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सरकारी पदों पर काबिज राजनीतिज्ञों की सीमाएं

कार्ला ब्लाइकर
१४ सितम्बर २०१७

एक जर्मन मेयर उग्र दक्षिणपंथ के खिलाफ अपने शहर का विरोध दिखाना चाहता था. उसने सार्वजनिक भवनों की बिजली गुल करने के आदेश दिए. अदालत ने कहा मेयर को ऐसा करने का अधिकार नहीं था.

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Deutschland Protest gegen Demo der Anti-Islam-Bewegeung "Dügida" in Düsseldorf
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Gerten

इमारतों की बिजली गुल करना इतना विवादास्पद पहले कभी नहीं रहा. बुधवार को जर्मनी के सर्वोच्च प्रशासनिक कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि डुसेलडॉर्फ के मेयर थॉमस गाइजेल का फैसला गैरकानूनी था, उन्हें शहर के पालिका भवन और दूसरी सरकारी इमारतों पर दक्षिणपंथी गुट के प्रदर्शन से पहले विरोध में बिजली काटने का कोई अधिकार नहीं था. अदालत ने ये भी कहा है मेयर के रूप में उनका दक्षिणपंथी रैली के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में भाग लेने के लिए नागरिकों से आह्वान करना भी गैरकानूनी था.

यह फैसला पश्चिम में इस्लामीकरण के खिलाफ डुसेलडॉ़र्फ के निवासियों के संगठन डुगिडा की मेलानी डीटमर के लिए एक जीत है जिन्होंने मेयर के कदमों के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी है. अदालत का यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है कि जर्मनी में संसदीय चुनाव होने वाले हैं और डुगिडा या पेगिडा समर्थक चांसलर अंगेला मैर्केल की शरणार्थी नीति के विरोधी है. इन चुनावों में वे धुर दक्षिणपंथी एएफडी का समर्थन कर सकते हैं.

सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत ने अब अपने फैसले में कहा है कि लोकतंत्र में किसी पद के निर्वाचित अधिकारी को जनमत के निर्माण की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का हक नहीं है. उन्हें ऐसे बयान देने का भी हक नहीं है जिससे उनके विचारों से अलग विचार रखने वाले लोगों के साथ भेदभाव हो. प्रशासनिक मामलों के न्यायाधीशों ने डुसलडॉर्फ के मेयर के प्रदर्शन में भाग लेने की अपील को इस सिद्धांत का हनन पाया. उन्हें बिजली गुल करने का भी कोई हक नहीं था. अदालत के अनुसार ये कदम "डुसेलडॉर्फ के मामलों को वस्तुपरक और तार्किक ढंग से निबटाने" के मेयर के अधिकार के बाहर था.

बत्ती गुल पहल

जनवरी 2015 को मध्यमार्गी वामपंथी एसपीडी पार्टी के मेयर थॉमस गाइजेल ने डुगिडा के मार्च से पहले डुसेलडॉर्फ के पालिका भवन, राइन टॉवर और ओल्ड कासेल टॉवर की बत्तियां बुझवा दीं. यह कदम और साथ ही दुकानदारों और नागरिकों से बत्ती गुल पहल में शामिल होने की अपील विदेशी विरोधी डुगिडा के खिलाफ सांकेतिक कदम था.

Düsseldorfs Oberbürgermeister Thomas Geisel
मेयर थॉमस गाइजेलतस्वीर: Picture alliance/dpa/Revierfoto

डुगिडा के अधिकारियों ने इस फैसले के खिलाफ मुकदमा किया. नवंबर 2016 में इस मामले में एक उच्च प्रशासनिक अदालत ने फैसला दिया था कि गाइजेल की नागरिकों से प्रदर्शन में शामिल होने के लिए की गयी अपील उनके अधिकार क्षेत्र में थी. लेकिन उनकी बत्ती गुल पहलकदमी वस्तुपरकता के नियम का हनन थी. बिजली को ऑफ करना उनके मेयर के अधिकार से बाहर था. मौजूदा घटनाओं और मुद्दों पर मेयर शांत और वस्तुपरक तरीके से फैसला ले सकता है, लेकिन बिजली बंद कर और नागरिकों से ऐसा ही करने की अपील कर गाइजेल ने राजनीति संवाद का इलाका छोड़ दिया जो बौद्धिक बहस तक सीमित है.

मेयर की अपील

उच्च न्यायलय के फैसले से थॉमस गाइजेल संतुष्ट नहीं थे. वे फैसले की इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे कि बत्ती गुल करने का फैसला गलत था लेकिन प्रदर्शन में भाग लने की अपील सही थी. उन्होंने कोलोन, हनोवर और बर्लिन शहरों की ओर ध्यान दिलाया जहां इस तरह के प्रदर्शनों से पहले बत्ती धीमी कर दी गयी थी.

शुरुआती फैसले के बाद एसपीडी के स्थानीय राजनीतिज्ञों और दूसरे सामाजिक संगठनों के अधिकारियों ने भी मेयर का समर्थन किया. उनमें से एक शहर की यहूदी सोसायटी के मिशाएल शेंटेल हाइजे थे जिनका कहना था कि राजनीतिक मर्यादा शांत और वस्तुपरक रहने से ज्यादा महत्वपूर्ण है.

Deutschland Pegida-Demo in Dresden
पेगिडा समर्थक ड्रेसडेन में सक्रियतस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Killing

क्या है डुगिडा

डुगिडा मुस्लिम विरोधी और सेनोफोबिक पेगिडा आंदोलन के तर्ज पर बना संगठन था. इसकी स्थापना 2014 में हुई लेकिन दिसंबर 2015 में वह खत्म हो गयी. तब मुख्य आयोजक डिटमर ने हर हफ्ते होने वाली रैलियों को बंद करने की घोषणा की. अप्रैल 2016 में डिटमर को राष्ट्रद्रोह के आरोप में आठ महीने की निलंबित कैद की सजा सुनाई गयी. उनके द्वारा आयोजित रैली नमाज के दौरान एक मस्जिद के पास से गुजरी और डिटमर ने चिल्लाकर मुसलमानों को "सलाफी सूअर" और "पेडोफील" कहा.

यूरोप में मुसलमानों का विरोध कर रहे लोगों के संगठन पेगिडा ने 2014 में जर्मन शहर ड्रेसडेन में हर सोमवार को रैलियों का सिलसिला शुरू किया था. यह आंदोलन 2015 में अपने चरम पर पहुंचा जब हर हफ्ते करीब 20,000 लोग रात में होने वाली रैलियों में शामिल होने लगे. इनके खिलाफ होने वाली रैलियों की वजह से इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सुर्खियां मिलीं. इस बीच पेगिडा आंदोलन का समर्थन कम हुआ है और उसके करीब 2000 समर्थक माने जाते हैं.