1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

समीक्षाः एक गहरा फासला

फिलिप बिल्स्की/एमजे२३ अक्टूबर २०१४

"हम इस बात पर एकमत हैं कि हम एकमत नहीं हैं." यह हांग कांग में आंदोलन कर रहे छात्रों और सरकार के बीच चिरप्रतीक्षित बातचीत का नतीजा है. डॉयचे वेले के फिलिप बिल्स्की का कहना है कि छात्रों का आंदोलन जारी रहेगा.

https://p.dw.com/p/1DZvx
तस्वीर: picture-alliance/dpa

यह माना जा सकता है कि बैठक की सीटों ने ही बातचीत का नतीजा तय कर दिया था. हांग कांग की सरकार और छात्रों के प्रतिनिधि गोल मेज पर नहीं बैठे थे. एक पक्ष बाईं ओर बैठा था तो दूसरा कुछ दूरी पर दूसरी ओर. उनके बीच लंबी सी खाई. और इसी तरह दोनों पक्ष एक दूसरे से अलग हुए. सहमति की कोई उम्मीद नहीं. क्या बातचीत का कोई फायदा है, इसके बारे में छात्र बाद में फैसला करेंगे.

हालांकि हांग कांग की सरकार की ओर संकेत थे कि कम से कम आंदोलनकारियों के साथ सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी. सरकार प्रमुख लियुंग चुन यिंग ने बातचीत से पहले कहा था कि हांग कांग के प्रशासन प्रमुख के पद के लिए उम्मीदवारों का चयन करने वाली समिति को लोकतांत्रिक बनाने की संभावना है. सरकार की वार्ताकार कैरी लैम ने भी बातचीत के दौरान ऐसा ही कहा कि राष्ट्रीय संसद द्वारा दी गई सीमा कुछ संभावना देती है. 2017 के लिए चुनाव सुधार कोई अंतिम सीमा नहीं है. मतलब यह कि भावी चुनावों के लिए और लोकतांत्रिक सुधार संभव है.

आदर्श बनाम हकीकत

Philipp Bilsky
तस्वीर: DW/M.Müller

हांग कांग की सरकार ने इतना ही साफ कर दिया कि एक सचमुच का लोकतांत्रिक चुनाव, जिसमें उम्मीदवारों के पूर्व चयन न हो, फिलहाल नहीं होगा. दलील यह है कि 1997 में हांग कांग को सौंपे जाने के समय तय संविधान में एक प्रतिनिधि उम्मीदवारी समिति द्वारा उम्मीदवारों के पूर्व चयन का प्रावधान है. हांग कांग कोई स्वतंत्र देश नहीं बल्कि चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है. सिर्फ आदर्शों का होना ही पर्याप्त नहीं है, हकीकत पर भी विचार करना होगा.

छात्र नेताओं का रुख अब क्या होगा, आने वाले दिनों में पता चलेगा. लेकिन शुरुआती बयान साफ करते हैं कि छात्रों के नजरिए से छोटे अस्पष्ट कदम काफी नहीं हैं. और यदि छात्र संगठन सैद्धांतिक रूप से समझौते के लिए यानि लोकतंत्र की दिशा में छोटे कदम को मानने के लिए तैयार भी हो जाते हैं, तो भी यह सड़क की स्थिति में बहुत बदलाव नहीं लाएगा. आंदोलन ने बहुत पहले ही स्वतंत्र रूप अख्तियार कर लिया है.

धरना और मिर्ची गैस

आंदोलन की शुरुआत करने वाले छात्र संगठन और ऑक्युपाई सेंट्रल मूवमेंट अब सिर्फ आंदोलन को गति दे रहे हैं. सड़कों पर धरना दे रहे बहुत से छात्र सौ फीसद लोकतांत्रिक चुनावों की अपनी अधिकतम मांग से एक इंच भी पीछे नहीं हटना चाहते. ये हाल तब है जबकि उनमें से ज्यादातर खुद मानते हैं कि इस मांग पर आने वाले समय में अमल में नहीं हो सकता.

इसके क्या मायने हैं? हांग कांग में आने वाले समय में विवाद का अंत होता नहीं दिखता. संकेत सड़कों पर और धरना प्रदर्शनों और आंसू गैस तथा मिर्ची गैस के हैं.