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सजने संवरने का बढ़ता बाजार

४ जून २०१०

हर साल दुनिया भर में सजने संवरने की चीजों यानी कॉस्मेटिक्स का बाज़ार औसतन 5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है. लोरिआल, रेवलोन, मेबललीन, दिओर, लांकोम- ये ऐसे ब्रांड बन गए हैं जो सब जगह मशहूर हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अब चाहे भारत हो, अमेरिका हो, जर्मनी हो या फिर मिस्र. असल में महिलाओं में जागरूकता बढ़ रही है और वे अपने पैरों पर खड़ी होकर कमाने भी लगी है. इसीलिए अब भारत, ब्राजील, चीन या ईरान जैसे देशों में भी कॉस्मेटिक्स बाज़ार तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहा है. इतनी तेजी से, जितना किसी ने सोचा भी न था.

Body Shop Filiale in Birmingham
तस्वीर: picture-alliance/dpa

लगभग साढ़े पांच हजार साल पुराने सबूतों से पता चलता है कि उस वक्त भी सजने संवरने की चीजों का इस्तेमाल होता था. मिस्र में आंखों को और चमकीला बनाने के लिए उन पर रंग लगाए जाते थे. जिस तरह से भारत में लोग अपने रंग को गोरा बनाना चाहते हैं, उसी तरह मध्य काल में यूरोपीय महिलाएं भी गोरा होने का सपना देखती थीं.

वे चॉक, आटा और सीसे का इस्तेमाल कर अपनी त्वचा को गोरा बनाने की कोशिश करती थीं. हालांकि 20वीं सदी आते आते यह रूढ़ीवादी सोच पैदा हुई कि सिर्फ वहीं महिलाएं मेकअप करती हैं जो अपनी अदाओं से पुरुषों को फंसाना चाहती हैं या फिर जो कलाकार हैं. बावजूद इसके खूबसूरत दिखने की होड को नहीं रोका जा सका.

उधर, ईरान जैसा देश कॉस्मेटिक्स उत्पादों के लिए दुनिया का सातवां सबसे बडा बाज़ार बन गया है. बेशक इस मामले में पहला नंबर तो अमेरिका का ही है. लेकिन ईरान के बड़े बड़े मॉल्स में भी दुनिया के नामचीन ब्रांड खरीदे जा सकते हैं. 1979 में हुई इस्लामी क्रांति के बाद लिपस्टिक या नेल पॉलिश जैसी चीजों पर पाबंदी लग गई थी. पुलिस सडकों पर उन महिलाओं को गिरफ्तार तक कर लेती थी जो इस नियम को तोड़ कर मेक-अप करती थीं.

Body Shop Filiale in Frankfurt
तस्वीर: AP

1988 के बाद नियमों में थोड़ी ढील हुई. खासकर शहरों में रहने वाली युवा महिलाओं का मानना है कि यदि उन्हें अपने बाल ढकने ही हैं तब वह अपने चहरे को रौशन करना चाहती हैं और इसे अपनी आज़ादी का प्रतीक मानती हैं.

ईरान में 65 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं और आधे से भी ज़्यादा आबादी 30 साल से कम उम्र लोगों की है. एक ताजा रिसर्च के अनुसार इरानी महिलाएं हर साल 2 अरब डॉलर कॉस्मेटिक्स पर खर्च करती हैं. चूंकि ईरान में कॉस्मेटिक्स उत्पाद बहुत कम बनते हैं.

ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा चीज़ें या तो विदेश से मंगाई जाती हैं या अवैध तरीके से वहां पहुंचती हैं. ईरान में काम करने वाली महिलाओं की औसतन तनख्वाह करीब 300 से 600 डॉलर के बीच है यानी करीब 12 हजार से 24 हजार के बीच. एक ईरानी महिला औसतन हर महीने 7 डॉलर से ज्यादा यानी साढ़े चार सौ रुपये सजने संवरने की चीजों पर खर्च करती है. उच्च वर्ग की महिलाओं के लिए यह रकम 50 डॉलर यानी दो हजार रुपये से भी ऊपर चली जाती है.

हालांकि सरकारी दफ्तरों में मेक अप करके आने पर अब भी पाबंदी है. विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप में जहां स्वाभाविक दिखने का चलन है वहीं ईरान में युवतियां खूब मेक- अप करना पसंद करती हैं. भारत में यदि कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल को देखा जाए, तो वह अभी दुनिया के सबसे बडे बाजारों के टॉप टेन में नहीं आया है. जापान, ब्राज़ील, चीन या रूस अब भी भारत से बहुत आगे हैं.

रिपोर्ट: प्रिया एसलबोर्न

संपादन: एस गौड़