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"संगीत और नृत्य को समर्पित हूं"

१ जून २०१४

केवल 17 वर्ष की आयु में देश के विख्यात खजुराहो नृत्य महोत्सव में भाग लेने के लिए निमंत्रण मिलना किसी भी कलाकार के लिए गर्व की बात होगी, लेकिन महती कन्नन इसे स्वाभाविक रूप से लेती हैं.

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तस्वीर: privat

असाधारण बालप्रतिभा होने के कारण छुटपन में ही उनका प्रसिद्धि के साथ परिचय हो गया. उनके पिता वीणा विद्वान बी कन्नन की बुआ पद्मा सुब्रह्मण्यम की गिनती देश के शीर्षस्थ भरतनाट्यम कलाकारों में की जाती है. वही उनकी गुरु हैं और उनकी शिक्षा का ही परिणाम है कि केवल आठ वर्ष की आयु में महती का अरंगेत्रम यानि प्रथम एकल मंच प्रस्तुति भी संपन्न हो गया था.

महती कर्नाटक शैली के गायन में भी निपुणता प्राप्त कर रही हैं. इस वर्ष फरवरी में खजुराहो नृत्य महोत्सव में उनकी भरतनाट्यम प्रस्तुति की विशेषता यह रही कि उसमें संभवतः पहली बार ध्रुपद शैली के संगीत का प्रयोग किया गया. प्रस्तुत हैं उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश:

आपका तो पूरा परिवार ही संगीत और नृत्य के लिए समर्पित है. इसलिए आपके लिए बड़ा स्वाभाविक रहा होगा इस क्षेत्र में आना.

जी हां. मेरी मां गायत्री कन्नन भी कर्नाटक शैली की गायिका और भरतनाट्यम कलाकार हैं. पिता तो प्रसिद्ध वीणावादक हैं ही. मेरी गुरु पद्मा सुब्रह्मण्यम के बारे में तो आप जानते ही हैं. हम सब एक साथ रहते हैं इसलिए मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैंने कब सीखना शुरू कर दिया. दो वर्ष की थी तभी मैं अपनी गुरु पद्मा जी के कार्यक्रम में लंदन के क्वीन एलीजाबेथ हाल के मंच पर बालकृष्ण के रूप में उपस्थित हो गई थी और तीन वर्ष की थी तब प्रसिद्ध नृत्यनाटिका 'मीनाक्षी कल्याणम' में बालमीनाक्षी बनी. उसके बाद से तो अपनी गुरु के साथ देश विदेश में अनेक जगह कार्यक्रम दिए हैं. मेरे लिए नृत्य और संगीत से अधिक स्वाभाविक कुछ भी नहीं है.

Mahati Kannan Tänzerin Indien
अद्भुत मुद्रा में महती कन्ननतस्वीर: privat

बचपन में तो पारिवारिक माहौल के कारण आपने नृत्य और संगीत शुरू किया. लेकिन क्या इसमें एक किस्म की विवशता नहीं है? आपने क्या स्वेच्छा से इन्हें चुना है?

विवशता तो बिलकुल नहीं है. पैदा होने के बाद से ही संगीत और नृत्य से ही घिरी हुई हूं. तो यह सब मेरे अंदर रच बस गया है, और शायद जन्मजात ही था. बड़ी होने के बाद भी मुझे इसी में आनंद मिला. इसलिए आप कह सकते हैं कि दोनों ही बातें ठीक हैं. परिवार के माहौल के कारण और अपनी इच्छा के कारण भी मैं संगीत और नृत्य को समर्पित हूं.

क्या नृत्य के अलावा संगीत में भी कुछ कर दिखाने की इच्छा है?

संगीत नृत्य का एक अटूट अंग है. नृत्य करने वाले को संगीत का ज्ञान होना अनिवार्य है. मैंने अपनी मां से गायन और पिता से वीणावादन की शिक्षा ली है, लेकिन मैं मंच पर संगीत की प्रोफेशनल ढंग से प्रस्तुति करूं इसलिए नहीं बल्कि अपने नृत्य को और अधिक समृद्ध करने के लिए.

आपने अभी 12वीं की परीक्षा दी है. आगे क्या इरादा है?

मैं पुरातत्वविद बनना चाहती हूं. पहले मैं प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन करूंगी और उसके बाद पुरातत्वशास्त्र का. मैं फिलहाल चेन्नई में ही पढ़ना चाहती हूं. बाद में बाहर जाने की भी सोच सकती हूं. अभी भी मेरे पास मानविकी के विषय हैं. इतिहास में मेरी जुनून की हद तक रुचि है. वह मेरा सबसे प्रिय विषय है.

भरतनाट्यम की बहुत सी मुद्राएं प्राचीन मूर्तिशिल्प में पाई जाती हैं. क्या यह भी एक कारण है इतिहास और पुरातत्व में आपकी रुचि का?

पता नहीं. कभी इस तरह सोचा तो नहीं. हो भी सकता है, लेकिन मैं कुछ पक्का नहीं कह सकती.

आपकी गुरु पद्मा सुब्रह्मण्यम तो आपके प्रेरणा होंगी ही. क्या उनके अलावा और भी पुराने या आज के भरतनाट्यम कलाकार हैं जो आपके लिए प्रेरणास्रोत हैं, या फिर आजकल की भाषा में कहें तो आपके आइकॉन हैं?

मैंने अन्य सभी बड़े बड़े कलाकारों की प्रस्तुतियां देखी हैं. सभी बहुत अच्छे हैं और मुझ जैसे नए कलाकारों को उनका नृत्य देखकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है. सभी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है, इसलिए एक अर्थ में सभी प्रेरणास्रोत हैं. लेकिन सबसे अधिक तो मेरी गुरु ही हैं.

भरतनाट्यम और अन्य नृत्य शैलियों में क्या फर्क है? कुछ बताएंगी?

भरतनाट्यम में अलग तरह की और बहुत वैरायटी की तालें इस्तेमाल की जाती हैं. फिर इसमें अंगसंचालन और मुखमुद्रा भिन्न किस्म की होती है. यानि इसमें अभिनय द्वारा भाव व्यक्त करने की शैली बिलकुल भिन्न है. नृत्य के साथ केवल कर्नाटक संगीत का ही प्रयोग किया जाता है.

इस बार के खजुराहो नृत्य महोत्सव में आपने ध्रुपद के साथ नृत्य करके एकदम नया प्रयोग किया. इसके बारे में कुछ बताइए.

मैंने तानसेन के एक गंगा संबंधी ध्रुपद पर नृत्य किया जो राग मुल्तानी में है और 12 मात्र की चौताल में निबद्ध है. मेरी गुरु पद्मा जी ने इसे कोरियोग्राफ किया था और आशीष सांकृत्यायन ने ध्रुपद गाया था.

इंटरव्यूः कुलदीप कुमार

संपादनः अनवर जे अशरफ