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साफ पानी पाना अब मानवाधिकार

२९ जुलाई २०१०

संयुक्त राष्ट्र ने स्वच्छ पानी पाने के अधिकार को मानवाधिकार घोषित किया है. महासभा ने इस संबंध में एक प्रस्ताव शून्य के ख़िलाफ़ 122 मतों से पास कर दिया.

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साफ पानी का अधिकारतस्वीर: bilderbox

साफ पानी पी सकने के अधिकार का विरोध तो किसी ने नहीं किया लेकिन 41 देश तटस्थ रहे, जिनमें अमेरिका और कुछ दूसरे पश्चिमी देश भी शामिल थे. इसे मानवाधिकार बनाने का समर्थन करने वालों में जर्मनी, बेल्जियम, इटली, स्पेन और नॉर्वे भी थे.

बोलिविया ने ये प्रस्ताव पेश किया जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि दुनिया भर में अनुमानतः 88 करोड़ से ज्यादा लोगों को साफ पीने का पानी नहीं मिलता. 2.6 अरब लोगों के पास स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं नहीं हैं. प्रस्ताव में सदस्य देशों और संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं से मांग की गई है कि वे सभी लोगों को साफ पानी और स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराने में गरीब देशों की मदद करे.

बोलिविया के संयुक्त राष्ट्र दूत ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि दुनिया भर में हर साल 35 लाख लोग गंदे पानी की वजह से मरते हैं. साफ़ पानी का अधिकार अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यकारी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र ने 2000 में पेयजल से वंचित लोगों की संख्या 2015 तक घटाकर आधी करने का लक्ष्य तय किया था.

जर्मन मानवाधिकार संस्थान की डाइरेक्टर बेआटे रूडॉल्फ ने साफ पानी के अधिकार को नया मानवाधिकार बनाने का स्वागत किया है और कहा है कि सभी देशों के इस अधिकार को मान्यता दिए जाने की राह में यह एक महत्वपूर्ण कदम है. रूडॉल्फ ने कहा कि पानी के मानवाधिकार बनने से देशों के बीच पानी को लेकर उठने वाले विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने में मदद मिल सकेगी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: एन रंजन