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सुरक्षा के साए में आस्था नगरी अयोध्या

५ दिसम्बर २०१२

बीस बरस में अयोध्या अगर कोई तब्दीली हुई है तो रामजन्म भूमि परिसर में, जहां लोहे की 11 फुट ऊंची बैरिकेटिंग, पुलिसवालों के बूटों की धमक, मेटल डिटेक्टर, सीसीटीवी कैमरे और लोहे की जालियों से घिरे कटघरे नुमा छोटे-छोटे बाड़े.

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तस्वीर: DW/S. Waheed

इतनी सुरक्षा के बीच अयोध्या में राम कचहरी मंदिर के पास से रामलला के मंदिर तक पहुंचना किसी शत्रु देश की सीमा के पास से गुजरने जैसे तजुर्बे का अहसास कराता है. इस परिसर में रामलला का दर्शन में श्रद्धा कम रोमांच और भय ज्यादा है. यहां आने वाले हर व्यक्ति को सुरक्षाकर्मी शक की नजर से देखते हैं और जमकर तलाशी लेते है. नारियल लेकर परिसर में जाने पर रोक है. बीस बरस पहले ऐसा कुछ भी नहीं था. तब सुबह चार बजे से रात 12 बजे तक कोई भी राम लाला के दर्शन कर सकता था लेकिन अब सिर्फ सुबह और दोपहर में 4-4 घंटे दर्शन करने के तय कर दिए गए हैं.

अयोध्या में राम लला को सरकार ने वीवीआईपी का दर्जा दे रखा है. शायद इसीलिए उन्हें शैडो यानी 9 बाडी गार्ड दे रखे हैं जो 24 घंटे तीन तीन की टीम बनाकर उनके आस पास रहते हैं. इनके आलावा राम जन्मभूमि की अधिग्रहीत करीब 67 एकड़ के परिसर के अंदर की सुरक्षा के लिए 12 कंपनी पीएसी,4 कंपनी आरएएफ,एक कंपनी महिला आरएएफ, 55 कमांडो, 32 लोगो की इंटेलिजेंस टीम, 2 डॉग स्क्वायड, बम डिस्पोजल दस्ता, फायर ब्रिगेड की दो टीमें अन्दर हमेशा मुस्तैद रहती हैं.

इस परिसर के बाहर यलो जोन में तीन मजिस्ट्रेट के साथ पांच बड़े प्रशासनिक अधिकारी, यूपी पुलिस के 350 दरोगा, 2 कंपनी पीएसी और 400 सिपाही तैनात हैं. कुल मिलाकर करीब 4000 सुरक्षाकर्मी अयोध्या में हर समय मौजूद रहते हैं. रामलला के दर्शन के लिए पहले बड़ा स्थान मंदिर के पास पहली बैरिकेटिंग पर तलाशी ली जाती है. फिर लव कुश मंदिर के पास प्रवेशद्वार पर चेकपोस्ट पर मेटल डिटेक्टर से गुज़रना होता है.

यहां मौजूद सिपाही चमडे का सामान, मोबाइल फोन, पेन, कैमरा, बैग, माचिस, सिगरेट तथा पान मसाले के पाउच आदि रखवा लेते हैं. सीता रसोई, मानस भवन और रामखजाना मंदिर भी जाने नहीं दिया जाता क्योंकि इन मंदिरों को सरकार ने अधिग्रहीत कर लिया है.

1990 Unruhen vor der Babri-Moschee vor der Zerstörung 1992
तस्वीर: AP

करीब 80-90 हजार आबादी वाली अयोध्या में सुरक्षाकर्मियों की इतनी मौजूदगी ने यहां का सामाजिक चरित्र बदल दिया है.सरयू घाट पर पण्डे राम मिलन कहते हैं कि ये शुभ संकेत नहीं है. बाकी कुछ नहीं बदला. अभी भी यहां न कोई होटल है न कोई रेस्तरां जबकि हर रोज यहां चार पांच हजार लोग यहां आते हैं.

साल में तीन बड़े मेलों के दौरान तो प्रतिदिन एक एक लाख लोगों की भीड़ आती है. भारतीय युवा मोर्चा के निशेन्द्र मोहन मिश्र इससे सहमत नहीं है, "पिछले बीस साल में अयोध्या की आर्थिक प्रगति हुई है. मंदिरों के पुजारियों के कमरे एसी हो गए है, बाज़ार का कारोबार बढ़ा है और वाहनों की संख्या, ये सब प्रगति के ही तो लक्षण है. "

1992 की कार सेवा में शामिल रहे त्रियुग नारायण तिवारी इनकी बातों से सहमत नहीं हैं, "अयोध्या बाबा, बानर और बिद्यार्थी की नगरी थी इसे क्या से क्या बना दिया गया. विकास इसलिए नहीं होता कोई भी धर्मनिरपेक्ष दल यहां के मामले में हाथ डालना नहीं चाहता और राम जन्मभूमि आंदोलन के बल पर बनी बीजेपी सरकार ने यहां विकास के लिए कुछ किया नहीं. "

रामलला के भोग का प्रबंध करने वाले सीताराम यादव बताते हैं कि 6 दिसम्बर 1992 से पहले का माहौल ही कुछ और था. कभी भी और देर रात तक रामलला के दर्शन होते थे. पहले मानस भवन, सीता रसोई, रामखजाना, ठाकुर जी के इन मंदिरों में भी खूब रौनक रहती थी अब यह भी वीरान हैं. राम जन्मभूमि परिसर के बाहर अयोध्या और फैजाबाद में ऐसा माहौल नहीं है. इन जगहों पर बाबरी मस्जिद विध्वंस का असर कम हो गया है. पहले यहां हिन्दुत्व की जो लहर दिखती थी अब वह गायब है. जो लोग पहले जन्मभूमि में विवादित ढांचे को गिराने के पराक्रम का प्रचार करते थे आज शांत हैं.

रिपोर्ट: एस वहीद, अयोध्या

संपादनः अनवर जे अशरफ

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