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सही ढंग से नहीं लागू हो रहा आरटीई

विश्वरत्न श्रीवास्तव११ मार्च २०१६

सभी को शिक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से लागू किया गया शिक्षा का अधिकार अपेक्षित परिणाम देने में असफल रहा है. पिछले साल देशभर में सुविधाओं से वंचित छात्रों के लिए आरक्षित कुल सीटों में से महज 15 फीसदी सीटें ही भरी गयी.

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Indien Schüler Symbolbild
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Hussain

भारत में शिक्षा का अधिकार कानून शायद सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा है. इस कानून के तहत निजी गैर सहायता प्राप्त नॉन-माइनॉरिटी स्कूलों में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े बच्चों को 25 फीसदी आरक्षण देना अनिवार्य है, जिसका पालन नहीं किया गया है. शिक्षा का अधिकार कानून यानी आरटीई एक्ट पर 2014-2015 के लिए आयी रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केवल 21 फीसदी उपयुक्त स्कूलों ने इस एक्ट के तहत छात्रों को अपने यहां प्रवेश दिया.

क्या कहती है रिपोर्ट

ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल सुविधाओं से वंचित छात्रों को स्कूल तक पहुंचाने में इस कानून को अपेक्षित सफलता नहीं मिली. स्कूलों में वंचित वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटों में से महज 15 फीसदी सीटें ही भरीं. 'स्टेट ऑफ द नेशन: आरटीई सेक्शन शीर्षक वाली रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्यों की ओर संकेत किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार आरटीई एक्ट का पालन पूरे देश में ठीक तरीके से नहीं हो पा रहा है.

Indien Schule
तस्वीर: picture-alliance/Robert Hardin

आरटीई एक्ट के तहत निजी गैर सहायता प्राप्त नॉन-माइनॉरिटी स्कूल्स में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े बच्चों को 25 फीसदी आरक्षण देना अनिवार्य कर दिया है. इस सेक्शन का पालन करने में केवल केवल 21 फीसदी स्कूलों ने तत्परता दिखाई. इन स्कूलों में आरक्षित सीटों पर सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिया गया. इस रिपोर्ट को हाल ही में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-अहमदाबाद के आरटीई रिसोर्स सेंटर, सेंट्रल स्क्वेयर फाउंडेशन, अकाउंटबिलिटी इनिशटिव और विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने जारी किया है.

रिपोर्ट में संकलित डेटा के मुताबिक 2014-15 में उपलब्ध करीब 22.9 लाख सीटों में से मोटे तौर पर 3.46 लाख सीटों को ही भरा गया, जो 15.12 प्रतिशत ही है. हालांकि 2013-14 के मुकाबले इसमें थोड़ा सुधार देखने को मिला है. 2013-14 में 21.8 लाख उपलब्ध सीटों में से केवल 3.2 लाख सीटें ही भरी गई थीं, जो कि 14.66 फीसदी ही है.

Mädchenschule in Indien
तस्वीर: picture-alliance/ZB

दिल्ली का प्रदर्शन बेहतर

भरने वाली सीटों के प्रतिशत के आधार पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में दिल्ली सबसे आगे है. यहां 44.61 फीसदी सीटों पर बच्चों को दाखिला दिया गया. राजस्थान (39.26 फीसदी), तमिलनाडु (37.75 फीसदी), छत्तीसगढ़ (32.94 फीसदी) और उत्तराखंड (31.96 फीसदी) भी बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल हैं. एक प्रतिशत से कम फिल रेट (भरने वाली सीटों का प्रतिशत) रखने वाले राज्यों को सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में रखा गया है. इसमें आंध्र प्रदेश (0%), तेलंगाना (0.01%), मिजोरम (0.21%), उत्तर प्रदेश (0.79%) और ओडिशा (0.97%) शामिल हैं. फिल रेट्स के मामले में रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ज्यादातर राज्यों के लिए अलग-अलग स्रोतों से आंकड़े रिकॉर्ड करने में काफी असमानता है. डाटा में असमानता के अलावा रिपोर्ट में उन चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है, जो कि इस प्रावधान के प्रभावी कार्यान्वयन में अड़चन डालती हैं.

क्या है दिक्कत

सेंट्रल स्क्वेयर फाउंडेशन के चेयरमैन आशीष धवन के अनुसार 'ज्यादातर राज्यों में या तो अस्पष्ट नियम या दिशानिर्देश हैं या फिर वे इस प्रावधान को अपने यहां लागू नहीं कर रहे हैं. वहीँ शिक्षाशास्त्री प्रोफेसर ए के हरुरे का मानना है कि आरटीई एक्ट के पालन में प्राइवेट स्कूलों की कोई रूचि नहीं है. कानून के दबाव के चलते अगर वहां बच्चों को प्रवेश मिल भी जाय तो भी वहां छात्र ज्यादा समय नहीं टिक पाता. सामाजिक और आर्थिक वर्ग समान ना होने से छात्र में हीन भावना आने का खतरा रहता है. इससे स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है.

Modernes Indien, Schulbildung
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मनोविज्ञान की प्राध्यापक और ड्रॉप आउट के कारणों पर अध्ययन कर चुकीं डॉ. प्रियम्बदा शिव कुमार का कहना है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग में शिक्षा को लेकर जागरुकता का अभाव है. उनके अनुसार ग्रामीण इलाकों में जागरुकता के स्तर को बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है. वहीँ प्राइवेट स्कूल खासतौर पर छोटे बजट के स्कूल राइट टु एजुकेशन एक्ट के कई प्रावधानों से मुश्किल में हैं. नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (नीसा) ने आरटीई एक्ट के कई प्रावधानों को शिक्षा व्यवस्था के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला बताया है. नीसा के अनुसार छोटे बजट वाले स्कूलों पर इतने नियम थोपे जा रहे हैं जिससे प्रबंधकों के पास स्कूल बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता.