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समय बीतता है पर अपराध नहीं

अलेक्जांडर फ्रॉएंड/एमजे१४ अगस्त २०१५

आत्मसमर्पण की 70वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री शिंजो आबे का भाषण कुछ स्वीकारोक्तियों के अलावा मेलमिलाप वाला भाषण नहीं था. डॉयचे वेले के अलेक्जांडर फ्रॉएंड का कहना है कि इसकी राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री से उम्मीद भी नहीं थी.

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तस्वीर: Reuters/Toru Hanai

शिंजो आबे ने काफी समय तक बचने की कोशिश की, लेकिन फिर आलोचना के कुछ शब्द बोले जिसकी उनके पड़ोसी अपेक्षा कर रहे थे. उन्होंने गहरे पछतावे और अफसोस और दिली माफी की बात की, उन्होंने स्वीकार किया कि जापान इस बड़ी तकलीफ का कारण था और उन लाखों पीड़ितों को याद किया जो जापानी हमलों में मारे गए. ये वे मुख्य शब्द थे जिन्हें आबे को बोलना ही था. यह महत्वपूर्ण था क्योंकि वे और गोल मोल करने की हालत में नहीं थे. उन्हें जापान के ऐतिहासिक जुर्म को स्वीकार करना ही था. लेकिन शुरुआती अहसास छलावा है क्योंकि यह भाषण मेलमिलाप वाला भाषण नहीं था, जिसका पड़ोसी सालों से इंतजार कर रहे हैं. यह व्यावहारिक भाषण था जो भविष्य पर लक्षित है. उन्होंने दसियों हजार कोरियाई महिलाओं को सेक्स के दास बनाने के लिए माफी नहीं मांगी बल्कि मोर्चे के दोनों ओर हजारों महिलाओं की तकलीफ की बात की. अस्पष्ट शब्दों से भरोसा नहीं पैदा किया जा सकता.

भले ही आबे का भाषण पड़ोसी कोरिया और चीन की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा हो लेकिन वह सोचसमझ कर दिया गया. उसने जापानी आक्रमण को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में दिखाया, पश्चिमी देशों की औपनिवेशिक नीति की ओर इशारा किया. तात्पर्य यह था कि ये देखो, जापान अकेला नहीं था, दूसरे भी ऐसा ही कर रहे थे. उन्होंने जापान द्वारा किए गए अत्याचार की चर्चा की लेकिन साथ ही जापान के लोगों की भारी संख्या में मौत की भी चर्चा की और कहा कि परमाणु हमले का शिकार होने वाला जापान अकेला देश है. उन्होंने कहा कि जापान अपराधी भी था और शिकार भी. और उन्होंने इस बात के लिए भी आभार व्यक्त किया कि दूसरे देशों की मदद से जापान इस मलबे से बाहर निकल पाया है.

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अलेक्जांडर फ्रॉएंड

इतिहास स्मृति में है लेकिन फिलहाल चुनौती बेहतर भविष्य बनाने की है जिसमें जापान महत्वपूर्ण स्थान लेना चाहता है. अतीत के गहरे साए के बावजूद आबे जापान को पुरानी मजबूती देना चाहते हैं, आर्थिक और सुरक्षात्मक. वे अमेरिका से स्वतंत्र होना चाहते हैं, प्रतिद्वंद्वी चीन का मुकाबला करना चाहते हैं और इसके लिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और शांति समर्थन संविधान बदलवाना चाहते हैं, भले ही बहुमत उसके खिलाफ क्यों न हो.

संभव है कि शिंजो आबे ने इस पृष्ठभूमि में एक ऐतिहासिक मौका गंवा दिया है. लेकिन मेलमिलाप की शर्तें इस समय यूं भी बहुत खराब हैं. सिर्फ जापान से ही नहीं चीन और कोरिया से भी राष्ट्रवादी आवाजें आ रही हैं. दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति पार्क देश पर कब्जा करने वाले जापान से दूरी बनाने की कोशिश कर रही हैं तो उत्तर कोरिया यूं भी अति राष्ट्रवाद की बदौलत अस्तित्व में है और अमेरिका तथा जापान के लिए मुख्य दुश्मन की भूमिका निभा रहा है. चीन में राष्ट्रवाद उभर रहा है जो सिर्फ दक्षिणी चीन सागर के विवाद में ही नहीं दिख रहा. हो सकता है कि आर्थिक विकास धीमा होने पर चीन इसे और हवा दे क्योंकि आर्थिक विकास और राष्ट्रवाद ही नेतृत्व को वैधता देते हैं.

संकटों को भरोसे का माहौल होने पर ही निबटाया जा सकता है. लेकिन भरोसे के लिए पुराने विवादों का समाधान जरूरी है. और यहां जापान ने मूल्यवान समय गंवा दिया है. अच्छे बोल के बाद अब कुछ करने की बारी है. मेलजोल पुराने घावों को भरने में योगदान दे सकता है. लेकिन जख्म रहेंगे क्योंकि सिर्फ समय बीतता है पर अपराध नहीं.