1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सुप्रीम कोर्ट ने रोका संथारा पर हाई कोर्ट का फैसला

समरा फातिमा३१ अगस्त २०१५

सुप्रीम कोर्ट ने जैन प्रथा संथारा को गैरकानूनी बताने वाले राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है. संथारा के तहत जैन समुदाय में मृत्यु की इच्छा रखने वाला व्यक्ति खाना पीना छोड़कर मौत का इंतजार करता है.

https://p.dw.com/p/1GOQV
Indien Sterbedorf
तस्वीर: DW/B. Das

राजस्थान हाई कोर्ट ने इसे आत्महत्या जैसा अपराध बताते हुए इस पर रोक लगा दी थी. 10 अगस्त को अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि संथारा लेने वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या का मामला दर्ज होना चाहिए. संथारा के लिए उकसाने पर धारा 306 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए. जैन समुदाय के संगठनों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले पर उत्तर प्रदेश के ललितपुर शहर में जैन समुदाय के 10,000 लोगों ने सिर मुंडा कर शांतिपूर्वक विरोध जताया. जैन संतों का कहना है कि कोर्ट में सही तरीके से संथारा की व्याख्या नहीं की गई. संथारा का मतलब आत्महत्या नहीं है, यह विवेक से लिया गया स्वैच्छिक कदम है. जैन समुदाय का कहना है कि संथारा आवेश में आकर लिया गया फैसला नहीं है जैसा कि आत्महत्या के मामले में होता है. संथारा का प्रण लेने वाला व्यक्ति सोच समझ कर यह कदम उठाता है.

संथारा के खिलाफ मामला पिछले 9 साल से कोर्ट में था. वकील निखिल सोनी ने वर्ष 2006 में ‘संथारा' की वैधता को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. 2006 में जयपुर की 93 वर्षीय कीला देवी हिरावत और जयपुर की ही कैंसर पीड़ित विमला देवी भंसाली ने संथारा का मार्ग अपनाया. इसके बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इस बारे में चर्चा होती रही है कि इस तरह की प्रथाओं का आधुनिक समाज में अस्तित्व स्वीकार्य होना चाहिए या नहीं.

जैनधर्म में संथारा को धैर्यपूर्वक अंतिम समय तक जीवन को ससम्मान जीने की कला कहा गया है. शास्त्रों के अनुसार यह निष्प्रतिकार-मरण की विधि है. इसके मुताबिक जब कोई अहिंसक इलाज संभव नहीं रहे, तब आत्मा और परमात्मा का चिंतन करते हुए जीवन की अंतिम सांस तक अच्छे संस्कारों के प्रति समर्पित रहने की विधि का नाम संथारा है. एक अनुमान के अनुसार हर साल कुछ सौ लोग संथारा के जरिए मृत्यु का वरण करते हैं. ऐसा करने वालों को जैन समाज सम्मान के नजरिए से देखता है. भारत सरकार ने आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने की बात कही है लेकिन अब तक कानून में संशोधन नहीं किया गया है.