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साथ न आतीं तो पगार कैसे बढ़ती

१४ दिसम्बर २०१४

पांच बच्चों की मां अजीमा खातून ने अपनी ज्यादातर जिंदगी पाकिस्तान में कपास के खेतों में बिता दी. कड़ी धूप में दिन भर की मेहनत के बदले करीब 100 रुपये. लेकिन पिछले साल की घटना ने हालात बदल दिए.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

साल भर पहले अजीमा ने अपनी 40 साथियों के साथ ऐसा कदम उठाया जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी. उन्हीं की तरह बच्चों को पालने के लिए कठिन परिश्रम से जूझ रही ग्रामीण महिलाएं धरने पर बैठ गईं. कपास के खेतों के मालिक इसके लिए तैयार नहीं थे. खातून बताती हैं पिछले एक साल में उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो गई है.

चीन, भारत और अमेरिका के बाद पाकिस्तान दुनिया में कपास को चौथा बड़ा उत्पादक है. उत्पादन में पाकिस्तान की 5 लाख गरीब महिलाओं का बड़ा योगदान है, जो बेहद खराब हालात में जी रही हैं. अजीमा ने बताया पाकिस्तान के दक्षिण पूर्वी इलाके सिंध के खेतों में वे थोड़े से पैसों के लिए घंटों काम करती हैं, "मिलकर विरोध करने से पहले हम अपने काम से कोई मुनाफा नहीं कमा पाते थे. हमने एक साथ फैसला किया कि हम कम पैसों पर काम नहीं करेंगे."

एशिया के अन्य देशों की ही तरह पाकिस्तान भी ऐसा देश है जहां कृषि संबंधी कार्यों के लिए दिहाड़ी बेहद कम है. ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय विकास एवं मानवीय थिंक टैंक ओवरसीज डेवेलपमेंट इंस्टीट्यूट (ओडीआई) की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 सालों में इसमें बढ़ोत्तरी के बजाए कमी हुई है. पाकिस्तान में कृषि उत्पादकता बिजली की किल्लत से प्रभावित हुई है. जमींदार आज भी बेहद ताकतवर हैं और मनमानी करते हैं.

Bildergallarie Baumwolle in Afghanistan
खेती में दिहाड़ी बहुत कमतस्वीर: Getty Images/Afp/Noorullah Shirzada

रोजमर्रा समस्याएं

पाकिस्तान में कृषि कार्यों में कम आमदनी से ग्रामीण महिलाएं और उनके परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के मुताबिक पाकिस्तान में 74 फीसदी कामकाजी महिलाएं 15 साल की हैं और कृषि कार्यों में लगी हैं. 2014 की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान लिंग असमानता के लिए दुनिया भर के देशों के बीच दूसरे पायदान पर है. पहले स्थान पर यमन है.

कई महिलाएं अनौपचारिक तरीके से कम वेतन पर काम पर रखी गई हैं. उनकी सुरक्षा के इंतजाम भी नहीं हैं. ओडीआई की एशियाई देशों पर आधारित ग्रामीण वेतनों पर रिपोर्ट में पाया गया कि 2007 के मुकाबले 2012 में उनके दैनिक वेतन में भी कमी हुई है. कई महिलाओं ने शिकायत की कि मालिक या जमींदार उनके साथ अक्सर धोखाधड़ी भी करते हैं क्योंकि वे पढ़ लिख नहीं सकतीं. कई जगह मालिक उनका यौन शोषण भी करते हैं.

काम करना भी आसान नहीं, तमाम मुश्किलों से भरा है. कभी तेज लू के थपेड़े तो कभी सर्पदंश. कीटनाशकों के कारण अक्सर उनके हाथ खराब हो जाते हैं. अजीमा और उनकी साथी महिलाएं अक्सर अपने साथ बच्चों को ले आती हैं ताकि वे उनकी साड़ी में गांठ बांध कर हिसाब रख सकें कि उन्होंने कितने दिन काम किया.

Bildergallarie Baumwolle in Afghanistan
मंदी की मार झेलता कपास उद्योगतस्वीर: Getty Images/Afp/Noorullah Shirzada

अधिकारों की लड़ाई

इन महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था सिंध कम्युनिटी फाउंडेशन के प्रमुख जावेद हुसैन ने बताया, "हालांकि वे पढ़ लिख नहीं सकतीं लेकिन वे गांठें गिनकर बता सकती हैं कि उन्होंने कितने दिन काम किया है." संस्था ने अब तक 2,600 महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया है. वे इन महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखा रहे हैं.

पाकिस्तान की केंद्रीय कपास कमेटी के निदेशक मुहम्मद अली तालपुर बताते हैं, "कपास निर्माताओं के लिए यह मंदी का समय है, उनके लिए यह मुश्किल घड़ी है." उन्होंने बताया कि उन्हें कर्मचारियों से हमदर्दी है लेकिन उन्हें ज्यादा पैसे देना मालिकों के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है. बाजार में कृत्रिम फाइबर की बढ़ती लोकप्रियता से कपास की मांग घटी है. इसी कारण कपास के अंतरराष्ट्रीय दाम में गिरावट हुई है.

कराची से 225 किलोमीटर दूर मीरानपुर में कपास फैक्ट्री के मालिक करीमुल्लाह ने बताया कि उन्होंने अपनी फैक्ट्री में कर्मचारियों की दिहाड़ी बढ़ाकर करीब 200 रुपये कर दी है लेकिन वह अब इसके आगे तब तक नहीं बढ़ा सकते जब तक कपास के दाम ऊपर नहीं चढ़ते.

एसएफ/ओएसजे (रॉयटर्स)