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सफाई के बदले बीयर

२० नवम्बर २०१३

सुबह के नौ बजे हैं. एम्सटर्डम के एक कोने में नशेड़ियों की टोली अभी से शुरू हो गई है. एक हाथ में बीयर, दूसरे में सिगरेट. लेकिन इसके बावजूद इन लोगों ने सड़कों की सफाई का जिम्मा भी उठा लिया है.

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वजह बिलकुल आसान है. उन्हें इस काम के लिए हर रोज 10 यूरो मिलते हैं कुछ कुछ खास तोहफा. रोलिंग तंबाकू का आधा पैकेट और सबसे जरूरी, बीयर के पांच केन. दो सुबह सुबह, दो दोपहर के खाने के वक्त और काम पूरा होने पर एक केन.

नीदरलैंड्स की सरकार और दान के भरोसे चलने वाले रेनबो फाउंडेशन प्रोजेक्ट की गेरी होल्टरमन ने बताया, "एम्सटरडम शहर के ओस्टरपार्क के इस हिस्से में हमेशा नशेड़ियों का ग्रुप जमा रहता था, जो झगड़ा और आपस में हाथापाई तो करता ही था, महिलाओं पर भद्दे ताने भी कसता था. हमारा उद्देश्य है कि उन्हें किसी काम में लगा दिया जाए, ताकि वे किसी तरह की बदतमीजी नहीं करें और पार्क में मुश्किल न खड़ी करें."

दो ग्रुप का काम

नशेड़ियों का ग्रुप दो हिस्सों में बंट जाता है. दोनों में करीब 10 लोग होते हैं और दोनों हफ्ते में तीन तीन दिन सफाई का काम करते हैं. काम की शुरुआत नायाब तरीके से होती है. कर्मचारी नौ बजे दो बीयर के केन पी लेते हैं और अगर किसी को कॉफी की जरूरत हुई, तो वह भी मिल जाती है. बड़ी सी एक मेज के पास होल्टरमन भी रहती हैं और नजर रखती हैं कि कौन कितनी "पी" रहा है. हालांकि उनमें अब तक भरोसा पैदा हो चुका है.

Obdachloser in Kharkiv
तस्वीर: DW/Oleksandra Indukhova

बिलकुल सफाई कर्मचारी जैसे कपड़े पहने फ्रैंक का कहना है, "मुझे लगता है कि मैं अपने साथियों की तरफ से बोल सकता हूं. अगर वे हमें बीयर नहीं देंगी, तो हम काम पर नहीं जाएंगे." नशे के आदी हो चुके 45 साल के फ्रैंक ने कहा, "मुश्किल यह है कि हमें कुछ भी करने के लिए बीयर की जरूरत होती है. लगातार नशा करने से यही नुकसान होता है." उसका कहना है कि हिंसा की वजह से उसे जेल भी हो चुकी है और उसने जीवन में कभी भी काम नहीं किया है.

गर्म खाना, ठंडी बीयर

दोपहर के वक्त पूरी टीम छाया में लौट आती है. उन्हें फिर से दो बीयर मिलते हैं और गर्म खाना भी. इसके बाद काम की दूसरी पारी शुरू होती है. दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे साफ सफाई पूरी होने के बाद काम खत्म हो जाता है और साथ में बीयर की एक बची हुई केन भी कर्मचारियों को दे दी जाती है. होल्टरमन का कहना है, "आपको ऐसा करना होता है कि सब संतुष्ट रहें. वे अब पार्क में नहीं जमा रहते. कम पीते हैं. खाना भी खाते हैं और उनके पास काम भी है."

बीयर पीने वालों का भी कहना है कि उन्हें इस प्रोजेक्ट में शामिल होकर अच्छा लगता है. एक सदस्य का कहना है, "इससे हमारी जिंदगी थोड़ी करीने से चलती है. हममें से ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि जिंदगी किस तरह जीनी चाहिए."

ऐसे ही एक दूसरे सदस्य विन्सेंट का कहना है, "जब मैं घर जाता हूं तो मुझे लगता है कि मैंने कुछ काम किया है. उसके बाद मुझे पीने की जरूरत नहीं पड़ती." पहले वह बेकरी का काम करते थे. उन्होंने बताया कि यह भी अच्छी बात है कि वे कम अल्कोहल वाला बीयर देते हैं, वर्ना वे खुद तो बहुत तगड़ी बीयर पीते थे.

आस पास में खुशी

पड़ोस में रहने वाले लोगों को भी इस बात की खुशी है कि अब स्थिति बदल रही है. अपने दरवाजे पर खड़ी एक महिला ने कहा, "अब पार्क में पड़े रहने से बेहतर है कि वे लोग कुछ काम कर रहे हैं."

हालांकि सबके साथ ऐसी बात नहीं है. फ्रैंक का कहना है, "वे जो 10 यूरो देते हैं, काम खत्म होने के बाद वे सीधे बीयर पर खर्च हो जाते हैं. और जिस दिन हमारे पास काम नहीं होता, उस दिन तो हम बस सुबह आठ बजने का इंतजार करते हैं, जब सुपर मार्केट खुलता है."

एजेए/एमजी (एएफपी)

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