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संगीत को जिंदा करते इराकी

४ मार्च २०१३

आसपास के बड़े अरबी देशों की संस्कृतियां इराक पर हावी हो रही हैं और देश के पारंपरिक संगीत के लिए खतरा पैदा कर रही हैं. लेकिन अब बगदाद में कुछ लोग मिलकर इस पुरानी धरोहर को दोबारा जिंदा करने में लगे हैं.

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तस्वीर: DW

हुसैन अब्दुल्लाह अपने औद को पकड़े हुए हैं. औद इराक का पारंपरिक बाजा है और दिखने में यह मैंडोलिन या दिलरुबा की तरह लगता है. अब्दुल्लाह आधुनिक संगीत से बहुत परेशान हैं, "टीवी में आप केवल ऐसे संगीतकारों को सुनते हैं जिनकी कोई आवाज ही नहीं है." अगर केंद्रीय बगदाद के चक्कर काटें तो अब्दुल्लाह की शिकायत की वजह कुछ समझ में आती है. यहां की दुकानों और रस्तरां में मिस्र के संगीतकार अम्र दियाब के गाने बजते हैं.

लेकिन अब्दुल्लाह की तरह कई और छात्र बगदाद म्यूजिकल स्टडीज सेंटर में पुरानी परंपराओं को दोबारा जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. सेंटर के निदेश सत्तार नाजी कहते हैं कि 2003 में अमेरिकी हमले के बाद सेंटर में 30 छात्र भी नहीं थे. अब यहां 150 से ज्यादा युवा इराकी संगीत सीख रहे हैं. 18 साल के मुहम्मद अली मुहम्मद भी एख दिन सेंटर में पढ़ना चाहते हैं. वे प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. उनसे कहा गया है कि वे ताली बजाते हुए एक धुन गुनगुनाएं.

मुहम्मद पहले तो समझ नहीं पाए लेकिन धीरे धीरे उन्होंने कर लिया. निदेशक नाजी ने अपने साथ काम कर रहे संगीत अध्यापकों से मुहम्मद के बारे में मशविरा किया और इस बात पर एकमत हुए कि मुहम्मद अगर मेहनत करे तो वह पारंपरिक इराकी संगीत में काफी सफल हो सकते हैं. लेकिन मुहम्मद का कहना है कि वह वास्तव में इराकी स्टार सीरीज में हिस्सा लेना चाहते थे, जो इंडियन आईडल की तरह एक टीवी शो है. लेकिन पढ़ाई की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाए. लेकिन मुहम्मद के अध्यापक उन्हें औद के साथ साथ कानून की भी सीख देंगे, जो सितार की तरह एक इराकी बाजा है. लेकिन उनको सिखाने वाले मुस्तफा जैर कहते हैं कि इराकी अपनी परंपरा भूल चुके हैं.

संगीत और अहिंसा

2005 से 2008 तक इराक में समुदायों के बीच लड़ाई चलती रही. कई हजार लोग मारे गए और हिंसा की वजह से कभी कभी घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया. उस वक्त इराकी संगीत भी आतंकवादियों के निशाने में आया. मुराद 2005 से 2007 तक म्यूजिकल इंस्टिट्यूट में पढ़ते थे. कहते हैं कि वे अपना बाजा घर से बाहर ले जाने से डरते थे. उन्होंने अपने पड़ोसियों से भी नहीं कहा कि वे संगीत सीख रहे हैं.

लेकिन हाल में इराक में स्थिति बेहतर हुई है. हिंसा पूरी तरह खत्म तो नहीं हुई है लेकिन संगीतकारों को पहले के मुकाबले और आजादी मिल रही है. इसके बावजूद सुनने वाले और इस तरह की संगीत को बढ़ावा देने वाले लोग कम पड़ रहे हैं. इसका बुरा असर मकाम पर पड़ा है, जो एक तरह की इराकी संगीत शैली है. अब कई संगीतकारों की कोशिश है कि मकाम को किसी तरह जिंदा किया जाए और औद जैसा पारंपरिक बाजा भी मशहूर हो.

सांस्कृतिक मंत्रालय में संगीत विभाग के प्रमुख हसन शकरजी कहते हैं कि हिंसा को केवल हथियारों से खत्म नहीं किया जा सकता और संस्कृति हिंसा कम करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है. म्यूजिक इंस्टिट्यूट के निदेशक नाजी कहते हैं कि इराकी संगीत को सैटेलाइट चैनलों में आ रही विदेशी संगीत से बचाना होगा. हुसैन जैसे छात्र शायद ऐसा करने में सफल रहें. अपने तीन दोस्तों के साथ उन्होंने एक म्यूजिक बैंड का गठन किया है जो औद के साथ पारंपरिक संगीत बजाती है. वे पुराने जमाने के इराकी गाने बजाते हैं. हुसैन के दोस्त अहमद गाते हैं, मुहम्मद पियानो और गसन वायलिन बजाते हैं. मुहम्मद का कहना है कि वे एक दिन सार्वजनिक जगह में बजाना चाहेंगे. इस वक्त यह मुमकिन नहीं. बगदाद में रस्तरां संगीतकारों और उनके वाद्यों के लिए बिजली का कनेक्शन नहीं देना चाहते.

एमजी/एएम(एएफपी)