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सीरिया पर हमले ने साफ संदेश दिया है

डॉ. क्रिश्टियान एफ. ट्रिप्पे
१४ अप्रैल २०१८

अच्छी खबर यह है कि तीसरा विश्वयुद्ध शुरू नहीं हुआ है लेकिन बुरी खबर यह है कि पश्चिमी ताकतों के हवाई हमलों से सीरिया की स्थिति में कुछ भी बेहतर नहीं होगा. यह मानना है डीडब्ल्यू के क्रिश्टियान एफ. ट्रिप्पे का.

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Syrien Krieg - Damaskus nach Angriff durch die USA, Frankreich & Großbritannien | Russisches Militär
तस्वीर: picture-alliance/Xinhua News Agency/A. Safarjalani

कुछ समय तक हम नहीं जान पाएंगे कि 2018 के मध्य अप्रैल में दुनिया दो परमाणु ताकत वाले देशों अमेरिका और रूस के बीच जंग के कितने करीब आ गई है. फिलहाल तो यह साफ है कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने संयम दिखाया और उनके हमले सीरिया में रासायनिक हथियारों के निर्माण और भंडार के केंद्रों को निशाना बनाने तक सीमित रहे. इस वक्त सीरिया में क्या हो रहा है इसकी सही तस्वीर बता पाना मुश्किल है और इस बारे में आ रही खबरों पर सावधानी भी जरूरी है लेकिन जो जानकारी मिल रही है उससे लगता है कि आम लोग हताहत नहीं हुए हैं. 

सैन्य विकल्प कितना सही

1962 में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच क्यूबा के मिसाइल संकट से सीरिया की तुलना हाल के दिनों में की जाने लगी है. सार्वजनिक बयानों पर नजर डालें तो लगता है कि दुनिया निश्चित रूप से उसी मोड़ पर पहुंच गई है- कम से कम डॉनल्ड ट्रंप के सनकी ट्वीटों और रूसी अधिकारियों की दिखावटी धमकियों से तो यही लगता है. हालांकि इसके पीछे दोनों तरफ राजनीति को सेना के जनरलों पर हावी रखना की मानसिकता नजर आती है. 56 साल पहले यह सफल रही और संकट राजनीतिक ही बना रहा.

अब हालांकि, सीरिया पर हमले से पहले पिछले कुछ दिनों में अटलांटिक के दोनों ओर चेतावनियां सुनी जा रही थीं जैसे कि दुआ मांगी जा रही कि सेना का विवेक जीतेगा. जनरलों का विवेक और दक्षता बनाम राजनीतिज्ञों की अनभिज्ञता और निष्ठुरता, इसे हास्यास्पद समझने के लिए आपके अंदर एक खास किस्म के राजनीतिक मिजाज की जरूरत है.

सावधानी से लक्ष्य का चुनाव

सिर्फ याद दिलाने के लिए: फिलहाल सीरिया में रूस के हजारों सैनिक हैं जो असद की सेना की तरफ से लड़ रहे हैं. दो महीने पहले उत्तरी सीरिया में अमेरिकी एयरफोर्स के हमले में रूसी सिपाही मारे गए. इससे कोई बड़ा संकट नहीं पैदा हुआ. अमेरिकी नेतृत्व वाला गठबंधन उत्तरी सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ है. इस बार के हवाई हमलों में ऐसे लक्ष्य चुने गए जिससे कि रूसी सैनिकों पर हमले से बचा जा सके. अमेरिका और रूसी सैन्य नेतृत्व के बीच बातचीत फिलहाल स्थिर है. विशेषज्ञ बताते रहे हैं कि कुछ समय से दोनों तरफ के उच्च सैन्य अधिकारियों के बीच पूरब और पश्चिम की तनातनी के बावजूद आपसी भरोसे को कोई क्षति नहीं हुई है.

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डॉ. क्रिश्टियान एफ. ट्रिप्पेतस्वीर: DW

सीरिया की जंग शायद इतिहास की सबसे जटिल कहानी है. जिन देशों की सेनाएं अब भी आपस में सहयोगी हैं या जो राजनीतिक रूप से एक दूसरे के खिलाफ हैं वो भी बार बार सीरिया की जमीन पर आपस में उलझ रहे हैं. रूस के असद के साथ आने और सीरिया के ईरान के साथ गठबंधन ने सीरियाई गृहयुद्ध का आखिरी नतीजा तय कर दिया. तीन पश्चिमी देशों की कथित जवाबी कार्रवाई से इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि ये निरर्थक है.

हमलों का सीधा संदेश

अमेरिका, ब्रिटेन, और फ्रांस ने हमलों से दो बातें साफ कर दी हैं. पहला तो यह कि महाविनाश के प्रतिबंधित हथियारों के इस्तेमाल के नतीजे जरूर भुगतने होंगे और दूसरा कि स्वार्थी इनकार और युद्ध अपराधों को छिपाने की कोशिश स्वीकार नहीं की जाएगी, चाहे इसमें कोई भी शामिल हो और कितना भी दुष्प्रचार करे. इसके साथ ही पश्चिमी ताकतें इस क्षेत्र की अस्पष्ट और ढुलमुल राजनीति में भटकने के इतिहास के बावजूद इस भौगोलिक क्षेत्र को छोड़ना भी नहीं चाहतीं. मध्य पूर्व एक पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा है और इसके फैसले सिर्फ मॉस्को या तेहरान में बैठ कर नहीं लिए जा सकते. असद के रासायनिक संयंत्रों पर हमले का यह दोहरा संदेश है.

और सबसे आखिर में यह जरूर बताया जाना चाहिए कि अमेरिका ने अकेले कार्रवाई नहीं की है बल्कि फ्रांस और ब्रिटेन के साथ मिल कर हमला किया है, यह एक सैन्य गठजोड़ है लेकिन राजनीतिक सहयोग नहीं. इस तरह के करार का डॉनल्ड ट्रंप की प्रेसीडेंसी के दूसरे साल में आना शायद इस शनिवार की एकमात्र अविवादित अच्छी खबर है.