और जिहादियों के साथ अस्पष्ट संबंधों पर. लेकिन एक मामले में वे सही हैं, ईरान की नई विदेशनैतिक छवि का लाभकारी असर होगा, यह पूरी तरह कतई तय नहीं है. सीरियाई तानाशाह बशर अल असद को ईरान के समर्थन का ही नतीजा है कि पांच साल से चल रहा युद्ध अभी भी जारी है, ढाई लाख लोग मारे गए हैं, करीब 1 करोड़ लोग बेघर हो गए हैं.उन्हें जिहादियों ने भी मारा और भगाया है लेकिन मुख्य रूप से असद के सैनिकों ने. खाड़ी के देशों का सवाल है कि क्या अमेरिका और ओबामा इस युद्ध को खत्म करने के लिए और ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे.

शांति या सत्ता

क्या रियाद या दूसरी राजधानियों में शांति की वजह से चिंता है. नहीं क्योंकि सीरिया में छद्म युद्ध लड़ा जा रहा है जिसमें शिया और सुन्नी देश अपने प्रभाव को बचाने की कोशिश में लगे हैं. सुन्नी देश और उनमें खाड़ी के देश भी शामिल हैं सीरिया में ईरान के वर्चस्व को खत्म करना चाहते हैं. इसलिए वे विद्रोहियों को हथियार दे रहे हैं. उनका सवाल यही है कि वे कब तक ओबामा के समर्थन की उम्मीद कर सकते हैं. हालांकि यमन में एक दूसरे छद्म युद्ध में अमेरिका ने खाड़ी के देशों का साथ दिया है और हमले को सैनिक मदद दी है. इसका सांकेतिक महत्व है क्योंकि इसके जरिए सऊदी नेतृत्व वाला सहबंध ईरान के प्रभाव को रोकने की कटिबद्धता दिखाना चाहता है.

यह बात कि ओबामा ने खाड़ी के देशों को ईरान के साथ परमाणु वार्ता में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सेदार नहीं बनाया, इन देशों में रंज का कारण बना. शायद यही शिखर सम्मेलन के निमंत्रण पर दिखी प्रतिक्रिया में झलक रहा है. ज्यादातार देशों ने अपने राज्य या सरकार प्रमुख को नहीं बल्कि दूसरे स्तर के नेताओं को भेजा है. अगर यह सचमुच में विरोध प्रदर्शन है तो इसका दूसरा संकेत भी हो सकता है, कि इलाके में शांति अमेरिका के बिना अमेरिका के साथ से बेहतर नहीं है. ईरान और खाड़ी के देश दोनों ही अमेरिका को अप्रत्यक्ष मध्यस्थ मानते हैं. यह संतुलित व्यावहारिकता का सबूत नहीं है.