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समाज

साथ खाना खाने से भी आती है बराबरी

२५ नवम्बर २०१७

भारत के गांवों में रहने वाली औरतें आमतौर पर घर में सबको खिलाने के बाद खुद खाती हैं, इसका नतीजा है उनकी खराब सेहत और कुपोषण. साथ ही घर, पैसा और संपत्ति के बारे में होने वाली चर्चा में भी उनकी बहुत भूमिका नहीं होती.

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तस्वीर: Reuters

राजस्थान में महिलाओं का स्वास्थ्य सुधारने के काम में जुटी एक परियोजना में गरीब कबायली समुदाय की महिलाओं को इस परंपरा को बदल कर परिवार के साथ खाने के लिए कहा गया है. 2015 में फ्रीडम फ्रॉम हंगर इंडिया ट्रस्ट और ग्रामीण फाउंडेशन ने राजस्थान न्यूट्रीशन प्रोजेक्ट शुरू किया. परियोजना से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सिर्फ ऐसा करने भर से ना सिर्फ महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ, बल्कि पुरुषों में लैंगिक समानता को लेकर जागरूकता भी बढ़ी. फ्रीडम फ्रॉम हंगर इंडिया ट्रस्ट की प्रमुख कार्यकारी अधिकारी सरस्वती राव कहती हैं, "जब महिलाओं के स्वास्थ्य की बात होती है तो हर कोई जानता है कि औरतें सबसे आखिर में और सबसे कम खाती हैं. लेकिन इसे पहले कभी बदलने की कोशिश नहीं हुई." राव ने बताया, "हमने पुरुषों और महिलाओँ को शामिल कर खासतौर पर इससे निपटने का फैसला किया. उन्हें दिखाया कि जब महिलाएं अकेले खाती हैं तो वे कैसे खाती हैं, कितना कम खाती हैं. हम उन्हें दिखाना चाहते थे कि साथ खायें तो सबका फायदा है."

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तस्वीर: imago/imagebroker

भारत के गरीब राज्यों में से एक राजस्थान अपने महलों और रंगीन लिबासों के साथ ही सदियों पुराने पितृसत्तात्मक रिवाजों के लिए भी विख्यात है. यहां महिलाओं की शिक्षा दर बहुत कम है और बाल विवाह की दर बहुत ज्यादा. राव बताती हैं कि हाल ही में पोषण परियोजना में भाग लेने वाले 8,500 परिवारों में 400 पर किये सर्वे में पता चला कि महिलाओं और बच्चों की सेहत में सुधार हुआ है. महिलाओं ने यह भी कहा कि उन्हें अब पतियों से कम डर लगता है और वे घर से जुड़े फैसलों जैसे कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और संपत्ति के मामले में लिए फैसलों में ज्यादा हिस्सा लेती हैं.

भारत का कानून महिलाओं को समान रूप से संपत्ति का वारिस मानता है लेकिन राजस्थान जैसे राज्यों में विवाहित महिलाओं को अपना अधिकार छोड़ना पड़ता है. यहां "हक त्याग" नाम की एक परंपरा चली आ रही है जिसके तहत महिलाएं ऐसा करती हैं.

जयपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर वर्षा जोशी कहती हैं कि जिन रिवाजों को मिटाने से ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला, उन्हें मिटा कर भी बहुत सुधार हो सकता है. रॉयटर्स से बातचीत में उन्होंने कहा, "महिलाओं को उनके पतियों के साथ खिलाना एक बड़ी उपलब्धि है. इसने महिलाओं को पीछे रखने वाली एक परंपरा को तोड़ा है. अगर उन्हें तुरंत संपत्ति नहीं मिलती है तो भी चलेगा आखिरकार वो कम से कम इसके बारे में बात तो कर रही हैं और पुरुष इन परंपराओं में होने वाले अन्याय को देख रहे हैं."

एनआर/आईबी (रॉयटर्स)