1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सीरियाः डर के साए में मदद

१८ सितम्बर २०१३

पश्चिमी देशों ने कहा है कि वे सीरिया के रासायनिक हथियारों पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की मांग करेंगे. इसके बाद सीरिया की सरकार ने पश्चिमी देशों पर अपनी इच्छा सीरिया की जनता पर थोपने का आरोप लगाया है.

https://p.dw.com/p/19jpQ
तस्वीर: Reuters

सीरियाई विदेश मंत्रालय ने एक बयान में पश्चिमी देशों पर सीरिया में जिहादियों के समर्थन का आरोप लगाते हुए कहा है, "अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने अपना असली लक्ष्य सामने ला दिया है, वह उनकी इच्छा सीरिया की जनता पर थोपना है." पश्चिमी देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के समर्थन का जवाब देते हुए रूस ने कहा है कि सीरिया से रासायनिक हथियार लेने के समझौते को लागू करने के लिए सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव यूएन चार्टर के अध्याय सात के तहत नहीं होगा जो बल प्रयोग की अनुमति देता है.

सीरिया पर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के बीच जारी विवाद के बीच सीरिया में घायलों की मदद कर रहे डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिक विवाद का शिकार हो रहे हैं और उन्हें दोनों ही पक्ष निशाना बना रहे हैं. रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट के कर्मियों के लिए स्थिति नाजुक होती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस की रीमा कमाल कहती हैं, "पिछले दिनों में हमलों और अपहरण में तेजी आई है." उन्हें डर है कि हालात और बिगड़ सकते हैं, "संघर्ष बढ़ रहा हैं, हमें चिंता है कि हमारे कर्मचारियों के लिए भी जोखिम बढ़ेगा."

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारी परिषद की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार सीरिया में डॉक्टरों और मेडिकल वैन पर गलती से नहीं बल्कि जानबूझकर गोलियां चलाई जाती हैं. अस्पतालों पर बमबारी की जा रही है और चिकित्साकर्मियों को डराया धमकाया जा रहा है. गृहयुद्ध से गंभीर रूप से प्रभावित दमिश्क के आसपास या होम्स जैसे कुछ इलाकों में स्वास्थ्य संस्थानों को भारी नुकसान हुआ है. डॉक्टर और नर्स या तो मारे गए हैं या भाग गए हैं.

Rotes Kreuz in Syrien
रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट के सहायक परेशानतस्वीर: AFP/GettyImages

चिकित्सा में बाधा

लड़ाई की शुरुआत से अभी तक रेड क्रिसेंट के 22 कर्मचारी मारे गए हैं. रेड क्रिसेंट अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस का सदस्य है और उसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत रेड क्रॉस जैसा ही दर्जा मिला हुआ है. उसके कर्मचारी हर विवाद में तटस्थ रहते हैं और इसके बदले उन्हें जरूरतमंदों को मदद कर सकने के लिए हर कहीं आने जाने की आजादी होती है. रीमा कमाल कहती हैं कि यह बस सिद्धांत भर है. "सीरिया की हकीकत कुछ और है. हम दो महीने से युद्धरत शहर होम्स की ओल्ड सिटी में पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं." शहर पर विद्रोहियों का कब्जा है और सरकारी सैनिकों ने उसे घेर रखा है. "हम स्थानीय अधिकारियों, सीरिया सरकार के प्रतिनिधियों और विभिन्न विपक्षी दलों के साथ वार्ता कर रहे हैं." लेकिन अब रेडक्रॉस को अपने कर्मियों के लिए सुरक्षा गारंटी पाने और होम्स के लोगों को चिकित्सा सुविधा देने में कामयाबी नहीं मिली है.

तटस्थता के लिए सहानुभूति नहीं

यही हाल दमिश्क के आस पास के इलाकों का भी है. अधिकांश इलाकों में छह महीने से किसी राहत संस्था को दान की अनुमति नहीं मिली है. कमाल बताती हैं, "रासायनिक हमले के बाद भी हमें उस इलाके में नहीं जाने दिया गया. सीरिया में रेड क्रिसेंट को भी लोगों को खाना और दवाएं देने के लिए उस इलाके में जाने की इजाजत नहीं है." रीमा कमाल की कोशिश है कि किसी पक्ष पर सीधे आरोप न लगाए जाएं. वे इसका ध्यान रख रही हैं कि रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट इस गंदे युद्ध में भी तटस्थ रहें. "मैं किसी पर अंगुली नहीं उठाउंगी, लेकिन हम इंसानों के चिकित्सीय मदद पाने के अधिकार पर बार बार जोर दे रहे हैं, चाहे वह घायल लड़ाका हो, असैनिक नागरिक हो, बच्चा हो या महिला हो."

Porträt - Prof. Dr. Hans-Joachim Heintze
डॉ हंस योआखिम हाइंत्सेतस्वीर: privat

जर्मन शहर बोखुम में शांति सुरक्षा संस्थान के प्रोफेसर हंस योआखिम हाइंत्से भी कहते हैं कि तटस्थता रेड क्रॉस के काम का सबसे महत्वपूर्ण आधार है. इसलिए रेड क्रॉस के लिए कभी भी यह सवाल नहीं होता कि कौन दोषी है या कौन अच्छा या बुरा है, बल्कि उनका एकमात्र सवाल होता है कि किसे मदद की जरूरत है. कम से कम अब तक देशों के बीच पारंपरिक युद्धों में सफेद झंडे पर लाल क्रॉस तटस्थ सहायता का संकेत होता था. "चूंकि दोनों पक्षों को पता होता था इसलिए रेड क्रॉस की निशानी का अधिकांश मामलों में आदर किया जाता था."

अस्पतालों के सामने बंदूकधारी

अंतरराष्ट्रीय कानून के जानकार हाइंत्से का कहना है कि आधुनिक लड़ाईयों में रेड क्रॉस का सम्मान कम होता जा रहा है. "अब लड़ाई में ऐसे पक्ष शामिल होने लगे हैं जिनकी ठीक से शिनाख्त नहीं की जा सकती और जो अपने को कानून से जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते, क्योंकि वे इसका कोई फायदा नहीं देखते हैं." जर्मनी में रेड क्रॉस की विदेशों में तैनाती के प्रभारी क्रिस्टॉफ योनेन इस समस्या के बारे में कहते हैं, "संघर्ष में लगे पक्ष इसे देखना पसंद नहीं करते कि उन्हें मदद दी जा रही है, जिन्हें वे दुश्मन समझते हैं."

सीरिया में इस विचार की पुष्टि होती है जहां साफ साफ निशान वाले राहत काफिलों पर भी गोलियां चलाई जाती हैं. बंदूकधारी अस्पतालों के सामने जम जाते हैं और घायलों पर भी गोलियां चलाते हैं. योनेन के मुताबिक सीरिया जैसे देशों में रेड क्रॉस के सामने सिर्फ मानवीय चुनौती ही नहीं है बल्कि लोगों को शिक्षित करने की भी चुनौती है. "इस युद्ध में बहुत से ऐसे दल लड़ रहे हैं जिन्हें रेड क्रॉस या रेड क्रिसेंट की जिम्मेदारी के बारे में पता नहीं है." उन्हें बताने की कोशिश हो रही है, लेकिन इसमें वक्त लगेगा. रीमा कमाल को डर है कि अगर हमले होते रहे तो भविष्य में मदद करने के इच्छुक लोगों को ढूंढना आसान नहीं होगा.

Fragezeichen Fragen über Fragen
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 18/09 और कोड 88576 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/Stauke

रिपोर्ट: अलोइस बैर्गर/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी