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सिंहों पर मंडराता संकट

११ मार्च २०१०

हाल ही में जारी हुई वन्य प्राणियों की गणना के अनुसार बाघों की घटती संख्या के साथ ही एक और डराने वाला तथ्य सामने आया है और वह है एशियाई सिंहों की लगातार घटती संख्या.

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तस्वीर: AP

भारत में एशियाई सिंह (पेंथरा लियो पर्सिका) के अंतिम और एकमात्र शरणस्थली गुजरात के विश्व प्रसिद्ध गीर नेशनल पार्क में पिछले दो साल में 72 शेरों की मौत हो चुकी है और अब वहां केवल 291 शेर ही शेष हैं. अप्रैल 2005 की गणना के मुताबिक़ गीर में 359 सिंह बताए गए थे जो 2001 की गणना से 32 ज़्यादा थे.
गुजरात विधानसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि पिछले दो सालों में प्राकृतिक कारणों से 71 शेरों की मौत हो गई जबकि एक शेर को शिकारियों ने मार गिराया. वर्तमान में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ जूनागढ़, अमरेली और भावनगर जिलों में फैले गीर के पूरे जंगल में 68 शेर, 100 शेरनियां और 123 सिंह शावक ही शेष हैं.
पूरी दुनिया में सासन गीर नेशनल पार्क ही एक मात्र ऐसा स्‍थान है जहां प्रसिद्ध एशियाई शेर पाए जाते हैं. गीर नेशनल पार्क एक ऐसी जगह है जहां शेरों को उनके प्राकृतिक अधिवास में देखा जा सकता है. इसे 1965 में आरक्षित वन घोषित किया गया था, जिसका प्राथमिक उद्देश्‍य 2450 हेक्‍टेयर भूमि पर एशियाई शेरों का संरक्षण करना था.
गीर नेशनल पार्क सौराष्ट्र के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित है. यह पार्क 1412.13 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है. इस क्षेत्र के पथरीले एवं पहाड़ी क्षेत्र जो कि शेरों का प्राकृतिक आवास है, में हाल ही हुई गणना के मुताबिक़ 291 सिंह रहते हैं. किसी ज़माने में उत्तरी अफ़्रीका, दक्षिण-पश्चिम एशिया तथा उत्तरी ग्रीस में भी सिंह पाए जाते थे.
कभी बहुतायत में पाया जाने वाला सिंह आज भारत में विलुप्ति के कगार पर है. भारत के अलावा सिंह सिर्फ़ दक्षिण अफ्रीका के घास के मैदान और पथरीले इलाक़ों में ही मिलते हैं. गीर नेशनल पार्क में इनके अलावा चिंकारा, नीलगाय, चीतल इत्यादि भी पाए जाते हैं.
नर शेर को शक्ति और साहस की साक्षात मूर्ति माना जाता है. संकट के समय सिंह अत्यधिक खूंखार हो जाते हैं. समूह में रहने और शिकार करने वाले शेरों के समूह को 'प्राइड' कहा जाता है. शेरों में शिकार का काम मादा का होता है, नर प्राइड की रक्षा करते हैं और बड़े शिकारों को घेर लिए जाने पर उन्हें मार गिराते हैं.
1873 तक अमीरों, शिकारियों व अंग्रेज़ों द्वारा 'ट्रॉफ़ी हंटिंग' के लालच में अंधाधुंध शिकार किए जाने पर शेरों की संख्या नगण्य रह गई थी, जिससे इनके लुप्त होने का खतरा बढ़ गया था. तेज़ी से कम होते शेरों की संख्या 1900 की शुरुआत में केवल 15 रह गई थी तब जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब द्वारा गीर वन क्षेत्र को शेरों के लिए आरक्षित कर उनके शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. शिकार किए जाने के अलावा शेरों के ख़त्म होने के कई प्राकृतिक कारण हैं जैसे- बाढ़, सूखा, जंगल की आग, नर शेरों में प्रतिद्वंद्विता और प्रभुत्व की लड़ाई.
सासन गीर नेशनल पार्क मिले-जुले पतझड़ वनों से ढके पर्वत हैं. यहां की जलवायु और प्राकृतिक आहार सिंहों के आवास के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं. हालांकि इसके अलावा भी भारतीय वन्यजीव संस्थान ने मध्यप्रदेश के पालपुर कूनो अभयारण्य को एशियाटिक लॉयन री-इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट के लिए अनुकूल पाया गया है.
इसके अलावा जूनागढ़ के सक्करबाग प्राणी संग्रहालय में चलाए जा रहे 'लॉयन ब्रीडिंग प्रोग्राम' के अंतर्गत अब तक 180 से ज्यादा शेरों का प्रजनन कराया जा चुका है. इनमें से अधिकांश को भारत के विभिन्न शहरों के चिड़ियाघरों और रक्षित अभयारण्यों में भेजा गया है. करोड़ों की लागत से आधुनिक जैनेटिक मैपिंग लैब तथा जीन बैंक बनाकर शेरों के डीएनए जमा करने की एक योजना भी बनाई गई है.
सरकारी संरक्षण, स्वयंसेवी संगठनों तथा वन्यजीव प्रेमियों के अथक प्रयासों से भारत में सिंह बचा तो लिए गए हैं पर सिर्फ़ एक ही जगह तक सीमित होने की वजह से किसी बीमारी या आपदा से इनके खत्म होने का ख़तरा लगातार बना हुआ है. साथ ही आम जनता को इनके बारे में अधिक जानकारी नहीं है.
फ़िलहाल ज़रूरत है इनके संरक्षण के लिए बनी योजनाओं के सही तरह से अमल में लाने की वरना वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी सिंह को सिर्फ सारनाथ की प्रतिमा में ही देख सकेगी.

Flashgalerie Tiger (Indien)
तस्वीर: AP
BdT 11.11.09 Lost and found: Löwe aus dem Circus Probst Flash-Format
तस्वीर: picture-alliance/dpa
Bdt Drei Monate alter Löwe in Bali, Indonesien
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सौजन्यः संदीप सिसोदिया (वेबदुनिया)

संपादनः ए कुमार