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शुरू होगी तुर्की से लेकर पाकिस्तान तक की रेल

१५ जनवरी २०२१

पिछले महीने तुर्क, ईरानी और पाकिस्तानी अधिकारियों में इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद रेल नेटवर्क को दोबारा चालू करने पर सहमति बन गई है. 2009 में शुरू की गई इस परियोजना का ट्रायल रन हो चुका है.

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Samjhauta Express Zug
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

करीब 6,500 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का 1,950 किलोमीटर हिस्सा तुर्की से 2,600 किलोमीटर ईरान से और 1,990 किलोमीटर पाकिस्तान से गुजरेगा. अधिकारियों का कहना है कि इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद यानी आईटीआई रेल नेटवर्क को बहुत जल्द चालू कर दिया जाएगा. हालांकि यह चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा नहीं है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आखिरकार यह उस में शामिल हो जाएगा.

अटलांटिक काउंसिल के साउथ एशिया सेंटर में ईरानी विशेषज्ञ फातेमेह अमान का कहना है कि अगर चीन और ईरान के बीच 400 अरब डॉलर की परियोजना पर डील हो जाती है तो चीन को आईटीआई जैसी परियोजनाओं की बहुत जरूरत होगी. इसके जरिए इलाके में कनेक्टिविटी का इस्तेमाल चीन को करना चाहेगा. अमान यह भी कहती हैं, "अगर चीन एशिया में अमेरिकी की भूमिका हथियाने में सफल हो जाता है तो उसे क्षेत्रीय देशों के बीच ज्यादा सहयोग की जरूरत होगी."

आसान सफर और बेहतर संपर्क

जानकारों का कहना है कि आईटीआई इन तीनों देशों के बीच संपर्क बढ़ाएगा और सफर को आसान करेगा. इस्तांबुल से इस्लामाबाद तक की यात्रा में समंदर के रास्ते से 21 दिन लगते हैं जो ट्रेन से महज 11 दिन में पूरी हो जाएगी. वारसॉ के वॉर स्टडी एकेडमी में वेस्ट एशिया एनेलिस्ट लुकास प्रिबिस्चेव्सकी का कहना है, "आईटीआई लंबी दूरी की बस सेवा की तुलना में सफर को आसान और सुरक्षित बनाएगा. यह तीर्थयात्रियों के लिए सफर को सस्ता और हवाई यात्रा की तुलना में ज्यादा मजेदार बना देगा."

Pakistan Gwadar Hafen Balochistan
बलोचिस्तान के इलाके से गुजरेगी आईटीआईतस्वीर: DW/A.G. Kaker

अमान मानती हैं कि यह प्रोजेक्ट अगर काम करने लगा तो इसके कारण "तुर्की, ईरान और पाकिस्तान के बीच संपर्क नाटकीय रूप से बढ़ जाएगा. यह माल की ढुलाई, कंटेनरों की ढुलाई बढ़ाएगा और यात्रा का समय और खर्च घटेगा."

सुरक्षा का जोखिम

हालांकि इस यात्रा की सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल उठ रहे हैं. इस्लामाबाद में विश्लेषक टॉम हुसैन इस परियोजना को लेकर सावाधान करते हैं, "बहुत सी अंतरराष्ट्रीय मालवाहक ट्रेन और गैस पाइपलाइन की परियोजनाएं राजनीतिक अस्थिरता के कारण इलाके में दशकों से धूल फांक रही हैं. इस वक्त भी आईटीआई का भविष्य दो अहम बातों पर निर्भर करेगाः ईरान से अमेरिकी प्रतिबंधों का हटना और अफगान युद्ध का ख्तम होना. इसके साथ ही रेल पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को आर्थिक रूप से मुफीद बनाने के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी."

साथ ही सुरक्षा को लेकर भी जोखिम हो सकता है क्योंकि आईटीआई ऐसे इलाकों से गुजरेगी जो इस्लामी चरमपंथियों के चंगुल में है. इस्लामिक स्टेट का चरमपंथी गुट खासतौर से पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत और ईरान में सक्रिय है. इसके साथ ही बलूचिस्तान के अलगाववादी भी नियमित रूप से प्रांत में सुरक्षाबलों को निशाना बनाते रहते हैं. यह प्रांत चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के लिहाज से बेहद अहम है.

Coronavirus Grenze zwischen Pakistan und Iran
तस्वीर: DW/G. Kakar

प्रिबिस्चेव्सकी का कहना है, "सुरक्षा का जोखिम तो बहुत बड़ा है. आईटीआई चरमपंथियों का आसानी से निशाना बन सकता है." हालांकि इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि अधिकारी कुछ कदम उठा कर खतरे को कम कर सकते हैं.

अमान कहती हैं कि ईरान और पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में सीमा पार से होने वाले हमलों की जद में भी रेल सेवा आ सकती है, "हालांकि हमने देखा है कि आपसी आर्थिक हित सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने में भूमिका निभाते हैं." उनका कहना है कि इन देशों की सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय लोग इन परियोजनाओं से जुड़ें. अमान के मुताबिक, "इसके लिए राजनीतिक सुधारों और सुरक्षा की धारणा को बदलने की जरूरत होगी."

पैसे कहां से आएगा

भारी आर्थिक संकट देख रहा पाकिस्तान इस खर्चीली परियोजना के लिए पैसे कहां से लाएगा? देश की स्थानीय रेलसेवा बुरे हाल में है और बलूचिस्तान में रेल लाइनों को बेहतर बनाना एक बड़ी चुनौती होगी. प्रिबिस्चेव्स्की कहते हैं, "ईरान, पाकिस्तान और तुर्की के लिए यह सबसे किफायती परियोजना नहीं है लेकिन फिर भी यह जरूरी है. आने वाले सालों में हम इसके आर्थिक फायदे देखेंगे."

हुसैन का मानना है कि इस परियोजना को भारी पैमाने पर विदेशी और निजी निवेश की जरूरत होगी. यहीं पर चीन के बेल्ट एंड रोड एनिशिटिव को भूमिका निभानी होगी. यह आईटीआई में उसे प्रमुख भूमिका दे सकता है जैसा कि यह यूरेशियाई संपर्क में दे रहा है. हालांकि मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि चीन इस परियोजना को सिर्फ राजनीतिक समर्थन ही देना चाहता है. चीन चाहता है कि इस परियोजना का खर्च पाकिस्तान और तुर्की उठाएं.

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