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सर्न के एलान से झूमे भारतीय रिसर्चर

Priya Esselborn५ जुलाई २०१२

सर्न प्रयोगशाला में जिस वक्त हिग्स बोसोन को लेकर बड़ा एलान हो रहा था, भारतीय रिसर्चरों का एक जत्था जर्मनी के लिंडाऊ शहर में भौतिकी के नोबेल विजेताओं के सम्मेलन में था. उनके लिए तो जैसे सोने पर सुहागा हो गया.

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तस्वीर: DW

अहमदाबाद के आकाशरूप बनर्जी 52 दिनों तक सर्न में युवा लैब में रिसर्चर के तौर पर काम कर चुके हैं. उनका कहना है सर्न में काम करते हुए ही यह पक्का हो गया था कि यह दिन आना है. लेकिन यह दिन आज होगा, नहीं सोचा था.

बनर्जी इसे विज्ञान का खजाना बताते हुए कहते हैं, “मैं तो यह सोचता हूं कि अगर यह गलत साबित होता तो क्या होता. 20 साल की मेहनत बेकार चली जाती. आज इस बात की खुशी है कि हम सही दिशा में बढ़े हैं, हालांकि मंजिल तक अभी नहीं पहुंच पाए हैं.” उनका मानना है कि हिग्स कण को लेकर अभी कुछ गहन प्रयोग बाकी हैं.

भारत के 23 साल के इस युवा भौतिकी रिसर्चर ने बताया कि सर्न में जिस तरह काम होता है, वह अद्भुत है, “काम के वक्त विज्ञानी लगे रहते हैं. लेकिन अगर आप छुट्टी के दिन सर्न जाएं तो पता ही नहीं लगेगा कि यहां इतना बड़ा प्रयोग चल रहा है. लोग टेनिस खेलते हैं, पार्टी करते हैं. जिंदगी का मजा लेते हुए काम करते हैं.” सर्न प्रयोगशाला में जमा करीब 10,000 विज्ञानियों की मेहनत के बाद बुधवार को नए कण को खोज निकालने का एलान हुआ, जो बरसों से तलाशे जा रहे हिग्स कण सा लगता है. हालांकि विज्ञानियों का कहना है कि पक्के तौर पर बताने में अभी वक्त लगेगा.

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लिंडाऊ पहुंचे भारतीय रिसर्चरतस्वीर: DW

खगोलीय दुनिया के नए रहस्य सुलझाने में लगे सूरत के चरितार्थ व्यास भी भारतीय दल के साथ लिंडाऊ के नोबेल सम्मेलन में हैं. उन्हें लगता है कि यह कभी न भूलने वाला दिन साबित होगा. 23 साल के व्यास कहते हैं, “आज से अगर 20 साल बाद देखेंगे तब पता चलेगा कि यह कितना बड़ा समय था. तब लगेगा कि इसी खोज से तो पूरा भौतिकशास्त्र बदल गया.”

लिंडाऊ में हर साल विज्ञान का नोबेल जीतने वाले विज्ञानियों का सम्मेलन होता है, जहां युवा विज्ञानी और रिसर्चर भी शामिल होते हैं. इस साल 27 नोबेल पुरस्कार विजेताओं के अलावा दुनिया भर की 592 युवा प्रतिभाएं यहां आई हैं. भारत सरकार के विज्ञान तकनीक विभाग और जर्मन रिसर्च फाउंडेशन डीएफजी के प्रायोजन में 18 भारतीय युवा रिसर्चर इसमें हिस्सा ले रहे हैं. जर्मनी और दूसरे देशों में रिसर्च कर रहे भारतीय भी यहां मौजूद हैं.

विनम्रिता सिंह दिल्ली यूनिवर्सिटी की फीजिक्स और एस्ट्रोफीजिक्स विभाग में रिसर्चर हैं. 12वीं तक की पढ़ाई अमेरिका में करने वाली विनम्रिता का कहना है, “यह तो ऐसा लग रहा है कि किसी ने मेरी आइसक्रीम पर एक चेरी और रख दी हो. लिंडाऊ आना ही अपने आप में बड़ी बात है और ऊपर से ऐसे वक्त में सर्न का यह एलान बहुत खुशगवार है.”

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तस्वीर: DW

हालांकि दूसरों की तरह वह भी इसे पक्के तौर पर हिग्स कण कहने से बच गईं, “कोई भी नई खोज विज्ञान के लिए बहुत जरूरी होती है. हो सकता है कि इसका अभी फायदा नजर न आए लेकिन आने वाले दिनों में यह बहुत अहम साबित हो सकता है.”

भारतीय मूल के डॉक्टर प्रशांत जैन अमेरिका के लोस अलामोस नेशनल लेबोरेट्री में नई धातु पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्हें इस बात की खुशी है कि वह इस दिन नोबेल विजेताओं के साथ हैं, “यह बड़ा खूबसूरत दिन रहा. उधर सर्न ने नए कण के बारे में बताया और इधर सर्न में काम कर चुके डॉक्टर कार्लो रूबिया ने इसकी बारीकी बताई. मजा आ गया.”

लिंडाऊ सम्मेलन की खास बात यह है कि युवा रिसर्चर और वैज्ञानिक यहां सिर्फ एक बार हिस्सा ले सकते हैं. ऐसे में जब डॉक्टर प्रत्यूष दास कानूनगो को 2012 में मौका मिला है, तो उनका खुश होना वाजिब है, “यह शायद ही कभी होता है कि आप इस तरह के सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं और इतना बड़ा नतीजा आता है. मुझे बहुत खुशी है कि नोबेल विजेताओं के साथ रहने से मुझे इसके बारे में पूरी जानकारी मिल सकी.”

जर्मनी में पढ़ाई कर चुके कानूनगो इन दिनों स्विट्जरलैंड में रिसर्च कर रहे हैं.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, लिंडाऊ (जर्मनी)

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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