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विदेशी फंडिग वाले एनजीओ और विदेशी मूल्यों का सवाल

ऋतिका पाण्डेय१७ जून २०१६

भारत के केंद्रीय जांच ब्यूरो ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ सबरंग ट्रस्ट का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया है. ट्रस्ट पर विदेशी स्रोतों से मिल रहे फंड का गलत इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

भारत के गृह मंत्रालय के एक पूर्व अंडर सेक्रेटरी आनंद जोशी को मई में देश के कई एनजीओ को मनमाने ढंग से एफसीआरए नोटिस जारी करने के आरोप में पहले गिरफ्तार किया गया और फिर रिहा. ठीक एक महीने बाद सरकार ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के सबरंग ट्रस्ट का एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने का फैसला किया है. उनके एनजीओ पर एफसीआरए यानि फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट के उल्लंघन का आरोप है. गृह मंत्रालय ने अपनी जांच में सीतलवाड़ और उनके पति एवं ट्रस्टी जावेद आनंद पर लगे आरोपों के बारे में उनकी सफाई सुनने के बाद निर्णय लिया.

इस नॉन प्रॉफिट ट्रस्ट की ओर से तीस्ता और उनके पति- दोनों ही निदेशक, सहसंपादक, मुद्रक और प्रकाशक की भूमिका में- एक कंपनी सबरंग कम्युनिकेशंस एंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड बना कर 'कम्युनलिज्म कॉम्बैट' नाम की पत्रिका निकालते रहे हैं. जिस काम के लिए विदेशी फंड मिले थे, उन्हें उससे इतर किसी मद में खर्च करना एफसीआरए का सीधा उल्लंघन माना गया.

यह पत्रिका वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने वाली है और एक एक्टिविस्ट के तौर पर खुद तीस्ता सीतलवाड़ ने गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में पीड़ितों के लिए संघर्ष किया है. इसीलिए समाज के एक धड़े का यह मानना है कि सबरंग ट्रस्ट पर तीर चलाना दरअसल सीतलवाड़ को निशाने पर लेने से जुड़ा मामला है. सीतलवाड़ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे और मई 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी की तीखी आलोचनाओं के लिए भी जानी जाती हैं.

सीतलवाड़ और आनंद एक और एनजीओ चलाते हैं, जिसका नाम 'सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस' है. इस एनजीओ को पहले ही एक खास श्रेणी में डाल दिया गया था. इस श्रेणी को 'प्रायर परमिशन कैटेगरी' कहते हैं, जिसमें रखी गई संस्था को किसी भी विदेशी मदद को स्वीकार करने या इस्तेमाल करने से पहले गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है.

भारत में विदेशी मदद से चलने वाले गैरसरकारी संगठनों पर लगाम कसने की मोदी सरकार पर की कोशिशों की काफी आलोचना भी हुई है. इस कड़ी में पहले ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाएं भी प्रभावित हुई हैं. देश के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने के संदेह में पिछले साल ग्रीनपीस इंडिया पर के विदेशी फंड लाइसेंस को स्थगित कर दिया था. इसके अलावा अमेरिकी चैरिटी फोर्ड फाउंडेशन पर भी बिना सरकार की अनुमति लिए किसी भी स्थानीय संस्था को धन देने पर रोक लगा दी थी.

संयुक्त राष्ट्र के तीन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने नई दिल्ली से भारत के एफसीआरए कानून को निरस्त करने की मांग की है. उनकी दलील है कि इससे आम नागरिकों को विदेशी फंडिंग से मिल रही मदद के रास्ते में रुकावटें आएंगी. 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से अब तक भारत के 10,000 से अधिक सिविल सोसायटी समूहों के विदेशी फंड स्वीकार करने के लाइसेंस रद्द या स्थगित किए जा चुके हैं. स्वास्थ्य से लेकर पर्यावरण तक तमाम क्षेत्रों में काम करने वाले इन समूहों ने काम जारी रखने में आ रही दिक्कतों के बारे में बताया है.

सरकार का इन समूहों पर आरोप है कि ये एफसीआरए का उल्लंघन करती हैं और यह "राष्ट्रविरोधी" गतिविधियों में विदेश धन का इस्तेमाल करती हैं. सरकारी अनुमान के अनुसार भारत में करीब बीस लाख चैरिटी संस्थाएं हैं. 2013 तक इनमें से करीब 43,500 समूह ऐसी चैरिटी के रूप में पंजीकृत थीं, जो विदेशी फंड ले सकती हैं. तुर्की और रूस जैसे देशों में भी विदेशी फंड लेने वाले समाजसेवी संस्थानों पर गाज गिरी है.