संदीप से सौतेला व्यवहार
२६ सितम्बर २०१३बुडापेस्ट से विश्व चैंपियनशिप में ग्रीको रोमन स्टाइल की कुश्ती में कांस्य पदक जीतने के बाद जब संदीप दिल्ली हवाई अड्डे पहुंचे, तो उन्हें सिर्फ सन्नाटा दिखा. चुपचाप खुद ही अपनी ट्रॉली खींचते हुए बाहर निकले.
अक्सर जब पहलवान या दूसरे खिलाड़ी पदक जीत कर घर लौटते हैं तो एयरपोर्ट के आस पास के गांव के लोग ढोल नगाड़ों के साथ पहुंच जाते हैं. उनका स्वागत किया जाता है, उन्हें फूल मालाएं पहनाई जाती हैं. लेकिन संदीप के साथ ऐसा नहीं हुआ, यहां तक कि कुश्ती के अधिकारी भी नदारद रहे. हालांकि अपनी मायूसी छिपाते हुए संदीप ने सिर्फ इतना कहा, "शायद सुबह तीन बजे की वजह से कोई न आया हो. लेकिन फिर भी इसकी उम्मीद तो रहती है."
भले ही उन्हें वर्ल्ड चैंपियनशिप में तमगा मिल गया हो लेकिन उनके वर्ग की कुश्ती अगले साल ग्लासगो में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में नहीं होगी. ग्रीको रोमन शैली को कॉमनवेल्थ खेलों से बाहर कर दिया गया है. पिछले महीने जब इसके लिए एक बैठक हुई, तो सभी 71 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. भारत के जीएस मंडेर भी थे, जिन्होंने इस बात का विरोध नहीं किया कि आखिर ग्रीको रोमन को क्यों प्रतियोगिता से बाहर किया जा रहा है.
मंडेर को शायद इस शैली में अपने ही देश के रिकॉर्ड का ज्ञान नहीं था. दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों में भारत ने सात पदक जीते थे, जिनमें से चार स्वर्ण थे. इसका सीधा मतलब यह है कि अगले कॉमनवेल्थ खेलों में भारत एक बड़ी संभावना से पहले ही चूक गया है.
सवाल यह है कि ग्रीको रोमन के साथ ऐसा व्यवहार क्यों. भारत के शानदार पहलवान चंदगी राम के बेटे और खुद चोटी के पहलवान रहे जगदीश कालीरमण का कहना है कि इसका ऐतिहासिक कारण भी है, "भारत में मिट्टी पर दंगल होते थे और हम बाद में गद्दों पर आ गए. गद्दों पर आने के बाद हम ज्यादातर फ्रीस्टाइल लड़ने लगे."
कालीरमण का कहना है कि यह शैली यूरोप में ज्यादा लोकप्रिय है और "भारत में वही पहलवान इसमें जाते हैं, जिनका नंबर फ्रीस्टाइल में नहीं लगता. लेकिन इन्हीं वजहों से संदीप को बुडापेस्ट में पदक मिला."
भारत में एक राष्ट्रीय चैंपियनशिप के अलावा ग्रीको रोमन पहलवानों को और कोई मौका नहीं मिलता. हालांकि कालीरमण हर साल इसकी एक बड़ी प्रतियोगिता कराते हैं.
रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम, दिल्ली
संपादनः अनवर जे अशरफ