1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

श्रीलंका को नहीं, खुद को कोसिये

ओंकार सिंह जनौटी
४ दिसम्बर २०१७

प्रदूषण से दिल्ली का दम घुट रहा है. लेकिन इसके बावजूद दिल्ली को टेस्ट मैच की मेजबानी मिली. अब हंगामे के बाद एक से एक बहाने बनाए जा रहे हैं.

https://p.dw.com/p/2oiNm
Cricket Testmacht Indien gegen Sri Lanka
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Qadri

कोटला टेस्ट के दूसरे दिन श्रीलंका के तेज गेंदबाज बुरी तरह दूषित दिल्ली की हवा में हांफने लगे. जिन लोगों ने भी कभी क्रिकेट खेला है, वे जानते हैं कि तेज गेंदबाजी करने के लिए बदन में कितनी जान चाहिए. श्रीलंका के खिलाड़ी दूसरे दिन मैदान पर मास्क पहनकर आये. टीम के मुताबिक उनके तेज गेंदबाजों को ड्रेसिंग रूम में उल्टी भी हुई.

इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कुछ लोग श्रीलंका के खिलाड़ियों पर बहाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं. ऐसा करके अपनी भद्द मत पिटवाइये. भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को पता है कि दिल्ली की हवा विश्व में सबसे दूषित है. इसके बावजूद वहां टेस्ट मैच कराया गया, यानि अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारी गयी.

दिल्ली के डॉक्टरों के मुताबिक राजधानी में ज्यादातर बच्चों के फेफड़े खराब हो चुके हैं. बच्चे और बुजुर्ग परेशान हैं. जवान लोग भी चुपचाप बेहद गंभीर बीमारियां सूंघते जा रहे हैं. करीबन बीते दो महीने से प्रदूषण का मुद्दा छाया है. लेकिन न तो केंद्र सरकार और न दिल्ली सरकार इस पर गंभीर नजर आती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव रैलियों में व्यस्त हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अभूतपूर्व खामोशी धारण किये हुए हैं. दिल्ली में प्रदूषण ज्यादा होने पर स्कूल बंद करवा दिये जाते हैं, मानो दूषित हवा सिर्फ स्कूलों में ही घुसी हो. घर के भीतर तो स्वच्छ और निर्मल आबोहवा बह रही हो.

भारत के दर्जनों शहर वायु प्रदूषण के लिए बदनाम हो चुके हैं. दूसरे इलाके भी दिल्ली की तरह गैस चैंबर बनते जा रहे हैं. लेकिन अब तक ऐसा नहीं सुनाई पड़ा कि देश के 1,000 शहरों में सीएनजी स्टेशन खोले जाएंगे. कई राज्यों से दिल्ली आने वाली हजारों बसों के लिए सीएनजी की व्यवस्था की जाएगी. 10 साल से पुरानी डीजल गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जाएगा. सड़कों को लगातार चौड़ा करने के बजाए, शहरों में सड़कों के बीचों बीच ट्राम चलाई जाएंगी. शहरों के बीच सैकड़ों बसें, जीपे या तिपहिया चलाने के बजाए आधे आधे घंटे में ट्रेने चलायी जाएंगी. पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर किया जाएगा. फैक्ट्रियों को 2019 तक खुद को न्यूनतम पॉल्यूशन के लिए तैयार करने की डेडलाइन दी जाए.

कुछ समस्याओं को हल करने के लिए रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं होती, बस बेहतर प्लानिंग के साथ थोड़ा दिमाग लगाना पड़ता है. लेकिन इतनी फुर्सत किसके पास है, सब तो एक के बाद एक चुनावों में ही व्यस्त रहते हैं.

(दूषित हवा में सांस लेने से होती हैं ये बीमारियां )